गुजरात विधानसभा चुनाव 2017 का परिणाम जैसा भी रहे, लेकिन यह चुनाव कई मायनों में याद किया जाएगा. इस चुनाव में दो कद्दावर चेहरे खासतौर पर याद किए जाएंगे, जो राजनीति के शिखर पर पहुंचे और टिके भी रहे, लेकिन इस चुनाव के बाद उनका राजनीतिक सफर शून्य की ओर ढलता दिख रहा है.
इनमें से एक हैं गुजरात की मुख्यमंत्री रहीं भाजपा नेता आनंदीबेन पटेल, जबकि दूसरा चेहरा जन संघ, भाजपा, कांग्रेस और फिर अपनी पार्टी बनाकर इस बार गुजरात चुनाव मैदान में उतरे शंकरसिंह वाघेला का है. कांग्रेस से इस्तीफा देकर जन विकल्प मोर्चा बनाने वाले वाघेला के इस चुनाव के बाद राजनीतिक सफर को लेकर भी विशेषज्ञ आशंका जता रहे हैं.
वरिष्ठ राजनीति संपादक निर्मल पाठक का कहना है कि गुजरात की राजनीति में आनंदी बेन बहुत हेवी-वेट नहीं रही हैं. नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के दौरान वह ज्यादा ताकतवर थीं, लेकिन मोदी के केंद्र में आने के बाद वह कमजोर पड़ती गईं. यही वजह रही कि भाजपा को 2017 के चुनाव और राज्य में ढीली होती पकड़ को देखते हुए आनंदीबेन को मुख्यमंत्री पद से हटाना पड़ा.

गुजरात चुनाव परिणाम 2017: मुख्यमंत्री रह चुकी आनंदीबेन पटेल को पीएम नरेंद्र मोदी का करीबी माना जाता है.
आनंदीबेन को हटाने के पीछे एक वजह गुजरात विधानसभा चुनाव भी रहे. गुजरात में पटेलों का आंदोलन और उसे ठीक तरह से हैंडल न कर पाने के बाद भाजपा को इसका असर चुनावों में दिखने की आशंका हुई. लिहाजा हालात को संभालने के लिए और गुजरात के मतदाताओं में दोबारा भरोसा जगाने के लिए भाजपा ने आनंदीबेन को साइडलाइन कर दिया.
इस विधानसभा चुनाव में भी आनंदीबेन को बहुत सक्रिय नहीं देखा गया. जैसा कि भाजपा ने उम्र का पैमाना तय किया है, तो आनंदीबेन की उम्र 75 पार कर चुकी हैं. ऐसे में अब उनकी भूमिका काफी सीमित हो चुकी है. अभी वे पार्टी में हैं, लेकिन उन्हें भाजपा जो जिम्मेदारी देगी उसी से संतोष करना पड़ेगा. पूरी संभावना है कि यह विधानसभा चुनाव आनंदीबेन पटेल के सक्रिय राजनीतिक सफर का अंतिम चुनाव है.
वहीं शंकरसिंह वाघेला की बात करें तो गुजरात की राजनीति में वे एक बेहद अहम शख्सियत रहे हैं. भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के कद्दावर नेताओं में उनका नाम है.

गुजरात चुनाव परिणाम 2017: गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला अपनी पार्टी 'जनविकल्प मोर्चा' से चुनाव लड़ रहे हैं.
लेकिन जिस प्रकार स्थितियां बदली अौर कांग्रेस के सामने दुविधा होने के बावजूद कांग्रेस ने उन्हें जाने दिया और दूसरी पार्टी बनाने दी, इससे वाघेला का कमजोर पड़ता राजनीतिक कद दिख रहा है. इससे भी बड़ी बात है कि उन्होंने अपना मोर्चा बनाया है. लेकिन जैसा कि गुजरात में इस बार अनुमान लगाया जा रहा है तो मतदाता कांग्रेस और भाजपा के बीच में से ही किसी को चुनेंगे.
ऐसे में वाघेला के नए संगठन को कितना प्रतिनिधित्व मिलता है यह देखना होगा. वाघेला की उम्र 77 साल है. उनका बेटा भी राजनीति में सक्रिय है. लेकिन अगर वाघेला के राजनीतिक सफर की बात करें तो कम लेकिन संभावना है कि 2019 तक उनकी राजनीतिक हैसियत बनी रहेगी. जो उनका वोट बैंक है वो भरोसा रखेगा. ऐसे में हो सकता है यह चुनाव उनके राजनीतिक जीवन का आखिरी चुनाव न हो, लेकिन आखिरी से पूर्व का चुनाव साबित हो और इसके बाद वे अप्रासंगिक हो जाएं.
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FIRST PUBLISHED : December 18, 2017, 15:02 IST