Arunachal Pradesh News: डोंग से जचेप तक बनेगी यह रणनीतिक सड़क. (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: सीमा पर चीन का मुकाबला करने के लिए मोदी सरकार ने एक और बड़ा कदम उठाया है. अरुणाचल प्रदेश में देश के सबसे पूर्वी गांव से लेकर एलएसी के पास तक जल्द ही भारत के पास अब 78 किलोमीटर की लंबी सड़क होगी और इसके लिए मोदी सरकार ने रास्ता प्रशस्त कर दिया है. न्यूज18 को पता चला है कि देश को जल्द ही अरुणाचल प्रदेश में अपने सबसे पूर्वी गांव डोंग से वास्तविक नियंत्रण रेखा से 4 किलोमीटर करीब तक भारत, चीन और म्यांमार के महत्वपूर्ण त्रिकोणीय जंक्शन को छूने वाली 78 किलोमीटर लंबी रणनीतिक सड़क मिलने वाली है. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 1 फरवरी को तीन साल की समय सीमा के साथ बोलियों को आमंत्रित करके अरुणाचल प्रदेश में डोंग गांव से जचेप कैंप तक एक नई सड़क बनाने की प्रक्रिया शुरू की.
यह सड़क रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि डोंग देश का सबसे पूर्वी गांव है और यह नई सड़क जचेप तक जाएगी, जो चीनी सीमा से लगभग 4 किमी और म्यांमार सीमा से 20 किमी दूर स्थित है. इस सड़क परियोजना में करीब 200 करोड़ रुपये की लागत आएगी और यह 3.75 मीटर चौड़ी सिंगल-लेन सड़क होगी. निर्माण के बाद यह रोड एलएसी के पास कर्मियों, हथियारों और गोला-बारूद के परिवहन और चीन और म्यांमार के साथ त्रिकोणीय जंक्शन के लिए महत्वपूर्ण होगी. सड़क के किनारे एक हेलीपैड बनाने की भी योजना है. यह रोड खड़ी चढ़ाई वाले इलाके से गुजरेगी जिस पर अधिकतम गति सीमा 30-40 किमी प्रति घंटा होगी.
काफी चैलेंजिंग है यह प्रोजेक्ट
यह परियोजना डोंग से शुरू होगी, जो अरुणाचल प्रदेश में लोहित और सेती नदियों के मिलन बिंदु पर स्थित है, और वास्तविक नियंत्रण रेखा से 4 किमी पहले जचेप कैंप पर समाप्त होगी. यह रोड कॉरिडोर डोंग में 1255 मीटर की ऊंचाई से शुरू होगी और चीन, भारत और म्यांमार के सीमावर्ती क्षेत्रों के पास 4,500 मीटर की ऊंचाई तक जाएगी. News18 को पता चला है कि पत्थर कैंप के पास ऊंचाई में अचानक वृद्धि का मुकाबला करने के लिए सड़क के प्रमुख हिस्से को बर्फ से ढके पहाड़ की चोटी से ढकना है. सड़क सिंगल-लेन राष्ट्रीय राजमार्ग विनिर्देशों के अनुसार होगी और एक ग्रीनफील्ड परियोजना होगी.
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क्यों संवेदनशील है अरुणाचल प्रदेश?
दरअसल ,अरुणाचल प्रदेश ने सालों से भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच सीमा पर झड़पें देखी हैं. पिछले साल दिसंबर में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने खुलासा किया था कि चीनी सैनिकों ने तवांग सेक्टर के यांग्त्जी इलाके में यथास्थिति को एकतरफा बदलने के लिए एलएएसी को पार करने की कोशिश की थी, मगर भारतीय सैनिकों की सक्रियता और समय पर करारा जवाब देने के कारण ड्रैगन की सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा. इससे पहले अक्टूबर 2021 में भी एक बड़े चीनी गश्ती दल ने यांग्त्जी में एलएसी को पार करने का प्रयास किया था, जिसके परिणामस्वरूप दोनों पक्ष आमने-सामने आ गए थे और टकराव हुआ था. इतना ही नहीं, चीनी सैनिकों ने तब अरुणाचल प्रदेश में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास बुम ला और यांग्त्जी के सीमावर्ती दर्रे पर कुछ खाली पड़े बंकरों को नष्ट करने का भी प्रयास किया था.
एलएसी पर भारत अपने कदम कर रहा मजबूत
पिछले महीने News18 ने विशेष रूप से बताया था कि अगले दो सालों में लद्दाख में चुशुल से डेमचोक तक वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के साथ-साथ लगभग 135 किमी का एक नया सिंगल-लेन हाईवे बनेगा, जो चीन का मुकाबला करने के लिए भारत के एक प्रमुख रणनीतिक सड़क के रूप में कार्य करेगा. बीआरओ द्वारा पिछले महीने लद्दाख में न्योमा एयरफील्ड के निर्माण के लिए बोलियां आमंत्रित करने के बाद यह सड़क लेह क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के लिए दूसरा बढ़ावा होगा. इस एयरफील्ड में एक उन्नत लैंडिंग ग्राउंड शामिल होगा, जहां लड़ाकू विमान जल्द ही उतर सकते हैं.
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