कोलकाता की पहचान हाथ रिक्शा वालों की आवाज़ चुनावी शोर में क्यों गुम हो गई?

2 बीघा जमीन और सिटी ऑफ जॉय जैसी फिल्मों में हाथ रिक्शा वालों की जो कहानी दिखाई गई थी, दशकों बीत जाने के बाद भी इन रिक्शा वालों की कहानी में कोई बदलाव नहीं आया है.
West Bengal Assembly Elections 2021: सरकार ने हाथ रिक्शा के नए लाइसेंस देने बंद कर दिए है. हाथ रिक्शा पर कई बार प्रतिबंध भी लग चुका है क्योंकि लंबे अरसे से कई संगठन मनुष्य द्वारा मनुष्य को खींचने को अमानवीय बताते हैं.
- News18Hindi
- Last Updated: March 19, 2021, 4:53 PM IST
कोलकाता. कोलकाता का नाम लेते ही आपके ज़ेहन में हावड़ा ब्रिज और विक्टोरिया मेमोरियल की तस्वीर उभर जाती है. लेकिन कोलकाता की एक और पहचान है हाथ रिक्शा, जो आज अपना अस्तित्व बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहा है. एक समय कोलकाता की शान रहे ये रिक्शे अब गली कूचों में ही चलते हैं.
पश्चिम बंगाल के चुनावी शोर (West Bengal Elections 2021) में इनकी कोई सुनवाई नहीं. न कोई राजनीतिक दल इनका हाल पूछने आ रहा है और न ही किसी ने इनके लिए कोई ठोस वादा किया है. हाथ रिक्शा चलाने वाले ज्यादातर प्रवासी मजदूर हैं जो रोजी-रोटी की तलाश में कोलकाता पहुंचते हैं, इनमें से ज्यादातर बिहार और झारखंड के निवासी हैं.
जब हमने इस बात की पड़ताल शुरू की कि आखिरकार हजारों की संख्या में रिक्शा चलाने वाले किसी राजनीतिक दल की प्राथमिकता क्यों नहीं है, तब असलियत सामने आई. बांका बिहार के रहने वाले भोला यादव का कहना है कि हमारा वोट यहां नहीं है इसलिए हमारे ऊपर कोई ध्यान नहीं देता कोई पॉलिटिकल पार्टी हमारा हाल जानने अब तक नहीं आई है.
एक नहीं सामने हैं कई समस्याएंयह रिक्शावाले एक नहीं अनेक समस्याओं से जूझ रहे हैं. बिहार के ही एक दूसरे रिक्शा चालक कहते हैं, "रिक्शे का मालिक अब 200 रुपये पगड़ी मांगता है. कोरोना में धंधा है नहीं कहां से लाएं इतना पैसा. दिन भर मेहनत के बाद डेढ़ सौ या दो सौ मिलता है. इतना पैसा यही खाने-पीने और रहने में खर्च हो जाता है घर पर बच्चों के लिए क्या भेजें? 1 महीने में दो से 3 हज़ार कमाते हैं क्या घर भेजेंगे? अब घर जाना पड़ेगा काम नहीं चल रहा है यहां. उनकी शिकायत है कि सड़क पर जगह घेरने की वजह से लोग मारपीट करते हैं कहते हैं यहां से हटा वहां से हटा, एक रिक्शा स्टैंड होना चाहिए.
झारखंड के नरसी महतो कहते हैं, "100 रुपये में संसार कैसे चलेगा हम लोगों को रोजी चाहिए कोई नेता नहीं पूछने आया. गरीब आदमी के पास कौन आता है."
हाथ रिक्शा के नए लाइसेंस पर सरकार ने लगाई रोक
फिलहाल सरकार ने हाथ रिक्शा के नए लाइसेंस देने बंद कर दिए है. हाथ रिक्शा पर कई बार प्रतिबंध भी लग चुका है क्योंकि लंबे अरसे से कई संगठन मनुष्य द्वारा मनुष्य को खींचने को अमानवीय बताते हैं. क्या यह अमानवीय नहीं है? इसके जवाब में महतो कहते हैं, 'आदमी-आदमी को खींच रहा है मज़बूरी है पेट के लिए कुछ करना ही पड़ता है. कुछ दूसरा रोज़गार मिले तो छोड़कर चले जाएं.'
पुलिस से भी परेशान हैं कई रिक्शेवाले
कई रिक्शेवाले पुलिस से भी परेशान दिखे. वह कहते हैं, पुलिस परेशान करती है, डंडे मारती है पकड़ लेती है कि यहां क्यों चला रहे हो वहां क्यों चला रहे हो, मेन सड़क पर नहीं जाना है. एक बुजुर्ग रिक्शेवाले के साथ बैठकर जाते हुए मिले. बात करने पर कहते हैं, 'यह रिक्शा वाला मेरा दोस्त है क्योंकि 10 साल से मैं इसी के रिक्शे से चलता हूं. बुजुर्ग हो गया हूं रिटायर हो गया हूं घर में रहता हूं. हमारे लिए यही काम आता है. कहीं आना जाना होता है तो फोन कर देता हूं, यह आ जाता है ऐसे रिक्शे चलते रहने चाहिए.'
आदमी आदमी को खींचता है यह अमानवीय तो है लेकिन यह करेंगे क्या इनकी रोजी रोटी का जुगाड़ कैसे होगा?
एक हाथ रिक्शावाला पानी की बोतल लाद करके दूसरी जगह पहुंचा रहा है जिसके लिए उसे ₹50 मिले. पैसा देने वाला मालिक कह रहा है कि गलियों में टेंपो ट्रक नहीं आ पाते इसलिए यही हाथ रिक्शे वालों को हम लोग काम देते हैं. ये रिक्शे वाले आलू, प्याज, पानी, सामान, आदमी सब ढोते हैं.

एक रिक्शे वाला कहता है, '25 रुपये किराया हम देते हैं रिक्शा मालिक को. 30 साल से चला रहा हूं. 100 से 150 रुपये मिलते हैं. पहले 300 से 400 मिलते थे. आदमी को तकलीफ से खींचते हैं ताकि पेट भर सकें.' 2 बीघा जमीन और सिटी ऑफ जॉय जैसी फिल्मों में हाथ रिक्शा वालों की जो कहानी दिखाई गई थी, दशकों बीत जाने के बाद भी इन रिक्शा वालों की कहानी में कोई बदलाव नहीं आया है. पहले लाखों की संख्या में रिक्शा चलाने वालों की तादाद अब घटकर 20 से 24 हज़ार के बीच बताई जाती है.
पश्चिम बंगाल के चुनावी शोर (West Bengal Elections 2021) में इनकी कोई सुनवाई नहीं. न कोई राजनीतिक दल इनका हाल पूछने आ रहा है और न ही किसी ने इनके लिए कोई ठोस वादा किया है. हाथ रिक्शा चलाने वाले ज्यादातर प्रवासी मजदूर हैं जो रोजी-रोटी की तलाश में कोलकाता पहुंचते हैं, इनमें से ज्यादातर बिहार और झारखंड के निवासी हैं.
जब हमने इस बात की पड़ताल शुरू की कि आखिरकार हजारों की संख्या में रिक्शा चलाने वाले किसी राजनीतिक दल की प्राथमिकता क्यों नहीं है, तब असलियत सामने आई. बांका बिहार के रहने वाले भोला यादव का कहना है कि हमारा वोट यहां नहीं है इसलिए हमारे ऊपर कोई ध्यान नहीं देता कोई पॉलिटिकल पार्टी हमारा हाल जानने अब तक नहीं आई है.
झारखंड के नरसी महतो कहते हैं, "100 रुपये में संसार कैसे चलेगा हम लोगों को रोजी चाहिए कोई नेता नहीं पूछने आया. गरीब आदमी के पास कौन आता है."
हाथ रिक्शा के नए लाइसेंस पर सरकार ने लगाई रोक
फिलहाल सरकार ने हाथ रिक्शा के नए लाइसेंस देने बंद कर दिए है. हाथ रिक्शा पर कई बार प्रतिबंध भी लग चुका है क्योंकि लंबे अरसे से कई संगठन मनुष्य द्वारा मनुष्य को खींचने को अमानवीय बताते हैं. क्या यह अमानवीय नहीं है? इसके जवाब में महतो कहते हैं, 'आदमी-आदमी को खींच रहा है मज़बूरी है पेट के लिए कुछ करना ही पड़ता है. कुछ दूसरा रोज़गार मिले तो छोड़कर चले जाएं.'
पुलिस से भी परेशान हैं कई रिक्शेवाले
कई रिक्शेवाले पुलिस से भी परेशान दिखे. वह कहते हैं, पुलिस परेशान करती है, डंडे मारती है पकड़ लेती है कि यहां क्यों चला रहे हो वहां क्यों चला रहे हो, मेन सड़क पर नहीं जाना है. एक बुजुर्ग रिक्शेवाले के साथ बैठकर जाते हुए मिले. बात करने पर कहते हैं, 'यह रिक्शा वाला मेरा दोस्त है क्योंकि 10 साल से मैं इसी के रिक्शे से चलता हूं. बुजुर्ग हो गया हूं रिटायर हो गया हूं घर में रहता हूं. हमारे लिए यही काम आता है. कहीं आना जाना होता है तो फोन कर देता हूं, यह आ जाता है ऐसे रिक्शे चलते रहने चाहिए.'
आदमी आदमी को खींचता है यह अमानवीय तो है लेकिन यह करेंगे क्या इनकी रोजी रोटी का जुगाड़ कैसे होगा?
एक हाथ रिक्शावाला पानी की बोतल लाद करके दूसरी जगह पहुंचा रहा है जिसके लिए उसे ₹50 मिले. पैसा देने वाला मालिक कह रहा है कि गलियों में टेंपो ट्रक नहीं आ पाते इसलिए यही हाथ रिक्शे वालों को हम लोग काम देते हैं. ये रिक्शे वाले आलू, प्याज, पानी, सामान, आदमी सब ढोते हैं.
एक रिक्शे वाला कहता है, '25 रुपये किराया हम देते हैं रिक्शा मालिक को. 30 साल से चला रहा हूं. 100 से 150 रुपये मिलते हैं. पहले 300 से 400 मिलते थे. आदमी को तकलीफ से खींचते हैं ताकि पेट भर सकें.' 2 बीघा जमीन और सिटी ऑफ जॉय जैसी फिल्मों में हाथ रिक्शा वालों की जो कहानी दिखाई गई थी, दशकों बीत जाने के बाद भी इन रिक्शा वालों की कहानी में कोई बदलाव नहीं आया है. पहले लाखों की संख्या में रिक्शा चलाने वालों की तादाद अब घटकर 20 से 24 हज़ार के बीच बताई जाती है.