सूरत. कोरोना वायरस (Coronavirus) महामारी के चलते दुनिया और धर्म से जुडे़ कई नियम बदलने पड़े हैं. इस परेशानी से भारत का पारसी समुदाय भी अछूता नहीं है. इस महामारी ने समुदाय को हजारों साल पुरानी परंपरा दोखमे नशीन को बदलकर दाह संस्कार करने पर मजबूर कर दिया है. वहीं, हालात की गंभीरता को देखते हुए पारसी पंचायत पदाधिकारियों ने कोरोना के चलते जान गंवाने वाले लोगों को अग्निदाह करने की मंजूरी दे दी है.
क्या कहती है पुरानी परंपरा
भारत में अल्पसंख्यक पारसी समुदाय की रिवाजों के मुताबिक, व्यक्ति की मौत के बाद उनके शरीर को गिद्धों के लिए टॉवर ऑफ साइलेंस या एक गहरे गड्ढे में छोड़ दिया जाता है. टॉवर ऑफ साइलेंस एक खुली जगह होती है, जहां मृत शरीर को छोड़ा जाता है. अब कोरोना वायरस महामारी की वजह से समुदाय को इस प्रक्रिया को बदलना पड़ा रहा है.
यह भी पढ़ें: Delhi Corona Death: दिल्ली में कोरोना से हाहाकार, श्मशान हुए फुल, पार्क में हो रहा अंतिम संस्कार
पारसी पंचायत के सदस्य बताते हैं कि देश में उनके समुदाय के लोगों की जनसंख्या करीब एक लाख है. इसी बीच महामारी में कई लोगों की मौत हो रही है. ऐसे में कोरोना नियमों का पालन भी करना जरूरी है. यही वजह है कि पारसी समाज के लोगों ने यह निर्णय लिया है. पारसी समाज के लोग अग्नि को अति पवित्र मानते हैं, लेकिन उन्होंने यह बताया है कि समय के अनुसार परिवर्तन जरूरी है और लोगों को किसी तरीके की तकलीफ ना हो इस वजह से उन्होंने यह निर्णय लिया है.'
करीब दो हफ्तों पहले प्रकाशित अहमदाबाद मिरर की रिपोर्ट बताती है कि गुजरात के सूरत में एक महीने में पारसी समुदाय के करीब 40 लोगों की मौत हो चुकी है. इन मरीजों की मौत का कारण कोरोना वायरस है. शहर में कुल पारसियों की संख्या करीब 3000 बताई जा रही है. मृत शरीर के जरिए किसी अन्य व्यक्ति को संक्रमण से बचाने के लिए समुदाय ने दाह संस्कार का रास्ता चुना है.undefined
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |
Tags: COVID 19, Parsi Community, Tower of Silence
FIRST PUBLISHED : April 28, 2021, 11:23 IST