‘मैंने बिल्डर का क्या बिगाड़ा था जो उसने मेरा पूरा परिवार उजाड़ दिया. उसे कानून, माफ कर सकता है लेकिन भगवान नहीं. मेरा बेटा चार दिन भी नहीं रह पाया इस मकान में....’यह कहते हुए नरेंद्र त्रिवेदी फफक कर रोने लगते हैं. ग्रेटर नोएडा के शाहबेरी गांव में गिरी बिल्डिंग में उनका परिवार दब गया है. वो मूल रूप से मैनपुरी के रहने वाले हैं.
नरेंद्र का बेटा शिवम त्रिवेदी, उनकी मां, भाभी और भतीजी इसी बिल्डंग में थे. उम्र के अंतिम पड़ाव में आ चुके नरेंद्र कहते हैं कि “14 जुलाई को ही मेरा परिवार इस बिल्डंग में शिफ्ट हुआ था. मुझे क्या पता था कि इतना बड़ा हादसा हो जाएगा. मेरा बेटा कहता था कि पिता जी अब हम लोग काम करेंगे, आप मत कुछ करिए...” इसी परिवार के सुरेंद्र कुमार त्रिवेदी का भी रो-रोकर बुरा हाल था. शिव एक निजी कंपनी में काम करता था.
त्रिवेदी ने कहा, कोई बताने को तैयार नहीं है कि मेरे बच्चे कहां हैं? 20 घंटे में इमारत के एक फ्लोर तक का मलवा नहीं हटाया जा सका है. परिजन अपनों की तलाश में यहां से वहां भटक रहे हैं. शाहबेरी में मंगलवार देर रात छह मंजिला इमारत पांच मंजिला निर्माणाधीन बिल्डिंग पर गिर गई थी. जिसमें दबकर चार लोगों की मौत हो गई. तीन और लोगों के दबे होने की आशंका है.
राज्य सरकार ने मामले की मजिस्ट्रेट से जांच करवाने का एलान किया है. लेकिन इन सबके बीच परिवार और उनके दोस्तों बिल्डर पर घटिया सामान लगाने और नियमों की अनदेखी करने का आरोप लगाया.
जब बिल्डिंग अवैध थी तो बैंक ने कैसे दिया लोन?
बिल्डंग में दबे शिवम के दोस्त ने बताया “90 परसेंट बैंक लोन पास हुआ है. रजिस्ट्री हई है. टेक्निकल सर्वे हुआ है. इसमें 20 फ्लैट थे. यहां पर बैंक ने कैसे लोन पास किया, कुछ कहा नहीं जा सकता.” सबसे बड़ा सवाल ये है कि जब यहां पर निर्माण बिना अनुमति के हो ही नहीं सकता तो फिर कैसे इस तरह की बिल्डिंगें खड़ी हो गईं. जाहिर है कि इसमें कहीं न कहीं भ्रष्टाचार का चढ़ावा चढ़ता था, जिसकी वजह से इन पर रोक नहीं लगी. नोएडा में कई ऐसे गांव हैं जहां बिना कंपलीशन के ही बिल्डिंग न सिर्फ बनी बल्कि उसे लोगों को बेच दिया गया और लोग वहां रह रहे हैं.
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