नई दिल्ली. भारत और चीन के बीच सीमा विवाद (India-China Border Rift) को लेकर लद्दाख में हालात काफी तनावपूर्ण हो गए हैं. यहां हुई हिंसक झड़प में भारतीय सेना के एक अधिकारी और दो सैनिक शहीद हो गए हैं. चीन के मुताबिक इस झड़प में उसके भी सैनिक मारे गए हैं. यहां गौर करने वाली बात है कि दोनों देशों के बीच सीमा पर इससे पहले 11 सितंबर 1967 को गोली चली थी. गोली चलने वाली यह वो लड़ाई थी जिसमे दोनों ओर से सैनिक शहीद हुए थे. खास बात यह है कि गोली तो 1975 में भी चली थी, लेकिन दोनों की ओर से कोई हताहात नहीं हुआ था.
सिक्किम (Sikkim)-तिब्बत (Tibbat) सीमा पर बाड़बंदी के चलते दोनों के बीच लड़ाई छिड़ गई थी. मोर्टार हमले के बीच पांच दिन तक चीन लगातार यही कोशिश करता रहा कि भारत की सीमा को पार कर ले, लेकिन बॉर्डर पर चौकस भारतीय सेना (Indian Army) की 17वीं माउंटेन डिवीजन के जवान चीन के हमले को लगातार नाकाम करते रहे. 15 सितंबर को संघर्ष विराम हो गया और गोलीबारी थम गई. इसी लड़ाई में भारतीय और चीन के कई जवान (Jawan) शहीद (martyred) हुए थे. 52 साल बाद अब यह पहला मौका है जब तीन भारतीय सैनिक शहीद हुए हैं.
1967 के बाद से अभी तक चीन ने नहीं चलाई थी गोली
रिटायर्ड कर्नल जीएम खान बताते हैं, “
चोला और नाथूला पास पर 1967 में हुई लड़ाई में चीन को करारी हार मिली थी. यही वजह है कि उसके बाद से आज तक चीन ने भारत की ओर एक भी गोली चलाने की हिम्मत नहीं जुटाई है. जब हमने 1967 वाली लड़ाई में हिम्मत दिखाई तो उसका असर यह हुआ कि चीन अब बॉर्डर पर हो-हल्ला तो करता है, अपने जवानों को बॉर्डर पर इकट्ठा कर शक्ति प्रदर्शन करता है, लेकिन कभी एक गोली चलाने की हिम्मत नहीं होती थी.”
इसलिए चीन ने बोला था हमला
रिटायर्ड कर्नल जीएम खान बताते हैं, “चीन ने हमला करने की हिमाकत इसलिए की थी कि सर्दी शुरू होते ही भारतीय फौज करीब 13 हजार फुट ऊंचे चोला पास पर बनी अपनी चौकियों को खाली कर देती थी और गर्मियों में जाकर दोबारा तैनात हो जाती थी. चीन ने यह हमला पूरी तैयारी और ताकत के साथ किया था, लेकिन चीन की मंशा को भांपते हुए हमारी सेना ने सर्दी में भी उन चौकियों को खाली नहीं किया था. नतीजा ये हुआ कि आमने-सामने की लड़ाई शुरू हो गई.”
यह थे चीन को मुंह तोड़ जवाब देने वाले अफसर
“लड़ाई के दौरान ही नाथूला और चोला पास की सीमा पर बाड़ लगाने का काम चल रहा था. बाड़ लगाने के काम को रोकने के लिए चीन लगातार कोशिश कर रहा था. लेकिन 17वीं माउंटेन डिविजन के मेजर जनरल सागत सिंह की अगुआई में 18 राजपूत, 2 ग्रेनेडियर्स और पायनियर-इंजीनियर्स की एक-एक पलटन ने बाड़ लगाने के काम को अंजाम दे दिया. इस लड़ाई में भारत ने अपने 88 जवानों को खोया तो चीन के 340 जवान मारे गए और 450 घायल हुए.”
गोली खत्म हुई तो खुखरी का किया इस्तेमाल
रिटायर्ड कर्नल जीएम खान बताते हैं, “1967 की इस लड़ाई में राजपूताना रेजीमेंट के मेजर जोशी, कर्नल राय सिंह, मेजर हरभजन सिंह, गोरखा रेजीमेंट के कृष्ण बहादुर, देवी प्रसाद ने यादगार लड़ाई लड़ी थी. जब लड़ाई के दौरान गोलियां खत्म हो गईं तो इन सभी ने अपनी खुखरी से कई चीनी अफसरों और जवानों को मौत के घाट उतार दिया.”
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Tags: China, Indian army, Ladakh Border, Martyrs' Day, Sikkim
FIRST PUBLISHED : June 16, 2020, 14:47 IST