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आई-डॉप डालते ही…झटपट हट जाएगा चश्‍मा, फिर भी क्‍यों संतुष्‍ट नहीं डॉक्‍टर्स? वजह भी जान लें

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एन्टोड फार्मास्यूटिकल्स की आई-ड्रॉप को क्‍लीनिकल ट्रायल के बाद केंद्र सरकारी की मंजूरी मिल गई है. जल्‍द ही इसका प्रोडक्‍शन शुरू हो जाएगा. अक्‍टूबर तक ये ड्रॉप बाजार में भी उपलब्‍ध होने लगेगी. भारत में यह अपनी तरह की पहली आई-ड्रॉप है.

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आई-डॉप डालते ही…झटपट हट जाएगा चश्‍मा, फिर भी क्‍यों संतुष्‍ट नहीं डॉक्‍टर्स?अक्‍टूबर में यह दावा मार्केट में आ रही है. (News18)
नई दिल्‍ली. इस साल अक्‍टूबर में भारत में पहली बार आंखों में डालने की एक ऐसी आई-ड्रॉप आ रही है जिससे महज 15 मिनट के अंदर कमजोर आंखे ठीक हो जाएंगी. हालांकि इसका असर केवल छह घंटे के लिए ही रहेगा. इसके बाद लोगों को फिर से ड्रॉप डालनी होगी. एन्टोड फार्मास्यूटिकल्स की ड्रॉप में यह दावा किया जा रहा है कि इसे डालने के बाद लोगों को कुछ भी पढ़ने या टीवी देखने के लिए चश्‍मा लगाने की जरूरत भी नहीं होगी. एन्टोड फार्मास्यूटिकल्स द्वारा लाई जा रही इस दवाई को लेकर आंखों के विशेषज्ञों का रिएक्‍शन कैसा है? चलिए हम आपको इसके बारे में बताते हैं.

कई आखों के विशेषज्ञों ने न्यूज18 को बताया कि चश्मे की जगह दोबारा इस्तेमाल की जा सकने वाली आई ड्रॉप लंबे समय में एक अच्छा विचार नहीं हो सकता है. ये ड्रॉप एक अस्थायी समाधान तो हो सकता हैं, लेकिन जीवन भर के लिए कोई समाधान या चमत्कारिक इलाज नहीं हो सकते. यह दवा ‘पिलोकार्पिन’ का उपयोग करके बनाई गई है जिसका उपयोग पिछले 75 वर्षों से ग्लूकोमा के उपचार में किया जाता रहा है.
दिल्‍ली एम्‍स के आई-स्‍पेशलिस्‍ट ने क्‍या कहा?
दिल्ली एम्‍स के नेत्र विज्ञान केंद्र के डॉ रोहित सक्सेना के अनुसार, ये बूंदें अल्पावधि के लिए अच्छी हैं, लेकिन दीर्घकालिक समाधान नहीं देती हैं. दवा की एक बूंद सिर्फ़ 15 मिनट में काम करना शुरू कर देती है और इसका असर अगले छह घंटों तक रहता है. अगर पहली बूंद के तीन से छह घंटे के भीतर दूसरी बूंद भी डाली जाए, तो इसका असर और भी लंबे समय तक, यानी नौ घंटे तक बना रहेगा.  उन्होंने कहा, “यह पढ़ने की समस्याओं के लिए एक अस्थायी समाधान है क्योंकि दवा का प्रभाव 4-6 घंटे तक रहेगा और बूंदों की जरूरत जीवन भर दिन में 1-2 बार होगी. मैं अभी भी चश्मे को बेहतर दीर्घकालिक समाधान मानता हूं क्योंकि दवा के साथ कुछ दुष्प्रभाव भी जुड़े हैं.
‘आई-ड्रॉप थके हुए घोड़े जैसी’
गुरुग्राम के नारायण सुपरस्पेशलिटी अस्पताल में नेत्र रोग विभाग के प्रमुख डॉ दिग्विजय सिंह ने कहा कि इन बूंदों का उपयोग थके हुए घोड़े को कोड़े मारने जैसा है. घोड़ा थोड़ा भागेगा लेकिन अंततः वह थक जाएगा और गिर जाएगा. इसी तरह, बूंदें अंतरिम अवधि के लिए मदद करेंगी लेकिन अंततः कमज़ोर मांसपेशियां थक जाएंगी और आपको चश्मा पहनना पड़ेगा, ये बूंदें अस्थायी व्यवस्था के रूप में काम कर सकती हैं लेकिन चमत्कारी इलाज के रूप में नहीं.

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Sandeep Gupta
पत्रकारिता में करीब 13 साल से सक्रिय. साल 2010 में दैनिक भास्‍कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण, पंजाब केसरी और जी समूह की वेबसाइट क्रिकेट कंट्री/ इंडिया डॉट कॉम में काम किया. इस दौ...और पढ़ें
पत्रकारिता में करीब 13 साल से सक्रिय. साल 2010 में दैनिक भास्‍कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण, पंजाब केसरी और जी समूह की वेबसाइट क्रिकेट कंट्री/ इंडिया डॉट कॉम में काम किया. इस दौ... और पढ़ें
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