किसानों की समस्याओं का निकलेगा हल? कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने आज बुलाई किसान यूनियन की बैठक

कृषि मंत्री ने किसानों को कृषि सुधार कानूनों के फायदे गिनाए हैं. (फाइल फोटो)
कृषि कानून (Farm Law) पर प्रदर्शन कर रहे किसानों से केंद्र सरकार ने 14 अक्टूबर और 13 नवंबर को दो दौर की बातचीत की थी, लेकिन किसान अपनी मांग पर कायम हैें.
- News18Hindi
- Last Updated: December 1, 2020, 11:14 PM IST
नई दिल्ली. केंद्रीय कृषि कानूनों पर किसानों की ओर से दिल्ली बॉर्डर पर जारी विरोध प्रदर्शन के बीच कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने आंदोलनकारी किसानों को 1 दिसंबर को दोपहर 3 बजे बातचीत के लिए बुलाया है. केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि किसानों से अगले दौर की बातचीत 3 दिसंबर को होने वाली थी, लेकिन किसान प्रदर्शन कर रहे हैं और ठंड के साथ कोरोना वायरस संक्रमण का खतरा है, इसलिए मीटिंग पहले होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि हालात को देखते हुए पहले दौर की बातचीत में शामिल किसानों को 1 दिसंबर को दोपहर 3 बजे विज्ञान भवन में बातचीत के लिए बुलाया गया है.
तोमर ने कहा कि जब कृषि कानून बने थे तब कुछ लोगों ने किसानों के बीच भ्रम फैलाया. केंद्र सरकार ने 14 अक्टूबर और 13 नवंबर को किसानों के साथ दो दौर की बातचीत की थी, उस समय भी सरकार ने किसानों से कहा था कि विरोध प्रदर्शन का रास्ता ना अपनाएं. सरकार बातचीत के लिए तैयार है. बता दें कि कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान आने वाले समय में न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था समाप्त होने को लेकर चिंता जता रहे हैं. उन्हें यह आशंका भी है कि इन कानूनों से वे निजी कंपनियों के चंगुल में फंस जाएंगे.
सिंघु बार्डर पर एक प्रदर्शनकारी किसान रणवीर सिंह ने कहा, 'मैंने एपीएमसी (कृषि उपज बाजार समिति) मंडी में लगभग 125 क्विंटल खरीफ धान बेचा है और अपने बैंक खाते में एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) का भुगतान प्राप्त किया है. लेकिन क्या गारंटी है कि अगर मंडियों के बाहर इस तरह के व्यापार की अनुमति रही तो यह (एमएसपी की व्यवस्था) जारी रहेगी. यह हमारी चिंता है.'उधर, कोरोना वायरस खतरे के बीच विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान जिन स्थानों पर एकत्र हैं, वहां से कोविड-19 के गंभीर प्रसार की आशंका है, यहां अनेक किसानों ने मास्क नहीं पहन रखे हैं. प्रदर्शनकारी किसानों का कहना है कि उनके लिए नए कृषि कानून कोरोना वायरस से अधिक बड़ा खतरा हैं.
किसान सोमवार को पांचवें दिन भी राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं और दिल्ली के बुराड़ी मैदान में डटे रहे. इनमें से ज्यादातर किसान पंजाब और हरियाणा से हैं.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान से भी किसान उनका साथ देने पहुंचे हैं. दिल्ली में हर रोज महामारी के मामले बढ़ने के बीच विशेषज्ञों की चिंता किसानों के जमघट के चलते और भी गहरा गई है.
तोमर ने कहा कि जब कृषि कानून बने थे तब कुछ लोगों ने किसानों के बीच भ्रम फैलाया. केंद्र सरकार ने 14 अक्टूबर और 13 नवंबर को किसानों के साथ दो दौर की बातचीत की थी, उस समय भी सरकार ने किसानों से कहा था कि विरोध प्रदर्शन का रास्ता ना अपनाएं. सरकार बातचीत के लिए तैयार है. बता दें कि कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान आने वाले समय में न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था समाप्त होने को लेकर चिंता जता रहे हैं. उन्हें यह आशंका भी है कि इन कानूनों से वे निजी कंपनियों के चंगुल में फंस जाएंगे.
सिंघु बार्डर पर एक प्रदर्शनकारी किसान रणवीर सिंह ने कहा, 'मैंने एपीएमसी (कृषि उपज बाजार समिति) मंडी में लगभग 125 क्विंटल खरीफ धान बेचा है और अपने बैंक खाते में एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) का भुगतान प्राप्त किया है. लेकिन क्या गारंटी है कि अगर मंडियों के बाहर इस तरह के व्यापार की अनुमति रही तो यह (एमएसपी की व्यवस्था) जारी रहेगी. यह हमारी चिंता है.'उधर, कोरोना वायरस खतरे के बीच विशेषज्ञों ने चिंता जताई है कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान जिन स्थानों पर एकत्र हैं, वहां से कोविड-19 के गंभीर प्रसार की आशंका है, यहां अनेक किसानों ने मास्क नहीं पहन रखे हैं. प्रदर्शनकारी किसानों का कहना है कि उनके लिए नए कृषि कानून कोरोना वायरस से अधिक बड़ा खतरा हैं.
किसान सोमवार को पांचवें दिन भी राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं और दिल्ली के बुराड़ी मैदान में डटे रहे. इनमें से ज्यादातर किसान पंजाब और हरियाणा से हैं.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान से भी किसान उनका साथ देने पहुंचे हैं. दिल्ली में हर रोज महामारी के मामले बढ़ने के बीच विशेषज्ञों की चिंता किसानों के जमघट के चलते और भी गहरा गई है.