साल 1964 में
भारत और श्रीलंका के बीच इकलौते गांव धनुषकोटि के लिए 25 दिसंबर का दिन अच्छा नहीं रहा. 25 दिसंबर को आए एक तूफान ने पूरे धनुषकोटि को तबाह कर दिया था. 60 के दशक में यह जगह पर्यटन और तीर्थस्थल के रूप में विकसित हो रहा था. यहां से श्रीलंका सिर्फ 18 मील की दूरी पर है.
श्रीलंका स्थित सीलोन से धनुषकोटि के बीच यात्रियों और सामान को इस पार से उस पार ले जाने के लिए साप्ताहिक फेरी की सुविधा भी थी. यहां तीर्थयात्रियों और आम यात्रियों के लिए होटल, दुकानें और धर्मशालाएं भी थीं.
हिन्दू धर्म के पुराणों में भी धनुषकोटि का जिक्र है. इसका संबंध रामायण काल से बताया जाता है. ऐसी मान्यता है कि लंका में रावण का वध करने के बाद भगवान श्रीराम से वहां के राजा विभीषण ने कहा कि वह लंका तक जाने वाला सेतु तोड़ दें. इसके बाद श्रीराम ने विभीषण की बात मानते हुए धनुष से सेतु के एक छोर को तोड़ दिया और तभी से इसका नाम धनुषकोटि पड़ गया.
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तमिलनाडु के पूर्वी तट पर स्थित यह कस्बा साल 1964 में तबाह हो गया, जिसके बाद इसे भुतहा माना जाने लगा. लोगों का मानना है कि चक्रवात की घटना के बाद यहां आत्माओं का वास हो गया. साल 1964 में आए चक्रवात ने खूबसूरती को बर्बाद कर दिया.
चक्रवात वाले दिन यहां 20 फीट से भी ऊपर समुद्री लहरें उठीं और पूरे इलाके को बर्बाद कर दिया. इस हादसे में एक रेलगाड़ी भी चपेट में आई, जिसमें सौ से ज्यादा लोग सवार थे और सभी की मौत हो गई. सरकारी आंकड़ों की मानें तो इस हादसे में 1,800 से ज्यादा लोग मारे गए थे.
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चक्रवात के बाद यहां आने वाले लोगों को आसामान्य गतिविधियां महसूस हुईं. उन्हें वहां अपने आसपास किसी की मौजूदगी का आभास होता था. लोगों के अनुभवों के बाद तमिलनाडु सरकार ने इस इलाके को भुतहा करार देकर यहां लोगों के रहने पर पाबंदी लगा दी. इतना ही नहीं यह चेतावनी भी जारी की गई दिन ढलने के बाद यहां कोई नहीं रहेगा.
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FIRST PUBLISHED : December 25, 2018, 04:56 IST