राहुल गांधी के लिए पार्टी नेताओं ने प्रतिक्रियाएं दी हैं, लेकिन वे नरसिम्हा राव के अरेस्ट होने पर चुप थे. ( फाइल फोटो)
नई दिल्ली. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की लोकसभा सदस्यता जाने के बाद कांग्रेस नेताओं ने अपनी-अपनी प्रतिक्रिया दी है और उन्होंने एक विरोध रैली भी निकाली. कांग्रेस नेताओं ने इस कार्रवाई को विपक्ष की आवाज दबाने और फ्रीडम ऑफ स्पीच का उल्लंघन तक बता दिया है. इस बीच सवाल यह भी है कि यही कांग्रेस उस वक्त चुप थी जब पूर्व पीएम ओर वरिष्ठ कांग्रेस नेता नरसिम्हा राव अरेस्ट हुए थे. तब कांग्रेस ने ऐसा प्रदर्शन नहीं किया था, न ही कांग्रेस नेताओं की कोई टिप्पणी सामने आई थी. अब लोगों को सन 2000 का वह घटनाक्रम याद आया है.
राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द करने की कार्रवाई को कुछ नेताओं ने मुद्दों से भटकाने की कोशिश, राहुल गांधी को डराने की कोशिश कहा है. कांग्रेस राहुल गांधी पर हुई कार्रवाई पर सड़कों पर उतरने की तैयारी कर रही है तो दूसरी तरफ कांग्रेस नेताओं ने कहा है कि राहुल गांधी, अपनी दादी इंदिरा गांधी की तरह पूर्ण बहुमत के साथ वापसी करेंगे. हालांकि, पार्टी में ऐसा पहली बार हुआ है. पार्टी नेता राहुल गांधी के लिए तो आगे आए हैं, लेकिन उन्होंने वरिष्ठ कांग्रेस नेता नरसिम्हा राव की अरेस्ट पर मौन साध लिया था. यह मामला सन 2000 का था जब उन्हें तीन आरोपों का सामना करना पड़ा था.
आपराधिक आरोपों अरेस्ट हुए थे पीवी नरसिम्हा राव
पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव को औपचारिक रूप से गिरफ्तार किया गया था. फिर उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया था. भारत के स्वतंत्र राजनीतिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था जब किसी पूर्व प्रधानमंत्री को आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार किया गया हो. हालांकि इंदिरा गांधी गिरफ्तार और जेल जाने वाली पहली पूर्व प्रधानमंत्री थी, उन्हें संसद की अवमानना के लिए तीन दिनों के लिए जेल भेज दिया गया था. दरअसल राव पर आरोप था कि 1989 में भारत के न्यूयॉर्क वाणिज्य दूतावास से यह प्रमाणित करने को कहा था कि कैरेबियाई द्वीप सेंट किट्स में एक अवैध बैंक खाता था जिसका संबंध राव के प्रतिद्वंद्वी के बेटे से था. हालांकि राव यह जानते थे कि दस्तावेज झूठे हैं. दूसरा आरोप था कि तत्कालीन विदेश मंत्री राव के सहयोगी एक पुजारी को एक बिजनेसमैन ने 100,000 डॉलर की रिश्वत देने की बात स्वीकार की थी. तीसरा आरोप था कि राव ने प्रधानमंत्री के रूप में 1993 में विश्वास मत के दौरान उनका समर्थन करने के लिए संसद सदस्यों को रिश्वत दी थी.
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