दास्तान-गो : किस्से-कहानियां कहने-सुनने का कोई वक्त होता है क्या? शायद होता हो. या न भी होता हो. पर एक बात जरूर होती है. किस्से, कहानियां रुचते सबको हैं. वे वक्ती तौर पर मौजूं हों तो बेहतर. न हों, बीते दौर के हों तो भी बुराई नहीं. क्योंकि ये हमेशा हमें कुछ बताकर ही नहीं, सिखाकर भी जाते हैं. अपने दौर की यादें दिलाते हैं. गंभीर से मसलों की घुट्टी भी मीठी कर के, हौले से पिलाते हैं. इसीलिए ‘दास्तान-गो’ ने शुरू किया है, दिलचस्प किस्सों को आप-अपनों तक पहुंचाने का सिलसिला. कोशिश रहेगी यह सिलसिला जारी रहे. सोमवार से शुक्रवार, रोज…
——————
देर शाम की बात होगी, 26 मई की. साल 1964 का था. हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू उस रोज करीब छह दिन बाद देहरादून-मसूरी से छटि्टयां मनाकर लौटे थे. या यूं कह लीजिए कि वहां से स्वास्थ्य लाभ लेकर आए थे. दिल्ली के अपने आवास ‘तीन मूर्ति भवन’ में जब पहुंचे तो एकदम ठीक थे. रात का भोजन करने के बाद जब वे करीब 11.30 बजे सोने गए, तब तक भी किसी तरह के विपरीत संकेत नहीं थे. लेकिन अगली सुबह रोज के तय वक़्त पर लगभग छह बजे जब उठे तो उन्हें कुछ ठीक नहीं लग रहा था. फिर भी ग़ुसलखाने तक गए और यही कोई 15-20 मिनट में लौटे. अब तक उनके कंधों और पीठ की तरफ़ छाती के पीछे वाले हिस्से में असहज करने वाला दर्द शुरू हो चुका था. लिहाज़ा उन्होंने तुरंत अपने निजी डॉक्टर को फोन किया. इसकी इत्तिला दी.
हालांकि डॉक्टर जब तक आते पंडित नेहरू वहीं अचेत होकर गिर चुके थे. अपनी टीम के साथ डॉक्टर ने पहुंचते ही मौके पर मौज़ूद लोगों को बताया कि पंडित जी को दिल का दौरा पड़ा है. यह सुनते ही अफरा-तफरी मच गई सब ओर. पंडित जी की चेतना वापस लौटाने की कोशिशें की जाने लगीं. लेकिन कोई क़ामयाबी नहीं मिल रही थी. वे लगभग कोमा की अवस्था में चले गए थे, दौरा पड़ने के तुरंत बाद ही. बुधवार का दिन था वह. संसद का विशेष सत्र चल रहा था, 10 दिन का. ज़मीन से जुड़े एक कानून पर चर्चा के लिए बुलाया गया था. सो, उस रोज जैसे ही सुबह 10.30 बजे संसद के दोनों सदनों की बैठक शुरू हुई, गृह मंत्री गुलजारी लाल नंदा और वित्त मंत्री टीटी कृष्णमचारी ने सदस्यों को बताया, ‘प्रधानमंत्री नेहरू गंभीर बीमार हैं.’ सन्न रह गए सब.
कार्यवाही हालांकि चलती रही लेकिन बेमन से. नेहरू जी के गंभीर बीमार होने की ख़बर आग की तरह एक से दो, दो से चार होते हुए फैलने लगी. इधर दवा शुरू हो गई, उधर दुआओं का दौर चल पड़ा था. नेहरू जी के साथ उस वक़्त घर के सदस्यों के नाम पर सिर्फ़ उनकी बेटी इंदिरा थीं, जिनके पति फिरोज गांधी पहले ही उन्हें छोड़कर इस दुनिया से जा चुके थे. इस हादसे के बाद से वे पिता के साथ रह रहीं थीं. नेहरू जी की पत्नी कमला का 1936 में निधन हो चुका था. दो बहनें- विजयलक्ष्मी पंडित और कृष्णा हठीसिंह भी इस वक़्त दिल्ली के बजाय, बंबई में थीं. साथ में कोई और था तो पंडित जी का निजी स्टाफ, नौकर-चाकर, मंत्रिपरिषद के उनके सहयोगी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नए-नए अध्यक्ष बनाए गए के. कामराज और कुछ अन्य नज़दीकी नेता.
इस सबके बीच दोपहर के 11-12 बज चुके थे. एक-एक पल सबके लिए भारी था कि तभी संसद के दोनों सदनों के सदस्यों को फिर सूचना दी गई, ‘पंडित जी को ऑक्सीजन सपोर्ट पर ले लिया गया है, उनकी हालत गंभीर है.’ सब के सब धक्क रह गए, इस सूचना से. दोनों सदनों में भोजनावकाश हो चुका था. अब हर सदस्य, हर मंत्री, हर नेता नेहरू जी के बारे में पल-पल की जानकारी लेने की कोशिश कर रहा था. उन्हें जाकर नज़दीक से देखने की कोशिशें जारी थीं. लेकिन चुनिंदा लोगों को ही इसमें क़ामयाबी मिल रही थी. डॉक्टर अधिक भीड़-भाड़ की इजाज़त नहीं दे रहे थे. हर निग़ाह ‘तीन मूर्ति भवन’ की ओर थी. हर क़दम उस तरफ़ का रुख़ करने को बेचैन था. हर कान वहां से आने वाली छोटी से छोटी सूचना को भी सुनने के लिए आतुर हुआ जाता था.
कि तभी ख़बर आ गई. दोपहर बाद करीब दो बजे थे. किसी नेता, मंत्री का हौसला न हुआ तो इस्पात मंत्री कोयंबटूर सुब्रमणियम ने हिम्मत दिखाई. मग़र वह भी संसद में महज़ चार शब्द बोल पाने की, ‘लौ विलीन हो गई.’ इतना कहकर वे रोने लगे. संसद का हर सदस्य रो रहा था. पंडित नेहरू सबको छोड़कर जा चुके थे. भरी दुपहरी हिंदुस्तान को आकार देने वाले सूरज का अस्त हो चुका था. दिन के ढाई बजे के क़रीब रेडियो पर यह सूचना पूरे हिंदुस्तान को दे दी गई. यह भी बताया गया कि अंतिम संस्कार गुरुवार, 28 मई को दोपहर बाद एक बजे होना है. जमुना किनारे राजघाट पर महात्मा गांधी की समाधि से कुछ दूरी पर ही उन्हें पंचतत्त्व में विलीन किया जाएगा.
लोग अपने प्रिय नेता के अंतिम दर्शन कर सकें इसके लिए उनकी देह गुरुवार, 27 मई की रात आठ बजे ही तिरंगे में ओढ़ाकर ‘तीन मूर्ति भवन’ के पोर्च में रख दी गई. हिंदुस्तानियों के लिए महात्मा गांधी की हत्या के बाद यह दूसरा बड़ा झटका था. लाखों क़दमों ने देश के तमाम कोनों से दिल्ली का रुख़ कर लिया था. ‘तीन मूर्ति भवन’ के सामने लंबी-लंबी क़तारों में लोग रोते-बिलखते खड़े थे. घंटों इंतज़ार के बाद उन्हें सेकेंडों, मिनटों के लिए पंडित जी का चेहरा देखने मिल रहा था. देश में 12 दिन का शोक घोषित कर दिया गया था. तिरंगे जहां भी थे, आधे झुक चुके थे. और तिरंगा ही क्यों, नोबेल शांति पुरस्कार के लिए 11 बार नामित हुए इस वैश्विक नेता के सम्मान में तमाम देशों ने भी अपने झंडे आधे झुका दिए थे. दूसरे देशों में भी शोक घोषित हुआ था.
पंडित नेहरू की दोनों बहनें भागते-दौड़ते दिल्ली पहुंची थीं. रक्षा मंत्री वाईबी चह्वाण अमेरिका की यात्रा पर थे. सूचना मिलते ही वे अपनी यात्रा बीच में ही रद्द कर दिल्ली पहुंच रहे थे. दुनियाभर के तमाम राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों, उनके प्रतिनिधियों का दिल्ली पहुंचने का सिलसिला शुरू हो चुका था. सोवियत संघ के राजदूत आईए बेंदिक्तोव तो नेहरू जी के पार्थिव शरीर के सामने पहुंचते ही बिलख-बिलखकर रोने लगे थे. कमोबेश ‘तीन मूर्ति भवन’ पहुंचने वाले हर शख़्स का यही हाल था. लेकिन नेहरू जी के सिरहाने बैठीं इंदिरा का चेहरा भावशून्य सा नज़र आ रहा था. क़रीब 10 घंटे हो चुके थे नेहरू जी को गुज़रे हुए लेकिन यह शून्य हर तरफ़ तारी था. कोई शब्द-शून्य तो कोई विचार-शून्य और हिंदुस्तान उत्तर-शून्य. नए उगे सवाल पर कि ‘नेहरू के बाद अब कौन?’
—
अगली कड़ी में पढ़िए
* दास्तान–गो : ‘एक धोखा’, जिसने दिल ही नहीं नेहरू के दिमाग पर भी चोट की
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |
Tags: Death anniversary special, Hindi news, Jawahar Lal Nehru, News18 Hindi Originals