किसानों के पास MSP के लिए आंदोलन का पूरा हक, लेकिन इसके कारण इकॉनमी संकट में क्यों पड़े?

नए कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन कर रहे हैं. (पीटीआई इमेज)
किसान आंदोलन (Farmer's Protest) में हिस्सा ले रहे ज्यादातर किसान पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के हैं. इन चारों राज्यों की अर्थव्यवस्था (Economy) करीब 18 लाख करोड़ की है. सरकार और किसानों को यह मुद्दा जल्दी ही सुलझाना चाहिए क्योंकि आंदोलन की भी बड़ी कीमत है.
- News18Hindi
- Last Updated: December 17, 2020, 5:25 PM IST
नई दिल्ली. नए कृषि कानूनों (New Farm Laws) को लेकर किसानों (Farmers) और सरकार (Government) के बीच कोई सहमति बनती नहीं दिख रही है. एक तरफ सरकार का मानना है कि इससे किसानों का भला होगा तो वहीं किसान इस बात से डरे हुए हैं कि वो उद्योगपतियों के सामने निरीह खड़े होंगे. यही कारण है कि न्यूनतम समर्थनम मूल्य (MSP) को लेकर किसान लगातार नए कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. बुधवार को इस मामले से संबंधित याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि एक कमेटी बनाई जाएगी जो दोनों पक्षों को सुनेगी. लेकिन इन सबके बीच अर्थव्यवस्था मुश्किल में है.
सिर्फ कृषि क्षेत्र में हुई वृद्धि
दरअसल वित्तीय वर्ष21 की पहली तिमाही में कृषि क्षेत्र इकलौता सेक्टर था जो 3.4 फीसदी से बढ़ा. अगर इसके अलावा देखा जाए तो पूरी अर्थव्यवस्था 23.9 प्रतिशत तक घटी. दूसरी तिमाही में जब जीडीपी दोबारा घटी तब भी कृषि सेक्टर की ग्रोथ 7.5 प्रतिशत रही. किसान आंदोलन में हिस्सा ले रहे ज्यादातर किसान पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के हैं. इन चारों राज्यों की अर्थव्यवस्था करीब 18 लाख करोड़ की है. सरकार और किसानों को यह मुद्दा जल्दी ही सुलझाना चाहिए क्योंकि आंदोलन की भी बड़ी कीमत है.
हर दिन हो रहा है तीन से साढ़े तीन हजार करोड़ का नुकसानAssocham के विश्लेषण के मुताबिक इस वक्त वैल्यू चेन और ट्रांसपोर्ट में दिक्कतों की वजह से तकरीबन रोज तीन से साढ़े तीन हजार करोड़ का नुकसान हो रहा है. कोरोना की वजह से 68 दिनों तक चले सख्त लॉकडाउन के कारण पहले से सप्लाई चेन की कमर टूटी हुई थी. बीते कुछ महीने में इसने रिकवर करना शुरू किया था लेकिन अब एक बार फिर ये मुश्किलों में आ गई है. Confederation Of All India Traders (CAIT ) के मुताबिक दिल्ली और उसके आस-पास के इलाकों में व्यापार एवं अन्य गतिविधियों में अब तक करीब 5 हजार करोड़ का नुकसान हो चुका है.
आर्थिक के अलावा भी अन्य कई नुकसान
आंदोलन न सिर्फ अर्थव्यवस्था पर असर डाल रहा है बल्कि इसका असर जिंदगियों पर भी हो रहा है. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक आंदोलन के दौरान तकरीबन हर रोज एक किसान की मौत हुई और अब तक 20 किसान अपनी जान गंवा चुके हैं. नए कानून का राजनीतिक नुकसान भी है. सत्ताधारी दल बीजेपी अपने सबसे पुरानी सहयोगी अकाली दल का साथ खो चुकी है. अकाली दल ने नए कानूनों को लेकर न सिर्फ सरकार छोड़ी बल्कि एनडीए से भी अलग हो गई.
(Vinay K Srivastava का यह पूरा लेख यहां क्लिक कर पढ़ा जा सकता है.)
सिर्फ कृषि क्षेत्र में हुई वृद्धि
दरअसल वित्तीय वर्ष21 की पहली तिमाही में कृषि क्षेत्र इकलौता सेक्टर था जो 3.4 फीसदी से बढ़ा. अगर इसके अलावा देखा जाए तो पूरी अर्थव्यवस्था 23.9 प्रतिशत तक घटी. दूसरी तिमाही में जब जीडीपी दोबारा घटी तब भी कृषि सेक्टर की ग्रोथ 7.5 प्रतिशत रही. किसान आंदोलन में हिस्सा ले रहे ज्यादातर किसान पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के हैं. इन चारों राज्यों की अर्थव्यवस्था करीब 18 लाख करोड़ की है. सरकार और किसानों को यह मुद्दा जल्दी ही सुलझाना चाहिए क्योंकि आंदोलन की भी बड़ी कीमत है.
हर दिन हो रहा है तीन से साढ़े तीन हजार करोड़ का नुकसानAssocham के विश्लेषण के मुताबिक इस वक्त वैल्यू चेन और ट्रांसपोर्ट में दिक्कतों की वजह से तकरीबन रोज तीन से साढ़े तीन हजार करोड़ का नुकसान हो रहा है. कोरोना की वजह से 68 दिनों तक चले सख्त लॉकडाउन के कारण पहले से सप्लाई चेन की कमर टूटी हुई थी. बीते कुछ महीने में इसने रिकवर करना शुरू किया था लेकिन अब एक बार फिर ये मुश्किलों में आ गई है. Confederation Of All India Traders (CAIT ) के मुताबिक दिल्ली और उसके आस-पास के इलाकों में व्यापार एवं अन्य गतिविधियों में अब तक करीब 5 हजार करोड़ का नुकसान हो चुका है.
आर्थिक के अलावा भी अन्य कई नुकसान
आंदोलन न सिर्फ अर्थव्यवस्था पर असर डाल रहा है बल्कि इसका असर जिंदगियों पर भी हो रहा है. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक आंदोलन के दौरान तकरीबन हर रोज एक किसान की मौत हुई और अब तक 20 किसान अपनी जान गंवा चुके हैं. नए कानून का राजनीतिक नुकसान भी है. सत्ताधारी दल बीजेपी अपने सबसे पुरानी सहयोगी अकाली दल का साथ खो चुकी है. अकाली दल ने नए कानूनों को लेकर न सिर्फ सरकार छोड़ी बल्कि एनडीए से भी अलग हो गई.
(Vinay K Srivastava का यह पूरा लेख यहां क्लिक कर पढ़ा जा सकता है.)