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जेल को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट के जज ने की टिप्पणी, कहा- यह सुधारक संस्थान है, इसे ऐसे ही रहने दें

कैदी की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के जज ने की टिप्पणी.

कैदी की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के जज ने की टिप्पणी.

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि कैदियों के प्रति अधिकांश लोगों का रवैया बहुत सकारात्मक नहीं है और जो लोग कैदियों की तरफ से बो ...अधिक पढ़ें

नई दिल्ली. दिल्ली हाईकोर्ट ने जेल की कैदियों और जेल पर टिप्पणी करते हुए कहा कि लोकतंत्र में कैदियों की दुर्दशा बताती है कि राज्य को उनकी देखभाल कैसे करनी चाहिए. क्योंकि बहुत कम लोगों को जेल में बंद लोगों की फिक्र है और जेल सुधारक संस्थान हैं और उसे उसी रूप में जानना चाहिए. हाईकोर्ट के न्यायाधीश एक कैदी की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बात कही. इसके अलावा दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि कैदियों के प्रति अधिकांश लोगों का रवैया बहुत सकारात्मक नहीं है और जो लोग कैदियों की तरफ से बोलते हैं तो उन्हें कभी-कभी अपराध के पीड़ितों के प्रति कठोर मानते हैं.

हाईकोर्ट ने कहा कि मौलिक अधिकार कागज पर नहीं होने चाहिए और यह सुनिश्चित करना अदालतों की जिम्मेदारी है कि वे कानून बनें और व्यावहारिक रूप से नागरिकों की सहायता और मार्गदर्शन करें. न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने एक कैदी की याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि मानवाधिकार जेल कानूनों और नियमों की अनदेखी की गई है. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि न्यायालय की सजा के चलते समाज और परिवार से दूर कैदी आम जनता और अपने परिवारों के नजर से ओझल हो जाते हैं.

कोर्ट ने कहा कि यह समय है कि जेलों के अधिकारी, जो सुधार गृह हैं, कैदियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए उनके संरक्षक के रूप में काम करें ना कि केवल खुद को कैदियों के रूप में मानें. दिल्ली हाईकोर्ट ने तिहाड़ जेल के एक सजायफ्ता कैदी को मुआवजे के भुगतान और इसके संबंध में मामले की जांच की है, जिसे जेल कारखाने में काम करने के दौरान दाहिने हाथ की तीन उंगलियां काटनी पड़ी हैं. याचिकाकर्ता ने आर्टिफिशियल अंग प्रदान करने के लिए निर्देश जारी करने की मांग की थी.

कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इस मामले में आवेदक को हुई चोट और विकलांगता का आंकलन एक स्वतंत्र नागरिक की तुलना में दर्द और पीड़ा में कम नहीं किया जा सकता है. एक अपराधी और एक स्वतंत्र नागरिक के लिए चोट का दर्द अलग-अलग नहीं हो सकता है.

Tags: DELHI HIGH COURT

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