सरकार इन 3 विकल्पों से हल कर सकती है किसानों की समस्या

कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं किसान. (Pic- ANI)
Farmer Protest: गुरुवार को किसानों के प्रदर्शन का आठवां दिन है. ये सभी किसान सरकार से तीनों कृषि कानून वापस लेने की मांग कर रहे हैं.
- News18Hindi
- Last Updated: December 3, 2020, 11:57 AM IST
नई दिल्ली. केंद्र सरकार द्वारा लाए गए 3 कृषि कानूनों (Farm Laws) का विरोध कर रहे किसान (Farmers Protest) दिल्ली कूच करने के लिए राजधानी की सभी सीमाओं पर डटे हुए हैं. गुरुवार को उनके प्रदर्शन का आठवां दिन है. ये सभी किसान सरकार से तीनों कृषि कानून वापस लेने की मांग कर रहे हैं. किसानों की समस्या हल करने के लिए सरकार आज एक बार फिर से किसानों से बातचीत करेगी. उम्मीद जताई जा रही है कि इस बैठक में समस्या का हल निकल आए. वहीं सरकार के पास कुछ और भी विकल्प हैं, जिनके जरिये कृषि कानूनों से संबंधित किसानों की समस्याओं को हल किया जा सकता है.
न्यूनतम मूल्य
किसानों ने सभी प्रमुख कृषि उत्पादन के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP की गारंटी देने वाले कानून की मांग की है. इसका कानून का उद्देश्य किसी भी कृषि उत्पाद की बिक्री को उसकी एमएसपी सीमा से नीचे होने पर उसे गैरकानूनी बनाना है. ऐसे कानून के लिए हालांकि कुछ आर्थिक रुकावटें भी हैं. जैसे कि मुद्रास्फीति पर पड़ने वाला इसका प्रभाव. जबकि किसान एक तरह से उत्पादन के मूल्य की गारंटी चाहते हैं. वहीं, सरकार उसके बेहतर मूल्य के लिए सुधारों पर ध्यान दे रही है.
विशेषज्ञों का कहना है कि रिटर्न को आश्वस्त करने के कई तरीके हैं, जैसे कि प्राइस डेफिसिएंसी मेकेनिज्म. विशेषज्ञों के मुताबिक सरकार इस प्रणाली को किसानों के साथ वार्ता में एक विकल्प के तौर पर रख सकती है. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में स्वतंत्र सलाहकार रोहिणी माली ने कहा कि मध्य प्रदेश में इस प्रणाली को चलाने की कोशिश की गई. इसमें थोड़े सुधार की जरूरत है. लेकिन जब बाजार में गिरावट होती है तो यह भरपाई करने का बेहतर तरीका हो सकता है. इस प्रणाली के तहत सरकार किसानों को बाजार मूल्य और एमएसपी के बीच हुए पैसे के अंतर का भुगतान करती है.
पराली जलाना
केंद्र सरकार की ओर से अक्टूबर में दिल्ली-एनसीआर और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग स्थापित करने के लिए एक अध्यादेश लाई थी. इस नए कानून का मकसद दिल्ली में रोजाना हो रहे वायु प्रदूषण में कटौती करना है. इस प्रदूषण का एक बड़ा कारण पराली जलाना भी है. इस अध्यादेश ने किसानों को कुछ लिहाज से नाराज कर दिया है क्योंकि इसके अंतर्गत पराली जलाने पर 1 साल की जेल और 1 करोड़ रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है. इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमेटी के किरण कुमार विस्सा का कहना है कि यह अध्यादेश किसानों की आशंकाओं को और अधिक पुख्ता करता है कि केंद्र सरकार समस्या के समाधान पक्के समाधान की अपेक्षा बलपूर्वक वाले तरीके अपना रही है.
किसान सरकार से पराली या पुआल को वैकल्पिक डिस्पोजल बनाने के लिए प्रति क्विंटल 200 रुपये की मांग कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि सरकार किसानों को 100 रुपये प्रति क्विंटल मूल्य देने पर विचार करे. धान उत्पादन क्षेत्र तीन राज्यों पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में 60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है. यह देखते हुए सरकार एक केंद्रीय सब्सिडी योजना ला सकती है. इसके तहत पराली को जलाने से रोकने के लिए प्रति क्विंटल धान खरीद के लिए सरकार किसानों के खातों में डायरेक्ट कैश ट्रांसफर करे. एलाएंस फॉर सस्टेनेबल एंड हॉलिस्टिक एग्रीकल्चर की कविता कुरुगांती के अनुसार इससे किसान प्रदूषण के खिलाफ नए कानून की आशंकाओं से बाहर आ सकते हैं.
बाजार
कानूनों के तहत प्रस्तावित फ्री मार्केट या मुक्त बाजार में व्यापारियों को कोई शुल्क नहीं देना पड़ता है. किसानों को चिंता है कि राज्य सरकारों द्वारा नियंत्रित नोटिफाइड मार्केट से प्रतिस्पर्धा के तहत फ्री मार्केट खोलने के कदम से पारंपरिक बाजारों खत्म हो सकते हैं. पारंपरिक बाजार राज्य के राजस्व का एक बड़ा स्रोत होते हैं. पंजाब में वो गेहूं खरीद पर 6% शुल्क के रूप में लेते हैं. इसमें 3% बाजार शुल्क और 3% ग्रामीण विकास शुल्क होता है. गैर-बासमती धान पर 6% शुल्क भी था जबकि बासमती धान के लिए 4.25% शुल्क लिया गया था. सितंबर 2020 में केंद्र के नए कानून लागू होने के बाद पंजाब को बासमती चावल पर बाजार शुल्क और ग्रामीण विकास शुल्क को 2% से घटाकर 1% करने के लिए मजबूर किया गया था.

तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री आरएस मणि के अनुसार सरकार नए कानूनों के तहत यह नियम ला सकती है कि सरकारी खरीद पारंपरिक बाजारों से अनिवार्य रूप से की जाएगी. जबकि अन्य निजी व्यापार फ्री मार्केट में साथ ही साथ किया जा सकेगा. यह कदम भविष्य में यह दिखाएगा कि कौन सा बाजार किसानों के लिए बेहतर हो सकता है.
न्यूनतम मूल्य
किसानों ने सभी प्रमुख कृषि उत्पादन के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP की गारंटी देने वाले कानून की मांग की है. इसका कानून का उद्देश्य किसी भी कृषि उत्पाद की बिक्री को उसकी एमएसपी सीमा से नीचे होने पर उसे गैरकानूनी बनाना है. ऐसे कानून के लिए हालांकि कुछ आर्थिक रुकावटें भी हैं. जैसे कि मुद्रास्फीति पर पड़ने वाला इसका प्रभाव. जबकि किसान एक तरह से उत्पादन के मूल्य की गारंटी चाहते हैं. वहीं, सरकार उसके बेहतर मूल्य के लिए सुधारों पर ध्यान दे रही है.
विशेषज्ञों का कहना है कि रिटर्न को आश्वस्त करने के कई तरीके हैं, जैसे कि प्राइस डेफिसिएंसी मेकेनिज्म. विशेषज्ञों के मुताबिक सरकार इस प्रणाली को किसानों के साथ वार्ता में एक विकल्प के तौर पर रख सकती है. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में स्वतंत्र सलाहकार रोहिणी माली ने कहा कि मध्य प्रदेश में इस प्रणाली को चलाने की कोशिश की गई. इसमें थोड़े सुधार की जरूरत है. लेकिन जब बाजार में गिरावट होती है तो यह भरपाई करने का बेहतर तरीका हो सकता है. इस प्रणाली के तहत सरकार किसानों को बाजार मूल्य और एमएसपी के बीच हुए पैसे के अंतर का भुगतान करती है.
पराली जलाना
केंद्र सरकार की ओर से अक्टूबर में दिल्ली-एनसीआर और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग स्थापित करने के लिए एक अध्यादेश लाई थी. इस नए कानून का मकसद दिल्ली में रोजाना हो रहे वायु प्रदूषण में कटौती करना है. इस प्रदूषण का एक बड़ा कारण पराली जलाना भी है. इस अध्यादेश ने किसानों को कुछ लिहाज से नाराज कर दिया है क्योंकि इसके अंतर्गत पराली जलाने पर 1 साल की जेल और 1 करोड़ रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है. इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमेटी के किरण कुमार विस्सा का कहना है कि यह अध्यादेश किसानों की आशंकाओं को और अधिक पुख्ता करता है कि केंद्र सरकार समस्या के समाधान पक्के समाधान की अपेक्षा बलपूर्वक वाले तरीके अपना रही है.
किसान सरकार से पराली या पुआल को वैकल्पिक डिस्पोजल बनाने के लिए प्रति क्विंटल 200 रुपये की मांग कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि सरकार किसानों को 100 रुपये प्रति क्विंटल मूल्य देने पर विचार करे. धान उत्पादन क्षेत्र तीन राज्यों पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में 60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है. यह देखते हुए सरकार एक केंद्रीय सब्सिडी योजना ला सकती है. इसके तहत पराली को जलाने से रोकने के लिए प्रति क्विंटल धान खरीद के लिए सरकार किसानों के खातों में डायरेक्ट कैश ट्रांसफर करे. एलाएंस फॉर सस्टेनेबल एंड हॉलिस्टिक एग्रीकल्चर की कविता कुरुगांती के अनुसार इससे किसान प्रदूषण के खिलाफ नए कानून की आशंकाओं से बाहर आ सकते हैं.
बाजार
कानूनों के तहत प्रस्तावित फ्री मार्केट या मुक्त बाजार में व्यापारियों को कोई शुल्क नहीं देना पड़ता है. किसानों को चिंता है कि राज्य सरकारों द्वारा नियंत्रित नोटिफाइड मार्केट से प्रतिस्पर्धा के तहत फ्री मार्केट खोलने के कदम से पारंपरिक बाजारों खत्म हो सकते हैं. पारंपरिक बाजार राज्य के राजस्व का एक बड़ा स्रोत होते हैं. पंजाब में वो गेहूं खरीद पर 6% शुल्क के रूप में लेते हैं. इसमें 3% बाजार शुल्क और 3% ग्रामीण विकास शुल्क होता है. गैर-बासमती धान पर 6% शुल्क भी था जबकि बासमती धान के लिए 4.25% शुल्क लिया गया था. सितंबर 2020 में केंद्र के नए कानून लागू होने के बाद पंजाब को बासमती चावल पर बाजार शुल्क और ग्रामीण विकास शुल्क को 2% से घटाकर 1% करने के लिए मजबूर किया गया था.
तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री आरएस मणि के अनुसार सरकार नए कानूनों के तहत यह नियम ला सकती है कि सरकारी खरीद पारंपरिक बाजारों से अनिवार्य रूप से की जाएगी. जबकि अन्य निजी व्यापार फ्री मार्केट में साथ ही साथ किया जा सकेगा. यह कदम भविष्य में यह दिखाएगा कि कौन सा बाजार किसानों के लिए बेहतर हो सकता है.