गुपकर अलायंस की मुख्य पार्टियां नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी है. (फाइल फोटो)
(मुफ्ती इस्लाह)
जम्मू. जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) में डीडीसी चुनाव (DDC Election) पूरे हो चुके हैं. एक ओर जहां गुपकार गठबंधन (Gupkar Alliance) ने बहुमत हासिल किया, तो दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी (BJP) सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. हालांकि, आगामी विधानसभा के लिहाज से बीजेपी की जीत को नाकाफी माना जा रहा है. डीडीसी चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद पहली बार पार्टी के पदाधिकारियों से बात करते हुए नेशनल कॉन्फ्रेंस (National Conferance) के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्लाह (Omar Abdullah) ने बीजेपी का मजाक उड़ाया. उमर ने कहा 'मुझे नहीं लगता कि सरकार अब विधानसभा चुनाव का भोंपू बजाएगी.'
बीजेपी गुपकार की जीत को नहीं मानती
बीजेपी इस चुनाव में गुपकार गठबंधन की सफलता को मानने से इंकार कर रही है. पार्टी का कहना है कि हमने कश्मीर के लिए अपनी राह तैयार कर ली है. बीजेपी की अनुसार, विधानसभा चुनाव के लिए यह अहम साबित होगी. हालांकि, अंकगणित के लिहाज से पार्टी को कश्मीर की पार्टी और स्वतंत्र नीति निर्माताओं की जरूरत है. चुनाव के वक्त ये समीकरण सामने आएंगे.
नेशनल कॉन्फ्रेंस के समर्थन के बल पर चल रहे गुपकार गठबंधन ने बड़ी सफलता दर्ज की है. गठबंधन को जीतने वाले चेहरे चुनने के कम ही मौके मिले. क्योंकि नेता ब्लॉक स्तरीय नेताओं से विचार-विमर्श नहीं कर सके. वहीं, उम्मीदवारों को लेकर भी गठबंधन नेताओं के बीच थोड़ी ही चर्चाएं हो सकीं. सभी अनुमानों को मात देते हुए आर्टिकल 370 को दोबारा लगाए जाने की कसम खाकर खड़े हुए पार्टियों के इस दल ने घाटी में अच्छा प्रदर्शन किया और बीजेपी के मजबूत गढ़ माने जाने वाले जम्मू में सेंध भी लगाई.
कई लोगों का मानना है कि अगर स्टार प्रचारक जमीन पर पहुंचते, तो गुपकार गठबंधन बेहतर कर सकता था. यह सच है कि उनपर कई मौकों पर पाबंदियां लगाई गईं. उन्होंने प्रचार नहीं करना का फैसला किया. शायद उन्हें लगता था था कि यहां कोई भी निष्पक्ष चुनाव होने का कोई भरोसा नहीं था. गठबंधन के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्लाह और उनकी सहयोगी महबूबा मुफ्ती को कई मौकों पर घर में कैद किया गया. मुफ्ती के करीबी और डीडीसी उम्मीदवार वाहिद पारा को नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी ने पकड़ लिया. न्यायिक हिरासत के बाद उन्होंने पुलवामा में जीत दर्ज की.
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बीजेपी ने पीर पांजल और चिनाब घाटी के मुस्लिम बहुल इलाके में 2014 में 37 में से 25 सीटें जीती थीं. वहीं, 2018 में दोनों संसदीय सीटों पर कब्जा जमाया था. उम्मीद की जा रही थी कि आर्टिकल 370 हटाए जाने का फायदा मिलेगा, लेकिन 16 महीने बाद पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा. जानकार कहते हैं कि यह कारण हो सकता है कि पार्टी यहां लोगों को यह नहीं समझा पाई कि नई संवैधानिक व्यवस्था में नौकरी, शिक्षा और स्थानीय निवासियों को जमीन के मुद्दे पर उन्हें कैसे सुरक्षा मिलेगी.
अगर डीडीसी के नतीजे किसी भी तरह के संकेत हो सकते हैं, तो इसके दो कारण हो सकते हैं. पहला गुपकार गठबंधन केवल मुस्लिम इलाकों में ही नहीं, बल्कि जम्मू में भी सीटें जीतकर पूरे जम्मू-कश्मीर में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए तैयार है. दूसरा, गठबंधन जम्मू संभाग, किश्तवार और राजौरी के कुछ इलाकों में कांग्रेस और निर्दलीय के साथ समझदारी से सीटों का बंटवारा कर सकता है. कांग्रेस ने भी यहां बेहतर प्रदर्शन किया है. जिसका खामियाजा बीजेपी को उठाना पड़ा. कांग्रेस ने जम्मू में 27 में से 17 सीटें जीतीं. एनसी के साथ मिलकर पार्टी जम्मू में भी कम से कम 4 जिले लेने के लिए तैयार है.
घाटी की राजनीति में घुसने के लिए बीजेपी की नई पार्टियों के साथ काम करने वाली रणनीति असफल रही. बीजेपी ने अपनी पार्टी के साथ 30 जीतने की उम्मीद रखी थी. हालांकि, 12 सीटें शायद ही बीजेपी का भाग्य बदलने में मदद करें. इस चुनाव में गुपकार गठबंधन ने 20 जिलों में 280 सीटों में से 110 पर जीत दर्ज की है. जबकि, बीजेपी के खाते में घाटी की 3 सीटें समेत 75 सीटें आईं. गुपकार गठबंधन की यह जीत बीजेपी के उन नेताओं को करारा जवाब है, जो इसे गैंग कह रहे थे और इसके सदस्यों को 'राष्ट्र विरोधी', 'भ्रष्ट' और 'चोर' बता रहे थे.
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Tags: BJP, DDC Election, Gupkar Alliance, Jammu kashmir
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