Army Day: यहां हारने के बाद चीन ने 52 साल से नहीं चलाई एक भी गोली

इन गांवों की माटी में जन्म लेने वाले हौनहारों पर देश की रक्षा का जुनून सवार है Demo Pic.
चीन (China) को इस लड़ाई में करारी हार मिली. इस लड़ाई में भारत (India) ने अपने 88 जवानों को खोया तो चीन के 340 जवान मारे गए और 450 घायल हुए.
- News18Hindi
- Last Updated: January 15, 2021, 10:59 PM IST
नई दिल्ली. नाथुला पास (Nathula Pass) पर लड़ी गई लड़ाई में चीन पर इंडियन आर्मी (Indian Army) ने ऐहतिहासिक जीत हासिल की थी. यह एक ऐसी लड़ाई थी कि जिसमे मिली शिकस्त के बाद चीन (China) ने इस इलाके में 52 साल बाद भी एक गोली (Bullet) चलाने की हिमाकत नहीं की है. गोलियां खत्म होने पर सेना ने खुखरी (Khukri) से चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था. आर्मी हर साल इस जीत का जश्न मनाती है. कहा जाता है कि इसी लड़ाई के बाद सिक्किम पूरी तरह से भारतीय इलाके में आ गया था. पैरा रेजीमेंट (Para Regiment) से कर्नल रिटायर्ड जीएम खान ने न्यूज18 हिंदी को बताया कैसे चीन की एक-एक चाल को नाकामयाब करते हुए यह जीत हासिल की.
“वो 11 सितंबर 1967 का दिन था. अचानक चीन ने सिक्किम-तिब्बत सीमा पर हमला बोल दिया. चीन की कोशिश थी कि किसी भी तरह से भारतीय सीमा को पार कर लिया जाए. भारी मोर्टार के हमले के बीच पांच दिन तक लगातार चीन यही कोशिश करता रहा. लेकिन बॉर्डर पर चौकस 17वीं माउंटेन डिवीजन के जवान चीन के हमले को लगातार नाकाम कर रहे थे. 15 सितंबर को संघर्ष विराम हो गया और गोलीबारी थम गई. सरदार स्वर्ण सिंह उस वक्त रक्षामंत्री थे. उन्होंने इसकी जानकारी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दी. जिस पर पीएम ने इसके लिए सेना की पीठ थपथपाई.
संघर्ष विराम के बावजूद हमारे जवान लगातार सतर्क थे, क्योंकि वो चीन को अच्छी तरह से समझ चुके थे. जैसा जवानों ने सोचा था हुआ भी ठीक वैसा ही. संघर्ष विराम के बाद भी एक अक्टूबर को चीन ने नाथूला और चोला पास पर हमला बोल दिया.
चीन ने हमले की ये हिमाकत दरअसल इसलिए की कि सर्दी शुरू होते ही भारतीय फौज करीब 13 हजार फुट ऊंचे चोला पास पर बनी अपनी चौकियों को खाली कर देती थी और गर्मियों में जाकर दोबारा तैनात हो जाती थी. चीन ने यह हमला पूरी तैयारी और ताकत के साथ किया था, लेकिन चीन की मंशा को भांपते हुए हमारी सेना ने सर्दी में भी उन चौकियों को खाली नहीं किया था. नतीजा ये हुआ कि आमने-सामने की लड़ाई शुरू हो गई.हमारी सेना ने इस भी बार चीन को मुंहतोड़ जबाव दिया. चीन को जवाब देने के लिए मीडियम आर्टिलरी का इस्तेमाल किया गया. एक से 10 अक्टूबर तक चली लड़ाई में वो इतवार का दिन था. हमारी सेना ने पूरी ताकत लगाकर चीन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. लगातार हमले किए गए. चीन के करीब साढ़े तीन सौ जवान मारे गए. यह लड़ाई दस दिन तक चली थी.
Indo-Pak War 1971: इंडियन एयर फोर्स ने पाकिस्तानी सेना की नजर से 15 दिन तक ऐसे छिपाए रखा ताजमहल
इस लड़ाई को लीड करने वाले थे 17वीं माउंटेन डिवीजन के मेजर जनरल सागत सिंह. लड़ाई के दौरान ही नाथूला और चोला पास की सीमा पर बाड़ लगाने का काम किया गया. बाड़ लगाने के काम को रोकने के लिए चीन ने लगातार कोशिश जारी रखीं, लेकिन मेजर जनरल सागत सिंह की अगुवाई में 18 राजपूत, 2 ग्रेनेडियर्स और पायनियर-इंजीनियर्स की एक-एक पलटन ने बाड़ लगाने के काम को अंजाम दे दिया. चीन को इस लड़ाई में करारी हार मिली. इस लड़ाई में भारत ने अपने 88 जवानों को खोया तो चीन के 340 जवान मारे गए और 450 घायल हुए.”
गोली खत्म हुई तो खुखरी का किया इस्तेमाल
जनरल पीपी कुमारमंगलम की लीडरशिप में 1967 की इस लड़ाई में राजपूताना रेजीमेंट के मेजर जोशी, कर्नल राय सिंह, मेजर हरभजन सिंह, गोरखा रेजीमेंट के कृष्ण बहादुर, देवी प्रसाद ने यादगार लड़ाई लड़ी थी. इन सभी बहादुर अफसरों और जवानों के बारे में बताया जाता है कि जब लड़ाई के दौरान गोलियां खत्म हो गईं तो इन सभी ने अपनी खुखरी से कई चीनी अफसरों और जवानों को मौत के घाट उतार दिया.

आजतक चीन ने नहीं चलाई गोली
चोला और नाथूला पास पर 1967 में हुई 10 दिन की लड़ाई में चीन को करारी हार मिली थी. यही वजह है कि उसके बाद से आज तक चीन ने भारत की ओर एक भी गोली चलाने की हिम्मत नहीं जुटाई है. जब हमने 1967 वाली लड़ाई में हिम्मत दिखाई तो उसका असर यह हुआ कि चीन अब बॉर्डर पर हो-हल्ला तो करता है, अपने जवानों को बॉर्डर पर इकट्ठा कर शक्ति प्रदर्शन करता है, लेकिन कभी एक गोली चलाने की हिम्मत नहीं होती है उसकी.
और इस तरह से सिक्किम भारत में आ गया
जानकारों की मानें तो 1967 में लड़ी गई इस लड़ाई के बाद ही भारतीय सेना ने चीन को सिक्किम क्षेत्र से पूरी तरह खदेड़ दिया था. एक-एक चीनी सैनिक से सिक्किम को खाली करा लिया गया था. उसके बाद से सिक्किम भारत में शामिल हो गया. लेकिन सिक्किम को एक राज्य का दर्जा मिलने में थोड़ा वक्त लग गया. वर्ष 1975 में जाकर सिक्किम को राज्य का दर्जा दिया गया.
“वो 11 सितंबर 1967 का दिन था. अचानक चीन ने सिक्किम-तिब्बत सीमा पर हमला बोल दिया. चीन की कोशिश थी कि किसी भी तरह से भारतीय सीमा को पार कर लिया जाए. भारी मोर्टार के हमले के बीच पांच दिन तक लगातार चीन यही कोशिश करता रहा. लेकिन बॉर्डर पर चौकस 17वीं माउंटेन डिवीजन के जवान चीन के हमले को लगातार नाकाम कर रहे थे. 15 सितंबर को संघर्ष विराम हो गया और गोलीबारी थम गई. सरदार स्वर्ण सिंह उस वक्त रक्षामंत्री थे. उन्होंने इसकी जानकारी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दी. जिस पर पीएम ने इसके लिए सेना की पीठ थपथपाई.
संघर्ष विराम के बावजूद हमारे जवान लगातार सतर्क थे, क्योंकि वो चीन को अच्छी तरह से समझ चुके थे. जैसा जवानों ने सोचा था हुआ भी ठीक वैसा ही. संघर्ष विराम के बाद भी एक अक्टूबर को चीन ने नाथूला और चोला पास पर हमला बोल दिया.
चीन ने हमले की ये हिमाकत दरअसल इसलिए की कि सर्दी शुरू होते ही भारतीय फौज करीब 13 हजार फुट ऊंचे चोला पास पर बनी अपनी चौकियों को खाली कर देती थी और गर्मियों में जाकर दोबारा तैनात हो जाती थी. चीन ने यह हमला पूरी तैयारी और ताकत के साथ किया था, लेकिन चीन की मंशा को भांपते हुए हमारी सेना ने सर्दी में भी उन चौकियों को खाली नहीं किया था. नतीजा ये हुआ कि आमने-सामने की लड़ाई शुरू हो गई.हमारी सेना ने इस भी बार चीन को मुंहतोड़ जबाव दिया. चीन को जवाब देने के लिए मीडियम आर्टिलरी का इस्तेमाल किया गया. एक से 10 अक्टूबर तक चली लड़ाई में वो इतवार का दिन था. हमारी सेना ने पूरी ताकत लगाकर चीन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. लगातार हमले किए गए. चीन के करीब साढ़े तीन सौ जवान मारे गए. यह लड़ाई दस दिन तक चली थी.
Indo-Pak War 1971: इंडियन एयर फोर्स ने पाकिस्तानी सेना की नजर से 15 दिन तक ऐसे छिपाए रखा ताजमहल
इस लड़ाई को लीड करने वाले थे 17वीं माउंटेन डिवीजन के मेजर जनरल सागत सिंह. लड़ाई के दौरान ही नाथूला और चोला पास की सीमा पर बाड़ लगाने का काम किया गया. बाड़ लगाने के काम को रोकने के लिए चीन ने लगातार कोशिश जारी रखीं, लेकिन मेजर जनरल सागत सिंह की अगुवाई में 18 राजपूत, 2 ग्रेनेडियर्स और पायनियर-इंजीनियर्स की एक-एक पलटन ने बाड़ लगाने के काम को अंजाम दे दिया. चीन को इस लड़ाई में करारी हार मिली. इस लड़ाई में भारत ने अपने 88 जवानों को खोया तो चीन के 340 जवान मारे गए और 450 घायल हुए.”
गोली खत्म हुई तो खुखरी का किया इस्तेमाल
जनरल पीपी कुमारमंगलम की लीडरशिप में 1967 की इस लड़ाई में राजपूताना रेजीमेंट के मेजर जोशी, कर्नल राय सिंह, मेजर हरभजन सिंह, गोरखा रेजीमेंट के कृष्ण बहादुर, देवी प्रसाद ने यादगार लड़ाई लड़ी थी. इन सभी बहादुर अफसरों और जवानों के बारे में बताया जाता है कि जब लड़ाई के दौरान गोलियां खत्म हो गईं तो इन सभी ने अपनी खुखरी से कई चीनी अफसरों और जवानों को मौत के घाट उतार दिया.
आजतक चीन ने नहीं चलाई गोली
चोला और नाथूला पास पर 1967 में हुई 10 दिन की लड़ाई में चीन को करारी हार मिली थी. यही वजह है कि उसके बाद से आज तक चीन ने भारत की ओर एक भी गोली चलाने की हिम्मत नहीं जुटाई है. जब हमने 1967 वाली लड़ाई में हिम्मत दिखाई तो उसका असर यह हुआ कि चीन अब बॉर्डर पर हो-हल्ला तो करता है, अपने जवानों को बॉर्डर पर इकट्ठा कर शक्ति प्रदर्शन करता है, लेकिन कभी एक गोली चलाने की हिम्मत नहीं होती है उसकी.
और इस तरह से सिक्किम भारत में आ गया
जानकारों की मानें तो 1967 में लड़ी गई इस लड़ाई के बाद ही भारतीय सेना ने चीन को सिक्किम क्षेत्र से पूरी तरह खदेड़ दिया था. एक-एक चीनी सैनिक से सिक्किम को खाली करा लिया गया था. उसके बाद से सिक्किम भारत में शामिल हो गया. लेकिन सिक्किम को एक राज्य का दर्जा मिलने में थोड़ा वक्त लग गया. वर्ष 1975 में जाकर सिक्किम को राज्य का दर्जा दिया गया.