नई दिल्ली. यूपी (UP) के जिस भट्टा-पारसौल (Bhatta-Parsaul) से राहुल गांधी (Rahul Gandhi) राष्ट्रीय राजनीति में किसानों के मुद्दे को लेकर जुझारू नेता के रूप में उभरे थे, उस भट्टा-पारसौल से आज कांग्रेस (Congress) की जमीन पूरी तरह खिसक चुकी है. दोनों गांवों के लोगों में राहुल गांधी को लेकर कोई उत्साह नहीं है और पार्टी राजनीतिक रूप से वहां अपनी जमीन पूरी तरह खो चुकी है. 2011 में भट्टा-पारसौल में किसानों (Farmers) की जमीन अधिग्रहण (Land acquisition) के विरोध में राहुल गांधी ने अपना पहला बड़ा सफल संघर्ष किया था. इस संघर्ष ने राहुल गांधी को राष्ट्रीय स्तर पर एक जुझारू नेता के रूप में स्थापित किया था. इस आंदोलन में दो स्थानीय लोगों और दो पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी. बाद में कांग्रेस की सरकार ने इस मुद्दे पर भूमि अधिग्रहण कानून बनाया जिसमें किसानों की सहमति को प्रमुखता दी गई.
राहुल गांधी से निराश हैं भट्टा-पारसौल के लोग
लगगभग एक दशक बाद उत्तर प्रदेश के इन दोनों गांवों के लोगों में राहुल गांधी को लेकर निराशा है. ये दोनों गांव जेवर विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं. न्यूज18 (News 18.com) के ग्राउंड रिपोर्ट में भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन में मारे गए राजपाल तेवतिया की पत्नी ओमवती ने बताया कि वह कांग्रेस नेताओं से ठगा हुआ महसूस कर रही हैं. उन्होंने दावा किया, उन्हें किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली. ओमवती कहती हैं, हमें राहुल गांधी के 2 रुपये भी नही मिले. ओमवती ने कहा कि राहुल गांधी बेचारे आए तो थे लेकिन हमारा कुछ भी नहीं किया, जिसको किया होगा वह हमें नहीं पता.
राहुल के साथ किसानों का संपर्क टिका नहींः बीजेपी विधायक
जेवर से बीजेपी विधायक धीरेंद्र सिंह कहते हैं, उस वक्त तो ऐसा लग रहा था कि राहुल गांधी किसानों की आवाज बनकर उभर गए हैं. लेकिन किसान समुदाय से यह संपर्क उनका ज्यादा दिनों तक टिका नहीं. उन्होंने कहा कि एक समय ऐसा था की किसान राहुल गांधी पर विश्वास करने लगे. पर उनके आस पास की टीम और वो विश्वास बना कर नहीं रख पाए.
जिसने राहुल गांधी को बाइक पर बिठाकर भट्टा-पारसौल ले गए वे आज बीजेपी विधायक हैं
इस मुद्दे पर धीरेंद्र सिंह ने खुद 180 डिग्री का टर्न ले लिया है. धीरेंद्र सिंह वही व्यक्ति हैं जिनके मोटरसाइकिल पर पीछे बैठकर राहुल गांधी भट्टा-पारसौल गए थे. उस समय वे कांग्रेस के कर्मठ कार्यकर्ता थे. 2012 के विधानसभा चुनाव में धीरेंद्र सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे लेकिन बहुत मामूली अंतर से वे चुनाव हार गए थे. 2017 के चुनाव से पहले उन्होंने अचानक पाला बदल लिया और बीजेपी के टिकट पर विधायक बन गए. अब धीरेंद्र सिंह को लगता है कि पीएम मोदी के विजन में ही किसानों की समृद्धि है. धीरेंद्र सिंह 2022 में भी इसी विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी के उम्मीदवार हैं.
राहुल गांधी ने जमीन अधिग्रहण के खिलाफ यही से किया था उग्र संघर्ष
यहां के कुछ मतदाता सभी पार्टियों से निराश हैं. इनमें अधिकांश वे लोग शामिल हैं जो भूमि अधिग्रहण आंदोलन में शामिल थे और उन्हें जेल जाना पड़ा था. उन्हें जमीन के बदले कोई मुआवजा भी नहीं मिला. दरअसल, सात मई 2011 को भट्टा-पारसौल गांव में जमीन अधिग्रहण के विरोध में पुलिस और किसानों के बीच हिंसक संघर्ष में दो किसान और दो पुलिसकर्मियों की जान गई थी. किसान भूमि अधिग्रहण के खिलाफ विरोध कर रहे थे. उस समय मायवती की सरकार थी और राहुल गांधी ने इस मामले जबर्दस्त संघर्ष किया था. कई सालों तक यह मामला सुर्खियों में रहा.
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