नई दिल्ली. भारत सरकार (Government of India) के नए सर्वेक्षण (National Family Health Survey) के मुताबिक देश भर में लिंगअनुपात में तो बढ़ोतरी देखी गई है लेकिन आज भी एक बड़ा तबका बेटे की चाहत रखता है. करीब 80 फीसद लोग जो सर्वेक्षण में शामिल हुए थे, उनकी इच्छा थी कि घर में कम से कम एक लड़का होना चाहिए. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) जिसे भारत सरकार का भारतीय समाज में मौजूद परिवारों के एक व्यापक सर्वेक्षण के तौर पर देखा जाता है. इसके अनुसार बेटी की जगह बेटे को तवज्जो देना पारंपरिक सोच में व्याप्त है. वह सोच जो कहती है कि वंश को आगे लड़का ही ले जाता है. जबकि लड़की पराया धन होती है. लड़की होती है तो उसके साथ शादी से लेकर दहेज जुटाने तक बहुत सी जिम्मेदारियां आती है. सरकारी सर्वे में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. इसमें कई तरह के सवाल पूछे गए थे, जिनके निष्कर्ष सामने आ रहे हैं.
पिछले 100 सालों से जनगणना के नतीजे हमेशा से यही रहे हैं कि औरतों की तुलना में आदमियों की तादाद ज्यादा रही है. 2011 में हुई जनगणना बताती है कि 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 940 थी. बच्चों के लिंगानुपात ( जिसमें जन्म से 6 साल तक के बच्चों की गिनती होती है) 1000 लड़कों पर 918 लड़कियों का था. 2019 से 2021 के बीच हुआ NFHS-5 सर्वेक्षण दिखाता है कि पिछले सालों की तुलना में लिंगानुपात में वृद्धि हुई है.
भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा: सर्वे
पहली बार सर्वेक्षण में आया है कि भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा हैं. लेकिन डेटा यह भी कहता है कि लड़के होने की पारंपरिक सोच अभी भी बनी हुई है. 15 फीसद से ज्यादा लोगों ने, करीब 16 फीसद पुरूषों और 14 फीसद महिलाओं ने सर्वेक्षण के दौरान ज्यादा बेटे की ख्वाहिश जताई. हालांकि 2015-16 की तुलना में इसमें गिरावट है, इस साल बेटा पाने का आंकड़ा पुरुषों में 19 फीसद और महिलाओं में 18.5 फीसद था. कई दंपति बेटे की चाहत में आज भी लगातार बेटियों पर बेटियां पैदा कर रहे हैं.
बेटे की अपेक्षा बेटी की चाहत में भी बढ़ोतरी
सर्वेक्षण में शामिल होने वालों में करीब 65 फीसद विवाहित महिलाओं में (15 -49 उम्र समूह) के पास कम से कम दो लड़कियां थी और लड़का नहीं था. उनका कहना था कि वह और बच्चा नहीं चाहती हैं. चार साल पहले हुए सर्वेक्षण में यह आंकड़ा 63 फीसद पर था. इसके साथ ही उम्मीद की एक किरण और नजर आती है. बेटे की अपेक्षा बेटी की चाहत में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है. इस बार जहां 5.17 फीसद लोग लड़की की चाहत रखते हैं वहीं पिछली बार यह आंकड़ा 4.96 फीसद पर था. विशेषज्ञों का मानना है कि इसका सीधा संबंध भारत में गिरती प्रजनन दर से है. शहरों में, महिलाओं में बढ़ती साक्षरता और गर्भनिरोधक के इस्तेमाल में बढ़ोतरी के चलते प्रजनन दर 2 पर आ गया है. अगर यह आंकड़ा गिरकर 2.1 पर आ जाता है तो जनसंख्या में अपने आप कमी आना शुरू हो जाएगी. हालांकि यह नतीजे भी भारत जैसे अधिक जनसंख्या वाले देश के लिए अच्छी खबर है.
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Tags: Government of India, National Family Health Survey