चार दशक पहले साहिबी नदी की बाढ़ से दिल्ली भी प्रभावित थी
क्या आपको पता है कि रेवाड़ी और चमकते-दमकते गुड़गांव से होकर कभी कोई नदी बहती थी? हां, यहां एक नदी बहती थी. लेकिन हमारी लालच ने उसे निगल लिया.
इस नदी का नाम था साहिबी, जिसे सीबी भी कहते थे. जो जयपुर के जीतगढ़ नामक स्थान से निकलकर अलवर (राजस्थान), रेवाड़ी, गुड़गांव (हरियाणा) से होते हुए दिल्ली के नजफगढ़ नाले में मिल जाती थी. यह बारिश पर निर्भर थी.
जानकारों का कहना है कि 1980 तक इसमें पानी था. बारिश कम हुई तो यह सूख गई. इसके बाद हमने अलवर से लेकर गुड़गांव तक शहरों और कस्बों में जगह-जगह उसके ऊपर प्लाट काटकर बिल्डिंगें बना ली हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि एक नदी के गायब होने, उसके चोरी होने का यह घटनाक्रम कभी हमारे लिए ही विनाश लेकर आ सकता है. दिल्ली के सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग के अनुसार इस नदी में 1967 और 1977 बाढ़ आई थी. जिसका पानी जनकपुरी तक आ गया था.
इस नदी के बारे में कुछ जानकारी दिल्ली सरकार ने दी है
सरकार सरस्वती नदी को खोज रही है और जो नदी कुछ ही वर्ष पहले गायब हो गई, जिसकी जमीन पर कब्जे हो गए, उसके बारे में कोई काम नहीं हो रहा. अंधाधुंध शहरीकरण ने गुड़गांव और रेवाड़ी में इसका अस्तित्व तक नहीं छोड़ा.
गुड़गांव गवर्नमेंट कॉलेज के प्रिंसिपल रहे डॉ. अशोक दिवाकर कहते हैं कि उन्होंने इस नदी में आई 1977 की बाढ़ देखी है. रेवाड़ी के एक गांव में वह बाढ़ राहत कार्य करने गए थे. इसका पानी गुड़गांव के सेक्टर-14 स्थित गवर्नमेंट कॉलेज तक में आया था. चार दशक पहले तक जिस नदी में बाढ़ आती थी उसके सूखते ही हमारी लालच ने उसका नामोनिशान मिटा डाला.
जेएनयू में भूगोल से पीएचडी करने वाले डॉ. दिवाकर कहते हैं कि बाढ़ में जानमाल के नुकसान के लिए नदियां जिम्मेदार नहीं हैं. अब साहिबी नदी में कभी पानी भर जाए तो वह बाढ़ की शक्ल लेकर विनाश करेगी. क्योंकि हमने उसके घर में अपना घर बना लिया है. कभी साहिबी के क्षेत्र में तेज बारिश हुई तो विनाशलीला तय है.
हरियाणा सरकार के एक पुराने मैप में इस नदी का जिक्र है
साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स रीवर्स एंड पीपल' के कोर्डिनेटर हिमांशु ठक्कर कहते हैं कि उत्तराखंड की बाढ़ में हमने खिलौने की तरह घरों को गिरते देखा है. ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि हमने अपने घर नदी के एरिया के अंदर बनाए. इस तरह का खतरा साहिबी नदी पर कब्जे की वजह से भी आ सकता है. नदी की जमीन पर बिल्डिंगें बनाकर हमने अपने विनाश का खुद ही न्योता दे दिया है.
नदियों पर शोध करने वाले वैज्ञानिक एचएस सैनी कहते हैं कि यदि हमने प्रकृति के साथ छेड़छाड़ जारी रखी तो पानी से जुड़े खतरे बढ़ते रहेंगे. जब हम खुद खतरनाक क्षेत्र में बसेंगे तो कभी न कभी तो खतरा आएगा ही.
जियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया में डायरेक्टर रहे सैनी के एक रिसर्च पेपर के मुताबिक श्रीनगर की डल झील झेलम नदी का ही हिस्सा है. इसलिए जब कभी झेलम रौद्र रूप लेगी तो इसके आसपास तबाही तय है. श्रीनगर का काफी हिस्सा बाढ़ क्षेत्र में बसा हुआ है. इसी प्रकार दिल्ली का पूर्वी हिस्सा यमुना के बाढ़ क्षेत्र में बसा हुआ है. नदी के प्रवाह क्षेत्र में ही बसते जाना काफी खतरनाक साबित होगा.
नदी का रास्ता रोक कर हम खतरे को बुलावा दे रहे हैं: file photo
इस नदी के रास्ते में कब्जे के बारे में हमने राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग हरियाणा की अतिरिक्त प्रधान सचिव केसनी आनंद अरोड़ा से बात की. उन्होंने कहा कि ‘फ्लड आ जाए तो मैं संभाल लूंगी. बाकी इस पर जो कब्जों की बात है तो उसका जवाब नगर निगम देगा, जिसने इस पर कब्जे करवाए’.
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