50th Anniversary of India-Pakistan War 1971: भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 की जंग का आगाज हो चुका था. इस जंग में फतेह हासिल करने के मकसद से पाकिस्तानी सेना ने शकरगढ़ के रास्ते भारत में दाखिल होने और पठानकोट सैन्य बेस पर कब्जा करने की साजिश रची थी. पाकिस्तानी सेना को ऐसा लगता था कि अगर वह पठानकोट मिलिट्री बेस पर कब्जा करने में कामयाब हो जाता है तो वह न केवल पंजाब में अपनी साजिश को तेजी से अंजाम दे सकेगा, बल्कि जम्मू और कश्मीर को देश के दूसरे हिस्सों से भी काट सकता है.
भारतीय सेना को पाकिस्तानी सेना के इन नापाक इरादों की भनक पहले ही लग चुकी थी. भारतीय सेना ने यह तय किया कि पाकिस्तान अपनी नापाक इरादों की तरफ बढ़े, इससे पहले शकरगढ़ पर भारतीय परचम लहरा कर उसे अपने कब्जे में ले लिया जाए. इसी मकसद से, 14 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना की 3 ग्रेनेडियर्स को सुपवाल पर ब्रिगेड हमला कर जरवाल और लोहान गांवों पर कब्जा करने का आदेश दिया गया. मेजर होशियार सिंह के नेतृत्व में ब्रिगेड की दो कंपनियां 15 दिसंबर 1971 की सुबह कूच कर गईं.
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दुश्मन को इस बात का इल्म था कि भारतीय फौज शकरगढ़ के रास्ते सियालकोट पाक मिलिट्री बेस की तरफ रुख कर सकती है. लिहाजा, उसने बसंतर नदी के किराने के पूरे इलाके को लैंड माइन से पाट दिया था. इस खतरे का आभास होने के बावजूद मेजर होशियार सिंह के कदम रुके नहीं. लैंड माइन को निष्क्रिय कर आगे बढ़ती भारतीय फौज को रोकने के लिए पाक सेना ने भारी गोलीबारी और बमबारी शुरू कर दी. मेजर होशियार सिंह और उनके साथियों ने दुश्मन के इस हमले का मुंहतोड़ जवाब देना शुरू किया.
जिसके बाद, भारतीय सेना का खौफ दुश्मन पर इस कदर छाया कि वे रणभूमि से भागते हुए नजर आए. इस दौरान, भारतीय सेना ने बसंतर के रण से पाकिस्तानी सेना के 20 जवानों को युद्ध बंदी बना लिया और मीडियम मशीनगन, रॉकेट लांचर्स सहित भारी मात्रा में हथियार और गोला बारूद अपने कब्जे में ले लिया. शकरगढ़ का खोना पाकिस्तान सेना के लिए बड़ी शर्मिंदगी बन चुकी थी. इस शर्मिंदगी को दूर करने के लिए पाक सेना ने 16 दिसंबर 1971 को पहले से कई गुना अधिक ताकत के साथ एक बार फिर पलटवार किया.\
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16 दिसंबर 1971 को दोनों सेनाओं के बीच घमासान युद्ध हुआ. इस युद्ध में मेजर होशियार सिंह गंभीर रूप से घायल हो गए, बावजूद इसके उन्होंने रण छोड़ने से इनकार कर दिया. घायल अवस्था में वह एक तरफ दुख मीडियम मशीन गन से दुश्मनों को उनके अंजाम तक पहुंचा रहे थे, वहीं दूसरी तरफ युद्ध लड़ रहे अपने साथियों का उत्साह वर्धन कर रहे थे. 16 दिसंबर को मेजर होशियार सिंह ने पाक सेना के कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल मोहम्मद अकरम राजा सहित 89 जवानों को मार गिराया.
16 दिसंबर 1971 को युद्ध विराम होने से पहले मेजर होशियार सिंह ने दुश्मन के सभी हमलों को नाकाम कर बसंतर के इलाके पर पूरी तरह अपना कब्जा कर लिया. इस युद्ध के दौरान मेजर होशियार सिंह के अद्भुत युद्ध कौशल और बहादुरी के लिए सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. यहां आपको बता दें कि 5 मई 1937 को हरियाणा के सोनीपत में जन्मे मेजर होशियार सिंह का जन्म के सैन्य जीवन की शुरुआत 30 जून 1963 को ग्रेनेडियर रेजिमेंट के साथ शुरू हुई थी. अपने सैन्य जीवन में मेजर होशियार सिंह ने 1971 से पहले 1965 की जंग में भी अद्भुत का वीरता का प्रदर्शन किया था.
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