दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि एक छोटा सा पौधा एक बड़े पेड़ की जगह कैसे ले सकता है. अदालत ने कहा कि दक्षिण दिल्ली की छह कॉलोनियों में प्रस्तावित बहुमंजिला
आवासीय इमारत बनाने के लिए 16,500 पेड़ों को काटना इस शहर को मरने के लिए छोड़ देने जैसा है.
अदालत ने प्राधिकारों को 26 जुलाई तक पेड़ काटने से रोक दिया है, जो इस सिलसिले में दायर एक याचिका पर सुनवाई की अगली तारीख है. कोर्ट ने पूछा कि क्या कार्य शुरू करने से पहले कोई पर्यावरण प्रभाव आंकलन किया गया था.
कार्यवाहक चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सी हरि शंकर की सदस्यता वाली बेंच ने कहा कि यदि दिल्ली को इन्हें (इमारतों को) तोड़ने की जरूरत है, तो उन्हें तोड़ दिया जाएगा. लेकिन, आप शहर को इस तरह से मरने के लिए नहीं छोड़ सकते. अदालत ने यह भी पूछा कि हर किसी को लुटियंस दिल्ली में जगह देने की क्या जरूरत है, जब राष्ट्रीय राजधानी में इतनी सारी खाली जमीन है.
दिल्ली में भूमिगत जल की कमी होने की दलील पर संज्ञान लेते हुए अदालत ने केंद्र और दिल्ली सरकार से पूछा कि वे पौधों की सिंचाई कैसे करेंगे, जिन्हें क्षतिपूरक वनीकरण नीति के तहत बडे़ पेड़ों की जगह लगाया जाना है. बेंच ने कहा कि दिल्ली सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि एक बड़े पेड़ की बराबरी 10 पौधे कैसे कर सकते हैं? एक नन्हे पौधे को बड़ा होकर पेड़ बनने में कितना वक्त लगेगा.
अदालत ने कहा कि दिल्ली पहले अपनी पक्षियों की आबादी को लेकर मशहूर हुआ करती थी, लेकिन आज स्थिति अलग हो गई है. बेंच ने कहा, "इस तरह की आठ मंजिला इमारतों के लिए आप पानी कहां से पाएंगे? कितनी मात्रा में कूड़ा निकलेगा? पार्किंग कहां है और वायु प्रदूषण का क्या है? आप योजना बनाते समय दिमाग का इस्तेमाल नहीं करते."
अदालत का यह भी विचार है कि इलाके में स्थित दो बड़े और प्रमुख अस्पताल एम्स और सफदरजंग जाने वाली एंबुलेंसों और रोगियों को यह निर्माण बाधित करेगा. अदालत ने कहा, "कॉलोनियों के मुख्य द्वार पर ट्रैफिक जाम लगेगा. लोग एम्स और सफदरजंग अस्पताल कैसे पहुंच पाएंगे? आपने अवश्य ही पर्यावरण प्रभाव आंकलन किया होगा. हमे वह दिखाइए."
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FIRST PUBLISHED : July 04, 2018, 22:55 IST