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अद्भुत भारत: इस गांव में नाम नहीं, सीटी की आवाज से पहचाने जाते हैं लोग, कन्फ्यूजन की तो बात ही नहीं!

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आमतौर पर बचपन में हर व्‍यक्ति को एक नाम दिया जाता है लेकिन मेघालय में एक गांव ऐसा भी है, जहां मां बचपन में अपने बच्‍चे को नाम की जगह उसके उच्‍चारण के लिए एक विशेष प्रकार की धुन व सीटी देती है, जिससे जीवन भर उसे गांव में पहचाना जाता है.

अद्भुत भारत: इस गांव में नाम नहीं, सीटी की आवाज से पहचाने जाते हैं लोगमेघालय के इस गांव में 500 से 700 लोग रहते हैं. (प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर/PTI)
नई दिल्‍ली. भारत विविधताओं से भरा देश है. यहां विभिन्‍न धर्म, पंथ, जाति, समुदाय व भाषाओं को बोलने वाले लोग रहते हैं. हर किसी की अपनी जीवनशैली है. कुछ परंपराओं को अच्‍छा तो कुछ को सामाजिक दृष्टि से बुरा माना जाता है. इसी बीच मेघालय का एक गांव ऐसा भी है, जहां लोग एक दूसरे को बुलाने के लिए उनके नाम की जगह विशेष धुन व सीटी का इस्‍तेमाल करते हैं. हर व्‍यक्ति की पहचान उसे जन्‍म के वक्‍त दी गई एक अलग तरह की सीटी है, जिसकी मदद से उसे पहचाना जाता है. मेघालय की राजधानी शिलांग से करीब 60 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव का नाम कोंगथोंग है.

कोंगथोंग गांव को ‘व्हिसलिंग विलेज’ का उपनाम भी दिया गया है. यह पूर्वी खासी हिल्स जिले में स्थित है. महज 500 से 700 लोग इस गांव में रहते हैं. यह सभी खासी जनजाति से ताल्‍लुक रखते हैं. ओडिशा टीवी की रिपोर्ट के अनुसार यहां बोलचाल के लिए वैसे तो खासी भाषा का प्रयोग किया जाता हैं लेकिन यहां ग्रामीण कभी भी एक-दूसरे को नाम से नहीं बुलाते. इसके बजाय, वे किसी विशेष व्यक्ति को बुलाने के लिए उसे सौंपी गई एक विशिष्ट सीटी की आवाज का उपयोग करते हैं. यह परंपरा ग्रामीणों में पीढ़ियों से चली आ रही है.
पैदाइश पर दिया जाता है नाम
मेघालय के कोंगथोंग गांव में मां अपने बच्चे को बचपन में नाम देने के बजाय एक अनोखी धुन देती है. इस वजह से यहां के ग्रामीण उन धुनों को बोलकर एक-दूसरे को बुलाते हैं. सुर दो प्रकार के होते हैं- लघु सुर और दीर्घ सुर. लघु धुन का प्रयोग गांव या घर में किया जाता है. इन अनोखी धुनों को ‘जिंग्रवई लॉबेई’ कहा जाता है. खासी भाषा में इसका अर्थ ‘मूल पूर्वजों के सम्मान में गाया जाने वाला राग होता है.
जब किसी व्‍यक्ति की मृत्‍यु हो जाती है तो इसके साथ ही उसके नाम के उच्‍चारण के लिए दी गई धुन भी खत्‍म  हो जाती है. गांव वालों को नहीं पता कि कब इस धुन की शुरुआत हुई. वर्षों से उनके पूर्वज इस प्रकार से एक दूसरे को पुकारते आ रहे हैं.

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संदीप गुप्ता
पत्रकारिता में करीब 13 साल से सक्रिय. साल 2010 में दैनिक भास्‍कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण, पंजाब केसरी और जी समूह की वेबसाइट क्रिकेट कंट्री/ इंडिया डॉट कॉम में काम किया. इस दौ...और पढ़ें
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