FACT CHECK: क्या तबलीग वालों का प्रोडक्ट है रूह अफजा? जानें सोशल मीडिया पर वायरल दावों की हकीकत

Ruh Afza
रूह अफ्जा को लेकर जहन में एक अच्छी, साफ-सुथरी तस्वीर है, लेकिन सोशल मीडिया के जरिये अब इस तस्वीर बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है. सोशल मीडिया पर रूह अफ्जा के स्वाद में सांप्रदायिकता का ज़हर ‘घोला' जा रहा है और इसे बहिष्कार करने की अपील की जा रही है.
- News18Hindi
- Last Updated: April 25, 2020, 2:18 PM IST
नई दिल्ली. रूह अफजा (Rooh-Afza) से हर कोई वाकिफ होगा. 100 से ज्यादा साल पुराने गहरे लाल रंग के इस शरबत से हर किसी की कुछ ना कुछ यादें जरूर जुड़ी होंगी. मई- जून की गर्मियों में इस शरबत से प्यास बुझाना हो या रमजान में इफ्तार की दावत में रूह-अफजा की मौजूदगी हो या किसी लंगर में दूध और रूह अफजा (Rooh-Afza) से बना हुआ शर्बत का बंटना हो. इस शर्बत को लेकर जहन में एक अच्छी, साफ-सुथरी तस्वीर है. लेकिन सोशल मीडिया के जरिये अब इस तस्वीर बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है.सोशल मीडिया पर रूह अफ्जा के स्वाद में सांप्रदायिकता का ज़हर ‘घोला' जा रहा है और इसे बहिष्कार करने की अपील की जा रही है.
दावा किया जा रहा है रूह अफजा तबलीगी जमात का प्रोडक्ट है. इसको बनाने वाली कंपनी में तबलीग से जुड़े लोग काम करते हैं. चुंकि सोशल मीडिया पर तबलीग और कोरोना से जुड़ी अफवाहों का बाजार भी गरम है. इसलिए कई पोस्ट और ट्वीट में ये भी कहा जा रहा है कि तबलीगी जमात के लोग इसमें थूके भी होंगे. दूसरे दावा में ये कहा जा रहा है कि इसको बनाने वाली कंपनी हमदर्द में सिर्फ मुसलमान ही नौकरी कर सकते हैं.
देखें कुछ ट्वीट.




क्या है दावों का सच.
पहला दावा-रूह अफजा तबलीग़ी जमात का प्रोडक्ट है?
तबलीग जमात और रूह अफजा बनाने वाली कंपनी हमदर्द का दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है. जहां तबलीग जमात की शुरुआत 1926 मेवात प्रांत में हुई थी, वहीं ‘हमदर्द दवाखाना’ की नींव 1906 में पुरानी दिल्ली की गलियों में पड़ी. तबलीगी जमात का काम इस्लाम के प्रचार-प्रसार का हैं. वहीं हमदर्द का काम यूनानी पद्धति से दवा और पेय पदार्थ बनाने का है.
इस मामले पर हमदर्द कंपनी के चीफ़ सेल्स एंड मार्केटिंक ऑफ़िसर, मंसूर अली ने न्यूज 18 को बताया, सोशल मीडिया के जरिये हमारे ब्रांड की छवि खराब करने की कोशिश की जा रही है. ऐसी पोस्ट का मकसद, इस मुश्किल वक़्त में लोगों के बीच नफरत फैलाना और दरारें पैदा करना है. हम पर प्यार और भरोसा रखने वाले देशवासियों से अपील है कि वो इन नफ़रत फैलाने वाली पोस्ट्स के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ उठाते रहें. हम सरकारी एजेंसी के साथ ऐसी पोस्ट को हटाने का काम कर रहे हैं.
क्या हमदर्द में सिर्फ मुसलमान ही काम कर सकते हैं?
हमदर्द कंपनी में सिर्फ मुसलमान काम करते हैं इस दावे की पड़ताल पहले भी हो चुकी है, जिसमें ये दावा पूरी तरह फेक पाया गया. गूगल में इससे जुड़े की-वर्ड्स डालकर ये रिपोर्ट पढ़ी जा सकती है.
सोशल मीडिया पर किये गये ऐसे दावों पर मंसूर अली का कहना है कि हमदर्द कंपनी में किसी को नौकरी देने के लिए हम उस इंसान की योग्यता, अनुभव और मानवीय मुल्यों को आंकते हैं. इसी आधार पर नौकरी देने या ना देने का फैसला करते हैं. इसकी पुष्टि के लिए कोई भी देशभर में मौजूद हमारे ऑफ़िस, फ़ैक्ट्रियों या सेल्स टीम से मिल सकता है. सोशल मीडिया पर रूह अफ्जा को लेकर किये गये दोनों ही दावे झूठे हैं
आखिरी में रूह अफजा से जुड़ी एक और जानकारी आपको बताते हैं. रूह अफजा शब्द किताब 'मसनवी गुलज़ार ए नसीम' से लिया गया था. इस किताब को लिखने वाले लखनऊ के पंडित दया शंकर 'नसीम' थे.

दावा किया जा रहा है रूह अफजा तबलीगी जमात का प्रोडक्ट है. इसको बनाने वाली कंपनी में तबलीग से जुड़े लोग काम करते हैं. चुंकि सोशल मीडिया पर तबलीग और कोरोना से जुड़ी अफवाहों का बाजार भी गरम है. इसलिए कई पोस्ट और ट्वीट में ये भी कहा जा रहा है कि तबलीगी जमात के लोग इसमें थूके भी होंगे. दूसरे दावा में ये कहा जा रहा है कि इसको बनाने वाली कंपनी हमदर्द में सिर्फ मुसलमान ही नौकरी कर सकते हैं.
देखें कुछ ट्वीट.




क्या है दावों का सच.
पहला दावा-रूह अफजा तबलीग़ी जमात का प्रोडक्ट है?
तबलीग जमात और रूह अफजा बनाने वाली कंपनी हमदर्द का दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है. जहां तबलीग जमात की शुरुआत 1926 मेवात प्रांत में हुई थी, वहीं ‘हमदर्द दवाखाना’ की नींव 1906 में पुरानी दिल्ली की गलियों में पड़ी. तबलीगी जमात का काम इस्लाम के प्रचार-प्रसार का हैं. वहीं हमदर्द का काम यूनानी पद्धति से दवा और पेय पदार्थ बनाने का है.
इस मामले पर हमदर्द कंपनी के चीफ़ सेल्स एंड मार्केटिंक ऑफ़िसर, मंसूर अली ने न्यूज 18 को बताया, सोशल मीडिया के जरिये हमारे ब्रांड की छवि खराब करने की कोशिश की जा रही है. ऐसी पोस्ट का मकसद, इस मुश्किल वक़्त में लोगों के बीच नफरत फैलाना और दरारें पैदा करना है. हम पर प्यार और भरोसा रखने वाले देशवासियों से अपील है कि वो इन नफ़रत फैलाने वाली पोस्ट्स के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ उठाते रहें. हम सरकारी एजेंसी के साथ ऐसी पोस्ट को हटाने का काम कर रहे हैं.
क्या हमदर्द में सिर्फ मुसलमान ही काम कर सकते हैं?
हमदर्द कंपनी में सिर्फ मुसलमान काम करते हैं इस दावे की पड़ताल पहले भी हो चुकी है, जिसमें ये दावा पूरी तरह फेक पाया गया. गूगल में इससे जुड़े की-वर्ड्स डालकर ये रिपोर्ट पढ़ी जा सकती है.
सोशल मीडिया पर किये गये ऐसे दावों पर मंसूर अली का कहना है कि हमदर्द कंपनी में किसी को नौकरी देने के लिए हम उस इंसान की योग्यता, अनुभव और मानवीय मुल्यों को आंकते हैं. इसी आधार पर नौकरी देने या ना देने का फैसला करते हैं. इसकी पुष्टि के लिए कोई भी देशभर में मौजूद हमारे ऑफ़िस, फ़ैक्ट्रियों या सेल्स टीम से मिल सकता है. सोशल मीडिया पर रूह अफ्जा को लेकर किये गये दोनों ही दावे झूठे हैं
आखिरी में रूह अफजा से जुड़ी एक और जानकारी आपको बताते हैं. रूह अफजा शब्द किताब 'मसनवी गुलज़ार ए नसीम' से लिया गया था. इस किताब को लिखने वाले लखनऊ के पंडित दया शंकर 'नसीम' थे.