क्या दलित बीजेपी को वोट नहीं देते, आंकड़ों में देखिए सच क्या है?
क्या दलित बीजेपी को वोट नहीं देते, आंकड़ों में देखिए सच क्या है?
दलित राजनीति (प्रतीकात्मक फोटो)
2014 में बीजेपी को 24 फीसदी दलितों ने वोट किया, कांग्रेस को 18.5 और बीएसपी को सिर्फ 13.9 फीसदी ने. क्या इस बार भी बीजेपी हासिल कर पाएगी दलितों का समर्थन?
लोकसभा चुनाव के ऐलान के साथ ही पूरे देश में दलित वोटबैंक को लेकर चर्चा है कि आखिर यह किस तरफ जाएगा? सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, हर कोई खुद को दलित हितैषी दिखाने की कोशिश में जुटा है. ऐसा होना बेवजह नहीं है. कुल मतदाताओं में करीब 17 फीसदी दलित हैं. आम धारणा है कि दलित बीजेपीको वोट नहीं करते, लेकिन 2014 की मोदी लहर में राष्ट्रीय स्तर पर दलितों का सबसे ज्यादा वोट बीजेपी को ही मिला था. कुल वोट का करीब 24 फीसदी. सवाल ये है कि रोस्टर मसले और एससी/एसटी एक्ट से दलितों में पनपी नाराजगी के बाद क्या फिर बीजेपी को 2014 की तरह ही दलितों का समर्थन मिलेगा? (ये भी पढ़ें: मोदी लहर में भी इन पार्टियों ने जीती थीं 203 लोकसभा सीटें, इस बार क्या होगा?)
दलित वोटबैंक 2014 में किसके साथ था!
कभी दलित कांग्रेस का कोर वोट बैंक हुआ करता था. उस कांग्रेस को 2014 में 18.5 फीसदी दलित वोट से संतोष करना पड़ा था. अपने आपको दलितों की सबसे बड़ी नेता बताने वाली मायावती की पार्टी बीएसपी को महज 13.9 दलितों ने वोट किया था. यह आंकड़े सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डवलपिंग सोसायटी (सीएसडीएस) के हैं.
एससी/एसटी के लिए आरक्षित देश की 131 सीटों में सबसे ज्यादा 67 सीटें भाजपा के पास हैं. कांग्रेस के पास 13, तृणमूल कांग्रेस के पास 12, अन्नाद्रमुक और बीजद के पास सात-सात सीटें हैं. बसपा तो एक भी सीट नहीं जीत पाई थी.
सियासी जानकारों का कहना है कि बीजेपी को ज्यादातर गैर जाटव दलितों का समर्थन मिला है. अब बीजेपी जाटवों में भी पैठ बनाने की कोशिश में जुट गई है. इसी रणनीति के तहत उसने पहले मेरठ की रहने वाली कांता कर्दम को राज्यसभा भेजा और अब आगरा की रहने वाली बेबीरानी मौर्य को उत्तराखंड का राज्यपाल बना दिया. खास बात ये है कि महिला होने के साथ-साथ दोनों जाटव बिरादरी से आती हैं. मायावती भी जाटव बिरादरी से हैं. देखना ये है कि क्या इस दांव का उसे कोई चुनाव फायदा मिलेगा? (ये भी पढ़ें: Loksabha election 2019: कांग्रेस के इस दांव ने यूपी में किसके लिए बढ़ाई मुश्किल?)
बीजेपी को किस वर्ग का कितना समर्थन मिला?
बीजेपी सांसद उदित राज को उम्मीद है कि पार्टी को दलितों का 2014 की तरह की समर्थन मिलेगा. वो इसकी वजह बताते हैं, "पीएम मोदी ने दलितों के बाबा साहब आंबेडकर के लिए कई महत्वपूर्ण काम किए हैं. एसएसी/एसटी एक्ट को कमजोर होने से बचाया. रोस्टर मामले पर उनके साथ खड़े हुए. इसलिए मुझे लगता है कि दलितों का समर्थन बीजेपी को मिलेगा."
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसायटी एंड पॉलिटिक्स के निदेशक प्रोफेसर एके वर्मा कहते हैं कि- 'बीजेपी में दलितों ने अपनी जगह बना ली है. जहां तक मायावती की बात है तो उनसे जाटव तो खुश है लेकिन गैर जाटव दलित संतुष्ट नहीं हैं. इस समय अगर सबसे महत्वपूर्ण चुनाव क्षेत्र यूपी की बात करें तो रिजर्व सीटों वाले सभी सांसद बीजेपी के हैं. 85 में से 75 रिजर्व सीटों पर बीजेपी के विधायक हैं. इसीलिए बीजेपी दलितों तक अपनी बात पहुंचा पा रही है. मुझे नहीं लगता कि बीजेपी को दलित वोट नहीं मिलेगा.'
हालांकि, दलित चिंतक सतीश प्रकाश कहते हैं, "जहां तक 2014 की बात है तो वो एक आंधी थी और इसमें सभी जातियां फंसी थीं. यहां तक मुस्लिम भी. इस आंधी में दलित तो बहुत कम फंसे. इसके बाद हालात बदल चुके हैं क्योंकि अब दलितों ने देख लिया है कि बीजेपी ने उनके लिए क्या किया."
मायावती को राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी से भी कम दलितों का वोट मिला तो इसकी वजह भी है. मायावती पर 'बहनजी: द राइज एंड फॉल ऑफ मायावती' नामक किताब लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अजय बोस के मुताबिक, 'बसपा के राजनीतिक उदय के समय उसमें कई राज्यों के दलितों ने अपना नेता खोजा था, लेकिन मायावती ने न तो ध्यान दिया और न ही कांग्रेस और बीजेपी की तरह क्षेत्रीय नेता पैदा किए. जिसके सहारे उनकी राजनीति आगे बढ़ सकती थी. पंजाब, राजस्थान और मध्य प्रदेश में बसपा के आगे बढ़ने का बहुत स्कोप था लेकिन क्षत्रपों के अभाव में वह धीरे-धीरे जनाधार खोती गई. यही वजह है कि चंद्रशेखर और जिग्नेश मेवाणी जैसे नेताओं का उभार हो रहा है जो मायावती की सियासी जमीन खा सकते हैं. हालांकि ये इलेक्टोरल पॉलिटिक्स में कितने सफल होंगे, अभी यह नहीं कहा जा सकता.'
क्या दलित आंदोलनों से होगा बीजेपी को नुकसान?
हालांकि बीएसपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधींद्र भदौरिया कहते हैं, "मायावती दलितों की सबसे बड़ी नेता हैं. इस बात को सभी स्वीकार करते हैं. समाज इस बार उन्हें प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहता है. 2014 के बाद बीजेपी राज में जिस तरह से दलितों पर अत्याचार हुए हैं उसे समाज भूला नहीं है. चाहे वो ऊना में दलितों की पिटाई हो या सहारनपुर में. चाहे वो रोहित वेमुला का प्रश्न हो चाहे डॉ. आंबेडकर की मूर्तियां तोड़ने का मामला. मायावती जी ने दलितों की आवाज संसद से सड़क तक उठाई है. उन्होंने दलितों के लिए संसद से इस्तीफा दिया. निश्चित तौर पर दलित उनके साथ थे, हैं और रहेंगे. हम नहीं मानते कि दलित वोट बीएसपी से छिटका था. "
दूसरी ओर, बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता विजय सोनकर शास्त्री भदौरिया के दावे को खारिज करते हैं. शास्त्री के मुताबिक, “पीएम मोदी ने दलितों के लिए सबसे ज्यादा काम किए हैं, उनके हितों और अधिकारों की रक्षा की है. इसलिए उन्हें दलितों का पहले से ज्यादा समर्थन मिलेगा.”