नई दिल्ली. कांग्रेस के चिंतन शिविर का फलसफा भले ही 50 वर्ष से कम उम्र के नेताओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण, पदाधिकारियों के लिए पांच साल का कार्यकाल, एक परिवार-एक टिकट और खोया जनाधार वापस पाने की रणनीति पर ध्यान केन्द्रित करना रहा, लेकिन सबसे अधिक चर्चा पूर्व पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के उस बयान की रही, जिसमें उन्होंने दावा किया है कि कोई भी क्षेत्रीय दल भाजपा को नहीं हरा सकता क्योंकि उनके पास विचारधारा का अभाव है.
राहुल गांधी के इस बयान के बाद क्षेत्रीय दलों की कड़ी प्रतिक्रिया आई और देश में इस विषय पर एक नई बहस छिड़ गई. इसी से जुड़े मुद्दों पर चुनाव सुधार की दिशा में काम कर रहे अग्रणी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के संस्थापक सदस्य और भारतीय प्रबंध संस्थान, अहमदाबाद के पूर्व निदेशक जगदीप छोकर से ‘भाषा के पांच सवाल’ और उनके जवाब:
सवाल: राहुल गांधी के बयान और उसके बाद क्षेत्रीय दलों, खासकर कांग्रेस के सहयोगियों की ओर से ही सबसे तीखी प्रतिक्रिया आई. आप इसे कैसे देखते हैं?
जवाब: मेरे ख्याल से तो कांग्रेस भी भाजपा को नहीं हरा सकती. जब कांग्रेस खुद भाजपा को नहीं हरा सकती तो वह दूसरों पर कैसे उंगली उठा सकती है. अगर वह भाजपा को हराने में सक्षम होती तो उसका यह कहना शायद वाजिब होता. लेकिन आज कांग्रेस की स्थिति किसी से छिपी नहीं है. लोकसभा में कहां पहुंच गई है वह? कितने राज्य उसके पास रह गए हैं? इसलिए दूसरों पर सवाल खड़े करने से पहले कांग्रेस को अपने गिरेबान में देख लेना चाहिए था. मेरी समझ में तो कांग्रेस के पास खुद को बचाने की ही रणनीति नहीं है तो चुनाव लड़ने की क्या रणनीति होगी उसकी. इतना बुरा हाल है कांग्रेस का कि उसके अपने ही लोगों को पता नहीं है कि उसका अध्यक्ष कौन है. परिवार के तीन लोग हैं और कांग्रेस के नेता-कार्यकर्ता तीनों की ओर देखते रहते हैं. 23-24 (जी-24) नेताओं ने कुछ कहने की कोशिश की थी, वह भी किसी को रास नहीं आया. कांग्रेस के लिए तो अपने अस्तित्व का सवाल है. अभी खुद को प्रासंगिक बनाने के लिए उसे रणनीति बनाने की जरूरत है.
सवाल: राष्ट्रीय जनता दल (राजद) नेता तेजस्वी यादव ने एक सुझाव दिया था कि कांग्रेस को 220-225 सीटों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। ऐसे में अगले लोकसभा चुनाव में आप क्या परिदृश्य उभरता देख रहे हैं?
जवाब: मुझे नहीं पता कि क्या सोचकर तेजस्वी यादव ने यह सुझाव दिया है. वह यदि समझते हैं कि 225 या 220 सीटों पर कांग्रेस इतनी मजबूत है और वह भाजपा को हरा पाएगी तो तेजस्वी यादव को यह बताना चाहिए कि वो सीटें कौन-कौन सी हैं. कम से कम कांग्रेस को तो बताए. रही बात चुनावी परिदृश्य की तो जो तथाकथित विपक्षी दल हैं, अगर वे इकट्ठा हो जाएं फिर शायद कुछ मुकाबला हो. लेकिन वे इकट्ठा होंगे नहीं. इसलिए, अभी जो पार्टी सत्ता में है, वही सत्ता में रहेगी.
सवाल: क्या कोई तीसरा मोर्चा भी बनने की संभावना है?
जवाब: तीसरा मोर्चा कहां से बनेगा? ना कोई एक दूसरे को पसंद करेगा, ना ही यकीन करेगा. चंद्रशेखर राव की बात क्या ममता बनर्जी मानेंगी या तेजस्वी यादव मानेंगे? ममता की बात क्या मायावती मानेंगी? अखिलेश यादव की बात क्या नवीन पटनायक मानेंगे? देश में एक ही व्यक्ति प्रधानमंत्री हो सकता है, 15 नहीं. सिर्फ प्रधानमंत्री की आलोचना करने से नेता कोई नहीं बन सकता.
सवाल: आजादी के 75 साल के बाद देश की राजनीति किस दिशा की ओर बढ़ते देख रहे हैं आप? गठबंधन की राजनीति का क्या भविष्य है?
जवाब: किसी भी राजनीतिक दल में देश को लेकर कोई भावना नहीं बची है. हर राजनीतिक दल का लक्ष्य केवल सत्ता हासिल करना रह गया है. वे सिर्फ अपने दल के भले के बारे में सोचते हैं. अफसोस की बात है, लेकिन कड़वी सच्चाई है. एक दल का नारा था कि हमको ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ चाहिए. अब धीरे-धीरे वह ‘विपक्ष मुक्त’ भारत में बदल गया है और आज की तारीख में भारत विपक्ष मुक्त है. इसमें एक बड़ी भूमिका इलेक्टोरल बांड की है. और भी कई सारी चीजें हैं. लोकतांत्रिक प्रक्रिया देश में नाम मात्र की है और शायद नाम मात्र की ही रहे.
सवाल: भाजपा को मात देने के लिए कांग्रेस का मजबूत होना जरूरी है या कमजोर रहना? मजबूत होने की स्थिति में क्या क्षेत्रीय दल उसके साथ आएंगे?
जवाब: भाजपा को मात देना है तो कांग्रेस का मजबूत होना जरूरी है. लेकिन कांग्रेस मजबूत होती दिख नहीं रही है. कांग्रेस मजबूत होनी चाहिए इसमें तो कोई दो राय नहीं है, लेकिन सिर्फ यह कहने से या सोचने से तो कांग्रेस मजबूत नहीं हो रही है. कांग्रेस के लोग ही कांग्रेस को मजबूत करेंगे, जब वे अपने निजी स्वार्थ को छोड़कर पार्टी को मजबूत करने की कोशिश करेंगे. मैं फिर से कह रहा हूं कि कांग्रेस को मजबूत होना चाहिए. वह मजबूत होगी तो क्षेत्रीय दल खुद साथ आ जाएंगे. लोकतंत्र में प्रतिपक्ष को मजबूत होना चाहिए.
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