नई आपदा: आपकी प्लेट में रखी मछली कितनी है सेफ? चौंकाती है ये स्टडी

तमिलनाडु के कई शहरों में मछली फार्म में पानी की गुणवत्ता का सबसे खराब स्तर पाया गया, जबकि आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल के साथ-साथ पुद्दुचेरी के फार्म में उच्च स्तर का सीसा मिला है.
241 फिश फार्म (Fish Farms) पर की गई एक इंवेस्टिगेटिव स्टडी में चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं. 10 राज्यों के 241 मछली फार्मों पर की गई इस स्टडी में पता चला है कि इन फार्मों में सीसा (Lead) और कैडमियम (Cadmium) की ज्यादा मात्रा है. ये स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा मानकों का गंभीर उल्लंघन करती है.
- News18Hindi
- Last Updated: January 20, 2021, 11:48 AM IST
नई दिल्ली. कोरोना संक्रमण को लेकर चल रहे वैक्सीनेशन के बीच देश के 14 राज्यों में बर्ड फ्लू (Bird Flu) फैल चुका है. बर्ड फ्लू की वजह से कई राज्यों में चिकन और अंडे की शॉप बंद हैं. ऐसे में मछली और मटन की मांग बढ़ी है. लोग चिकन-अंडे के रिप्लेसमेंट के तौर पर इसका ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं. मगर आपने कभी सोचा है कि आप जो मछली खा रहे हैं वो कितनी सेफ है?
दरअसल, 241 फिश फार्म पर की गई एक इंवेस्टिगेटिव स्टडी में चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं. 10 राज्यों के 241 मछली फार्मों पर की गई इस स्टडी में पता चला है कि इन फार्मों में सीसा और कैडमियम की ज्यादा मात्रा है. ये स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा मानकों का गंभीर उल्लंघन करती है.
तमिलनाडु के कई शहरों में मछली फार्म में पानी की गुणवत्ता का सबसे खराब स्तर पाया गया, जबकि आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल के साथ-साथ पुडुचेरी के फार्म में उच्च स्तर का सीसा मिला है, जो इंसान के लिए जानलेवा है. तमिलनाडु, बिहार और ओडिशा के मछली फार्म पर्यावरण के लिए सबसे अधिक हानिकारक पाए गए हैं.
बर्ड फ्लू के बीच इन राज्यों के लोग खूब खा रहे हैं मछली, जानें रेट और इसके फायदेदूषित मछलियां
दक्षिण भारत के राज्यों में मछली के फार्म में सीसा और कैडमियम की सबसे ज्यादा मात्रा मिली है. इन दोनों तत्वों के मानव शरीर में प्रवेश करने पर कोशिकाएं डैमेज हो जाती हैं. अक्सर कहा जाता है कि स्वस्थ रहने के लिए ज्यादा से ज्यादा अपने आहार में मछली को शामिल करना चाहिए. क्योंकि मछली में प्रोटीन और ओमेगा 3 फैटी एसिड होता है. जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है. ऐसे में डॉक्टर प्रेग्नेंट महिलाओं को खाने में मछली शामिल करने की सलाह देते हैं. ऐसे में इस स्टडी से चिंता और बढ़ जाती है.
एक्वाकल्चर सर्वे के जांचकर्ताओं ने पाया कि लगभग 40 प्रतिशत फार्म बीमारी के प्रकोप को रोकने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल करते हैं. इससे न सिर्फ इंसानों बल्कि मछलियों के लिए भी बड़ा खतरा पैदा होता है.
प्रदूषित पानी में सांस नहीं ले पातीं मछलियां
इस रिपोर्ट के प्रमुख कौशिक राघवन ने News18 को बताया, 'अधिकांश मछली फार्मों को नाइट्रोजन के ओवरडोज की समस्या का सामना करना पड़ता है, जिससे तालाबों में अल्गल फूल पैदा होते हैं. यह सबसे सघन मछली फार्मों द्वारा नियोजित होती है. नाइट्रोजन से मछलियों को सांस लेने में दिक्कत होती है.
राघवन ने News18 को बताया, 'यूट्रोफिकेशन से तालाबों के निचले हिस्से में ऑक्सीजन की आपूर्ति में कटौती हुई है, जिससे लाखों मछलियों को सांस के लिए हांफना पड़ता है.'
2020 में केरल में 2,000 किलोग्राम से अधिक मछलियों को नष्ट कर दिया गया था, क्योंकि उन्हें औपचारिक रूप से भारी मात्रा में दूषित पाया गया था. दिल्ली जैसे अन्य राज्यों में भी कई फार्मों में ऐसी ही मछलियां बर्बाद हो गईं, वो प्रदूषित थीं और उन्हें खाया नहीं जा सकता था.
फेडरेशन ऑफ इंडियन एनिमल प्रोटेक्शन ऑर्गनाइजेशन (FIAPO) की कार्यकारी निदेशक, वर्दा मेहरोत्रा ऑल क्रिएचर्स ग्रेट एंड स्मॉल (ACGS) के सहयोग से मछली फार्म पर स्टडी कर रही हैं. उन्होंने News18 को बताया कि देश में कई अनियमित मछली फार्म चल रहे हैं, जिनमें गाइडलाइन का पालन नहीं किया जाता.
चीन का दावा-भारत से आए मछली के पैकेटों पर कोरोना वायरस
द प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स (स्लॉटर हाउस) रूल्स, 2001 और फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स (लाइसेंसिंग एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ फूड बिजनेस्स) रेगुलेशन, 2011 के अनुसार, काटने से पहले किसी भी मछली समेत किसी भी जानवर को स्वस्थ्य रहना चाहिए. लाइसेंस प्राप्त बूचड़खानों में भी इसका खयाल रखा जाता है, लेकिन कई मछली फार्म में इसका पालन नहीं किया जा रहा.
भारत के मछली की आपूर्ति का लगभग दो-तिहाई हिस्सा मछली फार्मों से आता है. ऐसे में इस स्टडी से चिंता बढ़ जाती है कि बर्ड फ्लू संकट के बीच मछली चिकन का रिप्लेसमेंट बन रही है. लिहाजा मछली फार्म जो एक 'जलीय आपदा' के कगार पर हैं, कैसे खुद को इससे बाहर निकाल सकते हैं. (अंग्रेजी में इस आर्टिकल को पूरा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
दरअसल, 241 फिश फार्म पर की गई एक इंवेस्टिगेटिव स्टडी में चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं. 10 राज्यों के 241 मछली फार्मों पर की गई इस स्टडी में पता चला है कि इन फार्मों में सीसा और कैडमियम की ज्यादा मात्रा है. ये स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा मानकों का गंभीर उल्लंघन करती है.
तमिलनाडु के कई शहरों में मछली फार्म में पानी की गुणवत्ता का सबसे खराब स्तर पाया गया, जबकि आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल के साथ-साथ पुडुचेरी के फार्म में उच्च स्तर का सीसा मिला है, जो इंसान के लिए जानलेवा है. तमिलनाडु, बिहार और ओडिशा के मछली फार्म पर्यावरण के लिए सबसे अधिक हानिकारक पाए गए हैं.
बर्ड फ्लू के बीच इन राज्यों के लोग खूब खा रहे हैं मछली, जानें रेट और इसके फायदेदूषित मछलियां
दक्षिण भारत के राज्यों में मछली के फार्म में सीसा और कैडमियम की सबसे ज्यादा मात्रा मिली है. इन दोनों तत्वों के मानव शरीर में प्रवेश करने पर कोशिकाएं डैमेज हो जाती हैं. अक्सर कहा जाता है कि स्वस्थ रहने के लिए ज्यादा से ज्यादा अपने आहार में मछली को शामिल करना चाहिए. क्योंकि मछली में प्रोटीन और ओमेगा 3 फैटी एसिड होता है. जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है. ऐसे में डॉक्टर प्रेग्नेंट महिलाओं को खाने में मछली शामिल करने की सलाह देते हैं. ऐसे में इस स्टडी से चिंता और बढ़ जाती है.
एक्वाकल्चर सर्वे के जांचकर्ताओं ने पाया कि लगभग 40 प्रतिशत फार्म बीमारी के प्रकोप को रोकने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल करते हैं. इससे न सिर्फ इंसानों बल्कि मछलियों के लिए भी बड़ा खतरा पैदा होता है.
प्रदूषित पानी में सांस नहीं ले पातीं मछलियां
इस रिपोर्ट के प्रमुख कौशिक राघवन ने News18 को बताया, 'अधिकांश मछली फार्मों को नाइट्रोजन के ओवरडोज की समस्या का सामना करना पड़ता है, जिससे तालाबों में अल्गल फूल पैदा होते हैं. यह सबसे सघन मछली फार्मों द्वारा नियोजित होती है. नाइट्रोजन से मछलियों को सांस लेने में दिक्कत होती है.
राघवन ने News18 को बताया, 'यूट्रोफिकेशन से तालाबों के निचले हिस्से में ऑक्सीजन की आपूर्ति में कटौती हुई है, जिससे लाखों मछलियों को सांस के लिए हांफना पड़ता है.'
2020 में केरल में 2,000 किलोग्राम से अधिक मछलियों को नष्ट कर दिया गया था, क्योंकि उन्हें औपचारिक रूप से भारी मात्रा में दूषित पाया गया था. दिल्ली जैसे अन्य राज्यों में भी कई फार्मों में ऐसी ही मछलियां बर्बाद हो गईं, वो प्रदूषित थीं और उन्हें खाया नहीं जा सकता था.
फेडरेशन ऑफ इंडियन एनिमल प्रोटेक्शन ऑर्गनाइजेशन (FIAPO) की कार्यकारी निदेशक, वर्दा मेहरोत्रा ऑल क्रिएचर्स ग्रेट एंड स्मॉल (ACGS) के सहयोग से मछली फार्म पर स्टडी कर रही हैं. उन्होंने News18 को बताया कि देश में कई अनियमित मछली फार्म चल रहे हैं, जिनमें गाइडलाइन का पालन नहीं किया जाता.
चीन का दावा-भारत से आए मछली के पैकेटों पर कोरोना वायरस
द प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स (स्लॉटर हाउस) रूल्स, 2001 और फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स (लाइसेंसिंग एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ फूड बिजनेस्स) रेगुलेशन, 2011 के अनुसार, काटने से पहले किसी भी मछली समेत किसी भी जानवर को स्वस्थ्य रहना चाहिए. लाइसेंस प्राप्त बूचड़खानों में भी इसका खयाल रखा जाता है, लेकिन कई मछली फार्म में इसका पालन नहीं किया जा रहा.
भारत के मछली की आपूर्ति का लगभग दो-तिहाई हिस्सा मछली फार्मों से आता है. ऐसे में इस स्टडी से चिंता बढ़ जाती है कि बर्ड फ्लू संकट के बीच मछली चिकन का रिप्लेसमेंट बन रही है. लिहाजा मछली फार्म जो एक 'जलीय आपदा' के कगार पर हैं, कैसे खुद को इससे बाहर निकाल सकते हैं. (अंग्रेजी में इस आर्टिकल को पूरा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)