OPINION| ICJ के फैसले ने पाक को कुलभूषण की सजा पर बने रहने का मौका दिया

कुलभूषण जाधव मामले पर आईसीजे ने उन्हें काउंसलर एक्सेस देने का फैसला दिया है.
क्रिकेट की भाषा में कहें तो भारत के लिए यह एक 'टेस्ट मैच' था, फॉलो ऑन के लिए बुलाए जाने के बाद जो सम्मानक ड्रॉ पर खत्म हुआ. यह महत्वपूर्ण उपलब्धि है.
- News18Hindi
- Last Updated: July 21, 2019, 12:23 PM IST
(सुनील फर्नांडीज)
पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी कुलभूषण जाधव के मामले में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ने अनोखा फैसला दिया है. हमारी घरेलू अदालतों में जो फैसले दिए जाते हैं, वो लड़ने वाली पार्टियों को खुश करने के लिए नहीं होते, इसके विपरीत भारत और पाकिस्तान दोनों ने आईसीजे के फैसले का अपनी जीत के तौर पर स्वागत किया.
लेकिन जीता कौन? क्रिकेट की भाषा में कहें तो भारत के लिए यह एक 'टेस्ट मैच' था, फॉलो ऑन के लिए बुलाए जाने के बाद जो सम्मानजनक ड्रॉ पर खत्म हुआ. यह महत्वपूर्ण उपलब्धि है.
कुलभूषण जाधव को फांसी की सजा सुनाई गई थी. भारत के आईसीजे में जाने से और इसके बाद आए फैसले ने उन्हें इस सजा से बचा लिया. हालांकि केवल कुछ वक्त के लिए. आईसीजे में दायर की गई अपनी याचिका में भारत ने तीन मांगें की थी:1. जाधव की फांसी की सजा पर रोक
2. पाकिस्तान की सैन्य अदालत द्वारा दी गई फांसी की सजा को रद्द करना
3. जाधव को भारत को वापस करना
पहली मांग को लेकर भारत की और तीसरी मांग को लेकर पाकिस्तान की जीत हुई, जबकि दूसरी मांग पर किसी की जीत नहीं हुई, इसलिए मैंने कहा कि यह मुकाबला 'ड्रॉ' रहा.
पाक ने किया वियना कन्वेंशन का उल्लंघन
आईसीजे के फैसले में भारत के उस तर्क को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया कि पाकिस्तान ने भारत के लिए काउंसलर एक्सेस के अधिकार पर वियना कन्वेंशन का उल्लंघन किया. इसमें कहा गया कि वियना कन्वेंशन 1963 (काउंसलर एक्सेस) का अनुच्छेद 36 जासूसी के आरोपियों के लिए भी लागू होता है.
पाकिस्तान ने आईसीजे में भारत की याचिका पर कई प्रारंभिक आपत्तियां जताईं. उसने भारत पर कानून की प्रक्रिया और अधिकारों का दुरुपयोग तथा गैरकानूनी आचरण का आरोप लगाया. हालांकि आईसीजी फैसले ने पाकिस्तान की सभी आपत्तियों को खारिज कर दिया.

भारत की नई चिंता
भारत के लिए (और जाधव के लिए भी) चिंता की बात यह है कि आईसीजे ने पाकिस्तान की सैन्य अदालत के फैसले को समाप्त नहीं किया है. वास्तव में आईसीजे सैन्य अदालत के फैसले की वैधता और निर्णय का परीक्षण नहीं कर सकता है, क्योंकि इस तरह के निर्णय वियना कन्वेंशन के अनुच्छेद 36 के तहत नहीं आते हैं, इसलिए यह आईसीजे के अधिकार क्षेत्र से बाहर है.
आईसीजे का कहना है कि वह केवल उन मुद्दों को स्थगित कर सकता है, जो वियना कन्वेंशन के तहत आते हैं, उनमें एक काउंसलर एक्सेस न देना है, जिसके लिए स्पष्ट तौर पर पाकिस्तान को गलत पाया गया.
पाकिस्तान बरकरार रख सकता है फैसला
जाधव को पाकिस्तान की सैन्य अदालत द्वारा दोषी करार दिया गया था. आईसीजे ने माना कि यह निर्णय वियना कन्वेंशन के अनुच्छेद 36 के पैरा 1 का पालन नहीं करता है, जो काउंसलर एक्सेस से संबंधित है. आईसीजे का फैसला पाकिस्तान को अनुच्छेद 36 को ध्यान में रखकर फैसले पर पुनर्विचार का निर्देश देता है. वह इसका पालन कैसे करेगा यह पाकिस्तान के विवेक पर है.
यह भारत के लिए समस्या खड़ी कर सकता है. मान लेते हैं कि पाकिस्तान अनुच्छेद 36 का पालन करते हुए काउंसलर एक्सेस मुहैया कराता है और सैन्य अदालत के फैसले को बरकरार रखता है, तो फिर भारत इस फैसले को सफलतापूर्वक आईसीजे में चुनौती नहीं दे सकेगा.

क्या है रिहाई का रास्ता?
जब तक भारत और पाकिस्तान के बीच कोई राजनयिक समझौता नहीं होता है जो कि जाधव की रिहाई के लिए स्थिति बनाता है अथवा जाधव काउंसलर एक्सेस के दौरान भारतीय पदाधिकारियों को कोई महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं, पाकिस्तान कानूनी तौर पर अपने सैन्य अदालत के फैसले पर अमल कर सकता है.
भारत के सर्वश्रेष्ठ प्रयास के बावजूद आईसीजे ने पाकिस्तानी सैन्य अदालत के फैसले में कोई दखल नहीं दिया.
आईसीजे ने माना कि वह अपने अधिकार क्षेत्र वियना कन्वेंशन से प्राप्त करता है, इसलिए इसने काउंसलर एक्सेस की प्रक्रिया में हुई गलती को सुधारने के लिए, पाकिस्तान के लिए दरवाजा (एक बहुत बड़ा दरवाजा) छोड़ दिया है और फिर एक जाधव के लिए मृत्यु दंड देने का प्रयास होगा.
हम अपने पड़ोसी पर बेहतर समझ की उम्मीद कर सकते हैं, लेकिन कुलभूषण जाधव का भाग्य उनके हाथ में नहीं है.
(लेखक सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं)
ये भी पढ़ें: भारत के पक्ष में आईसीजे का फैसला, कुलभूषण जाधव की फांसी पर रोक
पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी कुलभूषण जाधव के मामले में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ने अनोखा फैसला दिया है. हमारी घरेलू अदालतों में जो फैसले दिए जाते हैं, वो लड़ने वाली पार्टियों को खुश करने के लिए नहीं होते, इसके विपरीत भारत और पाकिस्तान दोनों ने आईसीजे के फैसले का अपनी जीत के तौर पर स्वागत किया.
लेकिन जीता कौन? क्रिकेट की भाषा में कहें तो भारत के लिए यह एक 'टेस्ट मैच' था, फॉलो ऑन के लिए बुलाए जाने के बाद जो सम्मानजनक ड्रॉ पर खत्म हुआ. यह महत्वपूर्ण उपलब्धि है.
कुलभूषण जाधव को फांसी की सजा सुनाई गई थी. भारत के आईसीजे में जाने से और इसके बाद आए फैसले ने उन्हें इस सजा से बचा लिया. हालांकि केवल कुछ वक्त के लिए. आईसीजे में दायर की गई अपनी याचिका में भारत ने तीन मांगें की थी:1. जाधव की फांसी की सजा पर रोक
2. पाकिस्तान की सैन्य अदालत द्वारा दी गई फांसी की सजा को रद्द करना
3. जाधव को भारत को वापस करना
पहली मांग को लेकर भारत की और तीसरी मांग को लेकर पाकिस्तान की जीत हुई, जबकि दूसरी मांग पर किसी की जीत नहीं हुई, इसलिए मैंने कहा कि यह मुकाबला 'ड्रॉ' रहा.
पाक ने किया वियना कन्वेंशन का उल्लंघन
आईसीजे के फैसले में भारत के उस तर्क को स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया कि पाकिस्तान ने भारत के लिए काउंसलर एक्सेस के अधिकार पर वियना कन्वेंशन का उल्लंघन किया. इसमें कहा गया कि वियना कन्वेंशन 1963 (काउंसलर एक्सेस) का अनुच्छेद 36 जासूसी के आरोपियों के लिए भी लागू होता है.
पाकिस्तान ने आईसीजे में भारत की याचिका पर कई प्रारंभिक आपत्तियां जताईं. उसने भारत पर कानून की प्रक्रिया और अधिकारों का दुरुपयोग तथा गैरकानूनी आचरण का आरोप लगाया. हालांकि आईसीजी फैसले ने पाकिस्तान की सभी आपत्तियों को खारिज कर दिया.

भारत की नई चिंता
भारत के लिए (और जाधव के लिए भी) चिंता की बात यह है कि आईसीजे ने पाकिस्तान की सैन्य अदालत के फैसले को समाप्त नहीं किया है. वास्तव में आईसीजे सैन्य अदालत के फैसले की वैधता और निर्णय का परीक्षण नहीं कर सकता है, क्योंकि इस तरह के निर्णय वियना कन्वेंशन के अनुच्छेद 36 के तहत नहीं आते हैं, इसलिए यह आईसीजे के अधिकार क्षेत्र से बाहर है.
आईसीजे का कहना है कि वह केवल उन मुद्दों को स्थगित कर सकता है, जो वियना कन्वेंशन के तहत आते हैं, उनमें एक काउंसलर एक्सेस न देना है, जिसके लिए स्पष्ट तौर पर पाकिस्तान को गलत पाया गया.
पाकिस्तान बरकरार रख सकता है फैसला
जाधव को पाकिस्तान की सैन्य अदालत द्वारा दोषी करार दिया गया था. आईसीजे ने माना कि यह निर्णय वियना कन्वेंशन के अनुच्छेद 36 के पैरा 1 का पालन नहीं करता है, जो काउंसलर एक्सेस से संबंधित है. आईसीजे का फैसला पाकिस्तान को अनुच्छेद 36 को ध्यान में रखकर फैसले पर पुनर्विचार का निर्देश देता है. वह इसका पालन कैसे करेगा यह पाकिस्तान के विवेक पर है.
यह भारत के लिए समस्या खड़ी कर सकता है. मान लेते हैं कि पाकिस्तान अनुच्छेद 36 का पालन करते हुए काउंसलर एक्सेस मुहैया कराता है और सैन्य अदालत के फैसले को बरकरार रखता है, तो फिर भारत इस फैसले को सफलतापूर्वक आईसीजे में चुनौती नहीं दे सकेगा.

क्या है रिहाई का रास्ता?
जब तक भारत और पाकिस्तान के बीच कोई राजनयिक समझौता नहीं होता है जो कि जाधव की रिहाई के लिए स्थिति बनाता है अथवा जाधव काउंसलर एक्सेस के दौरान भारतीय पदाधिकारियों को कोई महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं, पाकिस्तान कानूनी तौर पर अपने सैन्य अदालत के फैसले पर अमल कर सकता है.
भारत के सर्वश्रेष्ठ प्रयास के बावजूद आईसीजे ने पाकिस्तानी सैन्य अदालत के फैसले में कोई दखल नहीं दिया.
आईसीजे ने माना कि वह अपने अधिकार क्षेत्र वियना कन्वेंशन से प्राप्त करता है, इसलिए इसने काउंसलर एक्सेस की प्रक्रिया में हुई गलती को सुधारने के लिए, पाकिस्तान के लिए दरवाजा (एक बहुत बड़ा दरवाजा) छोड़ दिया है और फिर एक जाधव के लिए मृत्यु दंड देने का प्रयास होगा.
हम अपने पड़ोसी पर बेहतर समझ की उम्मीद कर सकते हैं, लेकिन कुलभूषण जाधव का भाग्य उनके हाथ में नहीं है.
(लेखक सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं)
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