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Indo-Pak War 1971: 13 दिनों में पाक को घुटनों पर लाए भारतीय जांबाज, 93 हजार दुश्‍मन सैनिकों ने किया था सरेंडर

बांग्लादेश के 50 साल पूरे होने पर दासगुप्ता की एक पुस्तक प्रकाशित हुई है- इंडिया एंड द बांग्लादेश लिबरेशन वॉर- दि डेफिनेटिव स्टोरी.

बांग्लादेश के 50 साल पूरे होने पर दासगुप्ता की एक पुस्तक प्रकाशित हुई है- इंडिया एंड द बांग्लादेश लिबरेशन वॉर- दि डेफिनेटिव स्टोरी.

50th Anniversary of India-Pakistan War 1971: बांग्‍लादेश मुक्ति संग्राम में भारतीय सेना की सहभागिता से झल्‍लाए पाकिस्‍त ...अधिक पढ़ें

नई दिल्‍ली. 50th Anniversary of India-Pakistan War 1971: पूर्वी पाकिस्‍तान के लोग सामाजिक, सांस्‍कृतिक और बौद्धिक रूप से पश्चिम के लोगों से बिल्‍कुल अलग थे. इस बात का खामियाजा 24 सालों तक पूर्वी पाकिस्‍तान में रहने वाले बांग्‍लाभाषी लोग झेलते रहे. पूर्वी पाकिस्‍तान में 24 साल से चले आ रहे जुल्मो सितम का अंत भारतीय सेना ने महज 13 दिनों में पाकिस्‍तानी सेना के गुरूर को घुटनों पर लाकर कर दिया था.

दरअसल, भारतीय सेना ने पूर्वी पाकिस्‍तान में मुक्ति वाहिनी को सैन्‍य समर्थन देने का फैसला किया था. इस फैसले से पाकिस्‍तान इस कदर बौखला गया था कि उसने 3 दिसंबर 1971 को पश्चिमी मोर्चे (राजस्‍थान बार्डर) से भारत पर हमला बोल दिया. उस समय की तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्‍तान के इस हमलों का जवाब देने का फैसला किया और इसी के साथ भारत और पाकिस्‍तान के बीच 1971 के युद्ध की शुरुआत हो गई.

भारत और पाकिस्‍तान के बीच महज 13 दिन चले इस युद्ध में पाकिस्‍तान अपने घुटनों पर आ गया और आज से ठीक 50 साल पहले यानी 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्‍तानी सेना के लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाज़ी ने 93 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने बिना शर्त समर्पण किया था. इसी के साथ, 1947 में रची गई साजिश का अंत हुआ और बांग्‍लादेश के रूप में एक नए देश का उदय हो गया.

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दूसरे विश्‍व युद्ध के बाद किसी सेना का सबसे बड़ा समर्पण
16 दिसंबर 1971 की शाम करीब 4 बजकर 31 मिनट पर पाकिस्‍तानी सेना के पूर्वी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने भारतीय सेना के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ (पूर्वी कमान) लेफ्टिनेंट-जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आधिकारिक रूप से 93 हजार सैन्‍य कर्मियों के साथ आत्‍मसमर्पण क‍र दिया. यह आत्‍मसमर्पण ढाका के रमणा रेसकोर्स पर हुआ था, जहां पाकिस्‍तानी लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने सरेंडर के कागजातों पर हस्‍ताक्षर किए थे.

दस्‍तावेजों पर हस्‍ताक्षर के तुरंत बाद, समर्पण करने वाले सभी पाक सैनिकों को युद्ध बंदी के तौर पर गिरफ्तार कर लिया गया था. गिरफ्तार किए गए युद्ध बंदियों में पाकिस्तान सेना के सैनिकों के अलावा अर्द्धसैनिक बल, पुलिस, नौसैनिक के अलावा पाक वायु सेना के जवान भी शामिल थे. माना जाता है कि द्वितीय विश्‍व युद्ध के बाद किसी देश की सेना द्वारा किया गया यह सबसे बड़ा आत्‍मसमर्पण था.

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पाक सेना के लिए किसी तबाही से कम नहीं थे ये 13 दिन
भारत और पाकिस्‍तान के बीच 13 दिन चला 1971 का यह युद्ध पाकिस्‍तानी सेना के लिए किसी तबाही से कम नहीं था. इस युद्ध में पाकिस्‍तानी सेना के करीब 9 हजार जवानों ने अपनी जान गंवाई थी और करीब 25 हजार पाक सैनिक गंभीर रूप से जख्‍मी हुए थे. इस युद्ध में भारतीय नौसेना के जांबाजों ने भी अहम भूमिका निभाई थी. भारतीय नौसेना ने पाकिस्‍तान के दो विनाशक (युद्धपोत) और एक माइन स्‍वीपर को नेस्‍तनाबूद कर दिया था.

इसके अलावा, भारतीय नौसेना के जांबाजों ने पाकिस्‍तानी नौसेना की पनडुब्‍बी, तीन गश्‍त वाहन और सात गन बोस्‍ट्स को जलसमाधि दे दी थी. भारतीय सेना के धारदार हमले में पाकिस्‍तान के सभी मुख्‍य बंदरगाह और वहां मौजूद ईंधन टैंक को ध्‍वस्‍त कर दिया गया था. इसी तरह, भारतीय वायु सेना ने पाकिस्‍तान के 94 लड़ाकू विमानों को हवा में मार गिराया था.

Tags: Bangladesh Liberation War, Indian army, Indian Army Pride, Indian Army Pride Stories, Indo-Pak War 1971

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