नई दिल्ली. भारत समेत दुनियाभर के तमाम देश जानलेवा कोरोना वायरस (Covid-19 Pandemic) महामारी से लड़ रहे हैं. दुनियाभर में अब तक 89 लाख 14 हजार 787 लोग
कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं. इनमें से 4 लाख 66 हजार 718 लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं, भारत में कोरोना के अब तक 4.10 लाख केस आ चुके हैं और 13 हजार से ज्यादा मरीजों की जान गई है. इस बीच
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की चीफ साइंटिस्ट डॉ. सौम्या स्वामीनाथन (Dr. Soumya Swaminathan) को पूरी उम्मीद है कि इस वायरस की वैक्सीन अगले साल की शुरुआत तक विकसित कर ली जाएगी.
News18 के साथ इंटरव्यू में सौम्या स्वामीनाथन ने भारत में कोरोना के प्रभाव, इसके पीक सीजन और सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों पर विस्तार से बात की. स्वामीनाथन कहती हैं कि कोरोना कोई आखिरी महामारी नहीं है. हर चीज का एक अंत होता है. ऐसे में कोरोना का भी अंत होगा है. लेकिन, हमें इससे सबक लेना चाहिए और भविष्य में आने वाली ऐसी कई महामारियों से लड़न के लिए अभी से तैयार रहना चाहिए.
पेश हैं उनसे हुई बातचीत के खास अंश:-
कोरोना वायरस ने दिल्ली और चेन्नई जैसे महानगरों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है. इससे निपटने के लिए भारत में पांच चरणों में लगाए गए राष्ट्रीय लॉकडाउन को आप कैसे देखती हैं?
>>कोरोना वायरस और लॉकडाउन ऐसे मुद्दे हैं, जिससे सभी देश जूझ रहे हैं. जैसा कि आप जानते हैं, WHO ने सलाह दी थी कि हमें सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामाजिक उपायों को दुरुत करने की जरूरत है. हर देश ने अपनी आवश्यकताओं के अनुसार इसे अपनाया भी. कोरोना महामारी से निपटने में इसने काफी हद तक मदद भी की. जहां तक लॉकडाउन की बात है, तो ये शब्द भारत में तब प्रचलित हुआ, जब कई देश इसे सख्ती के साथ लागू कर चुके थे. लॉकडाउन का सीधा सा मतलब लोगों के बीच शारीरिक दूरी बनाए रखना है, ताकि इस वायरस के संक्रमण को फैलने से रोका जा सके.
ये भी पढ़ें:- Covid-19: कोरोना ने तोड़े अब तक के सारे रिकॉर्ड, एक दिन में मिले 15413 नए मरीज और 306 मौतें
हालांकि, लॉकडाउन को लेकर विभिन्न देशों में अलग-अलग राय है. कुछ देशों ने कम केस होने के दौरान ही दूरदर्शिता दिखाते हुए लॉकडाउन लगा दिया था. भारत ने भी ऐसा ही किया था. मगर जनसंख्या घनत्व होने के कारण मामले सामने आते गए.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत में कोरोना का पिक सीजन आना अभी बाकी है. ऐसा भी माना जा रहा है कि अमेरिका और दक्षिण एशिया इस वायरस के लिए हॉटस्पॉट हैं. ऐसे में आपको क्या लगता है कि भारत कहां स्टैंड करता है?
>>यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि लोगों की प्रतिक्रिया क्या है. यह केवल कोरोना वायरस का असर नहीं है, बल्कि यह लोगों और सरकारों का व्यवहार भी है, जो यह तय करेगा कि आगे क्या होगा. उन देशों में जो कोरोना के फर्स्ट वेब से आगे निकल चुके हैं और अभी पिक सीजन देख रहे हैं. बेशक वहां भी महामारी का सेकंड वेब आ सकता है, लेकिन ये इस बात पर भी निर्भर करेगा कि वहां कि सरकार इस महामारी को फैलने से रोकने के लिए नियमों का कितने सख्ती से पालन कराती है. साथ ही लोग कितनी सख्ती से पालन करते हैं.
अभी भारत के साथ-साथ दक्षिण एशिया के पड़ोसी देशों में कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं और पिक आना बाकी है. इसलिए नए मामलों में वृद्धि को रोकने के लिए सभी उपाय किए जाने चाहिए.
डेक्सामेथासोन (Dexamethasone) की वजह से गंभीर रूप से बीमार कोविड-19 के रोगियों के लिए एक नई उम्मीद जगी है. इस दवा से आपको कितनी आशा है?
>>डेक्सामेथासोन एक बहुत पुरानी दवा है. इसका इस्तेमाल लंबे समय से कई अलग-अलग प्रकार की बीमारियों में गंभीर स्थिति में किया जाता रहा है. खासतौर पर इंटेंसिव केयर में इस दवा का इस्तेमाल हो रहा है. हालांकि, कई मामलों में ये पाया गया है कि ये दवा एक्यूट रेस्पेरिटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (ARDS) में कोई खास प्रभावकारी नहीं होती. लिहाजा हमें इसपर पूरा भरोसा करके नहीं चलना चाहिए. इस दवा का ऑक्सीजन और न ही वेंटिलेशन की जरूरत वाले लोगों पर कोई असर हुआ है.
कोरोना वायरस के लिए कई देश वैक्सीन विकसित करने में लगे हैं. कई तरह की टेस्टिंग भी चल रही है. आपके अनुमान में हम सार्वजनिक उपयोग के लिए उपलब्ध टीके की उम्मीद कब कर सकते हैं?
>>ये बहुत कठिन सवाल है. कोरोना की वैक्सीन कब तक आएगी, अभी इस बारे में ठीक-ठीक कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. एक वैक्सीन इजाद करने में कई प्रक्रियाएं होती हैं. अलग-अलग स्तर पर टेस्टिंग होती है. एक स्टेज पर अगर टेस्टिंग फेल हो गई, तो फिर जीरो से काम शुरू करना पड़ता है. ऐसे में आप मामले की जटिलता को समझ सकते हैं. मगर उम्मीद है कि कोरोना की वैक्सीन अगले साल की शुरुआत तक आ जाएगी. कई देश इसपर काफी काम कर चुके हैं.
क्या आप यह भी बता सकती हैं कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के साथ क्या हुआ था? इसका ट्रायल क्यों बंद कर दिया गया?
>>एंटी मलेरिया की दवा Hydroxychloroquine को पहले कोरोना के इलाज में कारगर बताया जा रहा था. कई मामलों में इसके अच्छे रिजल्ट में आए थे. जिसकी वजह से इंटरनेशनल मार्केट में इसकी मांग बढ़ गई. मगर लंबे समय में पाया गया कि इस दवा से जिन कोविड-19 के मरीजों का इलाज किया गया, मरने वालों में उनकी संख्या ज्यादा थी.
ये भी पढ़ें:- दुनिया के 81 देशों में कोरोना की दूसरी लहर शुरू, 36 देशों में कम हुए मामले
यह मलेरिया के अलावा कई बीमारियों के खिलाफ आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली दवा है. यह सस्ती दर पर उपलब्ध है. इसलिए इसे WHO के सॉलिडैरिटी ट्रायल, यूके में रिकवरी ट्रायल, फ्रांस के डिस्कवरी ट्रायल और अमेरिका और अन्य देशों में ट्रायल में शामिल किया गया था. लेकिन, आगे जाकर रिजल्ट अपेक्षा के अनुरुप नहीं आए. लिहाजा इसका ट्रायल रोक दिया गया.
(अंग्रेजी में इस इंटरव्यू को पूरा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |
Tags: COVID 19, Lockdown 5.0, WHO
FIRST PUBLISHED : June 21, 2020, 14:48 IST