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Raid on Chachro: पाक के चाचरो पर कब्‍जा कर भारतीय सेना ने बदला था 1971 के युद्ध का रुख, पढ़ें अद्भुत शौर्य गाथा

50th Anniversary of India-Pakistan War 1971:  भारत और पाकिस्‍तान के बीच लड़े गए 1971 के युद्ध में 'चाचरो की लड़ाई' भारत ...अधिक पढ़ें

50th Anniversary of India-Pakistan War 1971:  बांग्‍लादेश लिबरेशन वॉर में कमजोर पड़ती पाकिस्‍तानी सेना अब किसी भी कीमत पर पूर्वी मोर्चे से भारतीय सेना को हटाना चाहती थी. इसी मकसद से, पाकिस्‍तान ने अपनी पूरी ताकत के साथ भारत के पश्चिमी क्षेत्र (राजस्‍थान बार्डर) पर हमला करने की साजिश रची. साजिश के तहत, पाक सेना ने राजस्‍थान के लोंगेवाला बार्डर पोस्‍ट पर पहला हमला कर 1971 के भारत-पाक युद्ध का आगाज कर दिया. जिसके बाद, यह युद्ध आग की तरह पूरे पश्चिमी क्षेत्र में फैलता चला गया.

1971 के भारत-पाक युद्ध की एक लड़ाई राजस्‍थान की बाड़मेर सीमा पर भी चल रही थी, जहां दुश्‍मन ने अपने नापाक इरादों को पूरा करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. इस लड़ाई में दुश्‍मन सेना की ताकत को खत्‍म करने के लिए भारतीय सेना ने चाचरो ( पाक के सिंध प्रांत की थारपारकर जिले की एक तहसील) को अपने कब्‍जे में लेने की योजना तैयार की. दरअसल, सामरिक दृष्टि से चाचरो दुश्‍मन सेना का महत्‍वपूर्ण क्षेत्र था, जो भारत-पाक अंतरराष्‍ट्रीय सीमा से करीब 50 किमी अंदर पाकिस्‍तान में है. बाड़मेर में युद्ध लड़ रही पाक सेना को चाचरो से ही लगातार सैन्‍य मदद भेजी जा रही थी.

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10 पैरा कमांडो को मिला चाचरो पर कब्‍जे का जिम्‍मा
चाचरो पर कब्‍जा करने की जिम्‍मेदारी भारतीय सेना की 10 पैरा कमांडो बटालियन को सौंपी गई. 05 दिसंबर 1971 को योजना के तहत 10 पैरा कमांडोज ने अपना ऑपरेशन शुरू किया. 10 पैरा कमांडोज की दो टीमें अलग-अलग दिशाओं से पाकिस्‍तान में दाखिल हुईं. ये दोनों कमांडो टीमें 6 दिसंबर की देर रात चाचरो से करीब छह किमी पहले एक‍त्रित हुईं और अस्‍थायी कमांडो बेस की स्‍थापना की. हमले से पूर्व कमांडोज ने पूरे इलाके की रेकी की और दुश्‍मन की पोजीशन को ध्‍यान में रखते हुए हमले की योजना नए सिरे से तैयार की.

सूरज की पहली किरण के साथ चाचरो हुआ कब्‍जा
चाचरो को दुश्‍मन ने अत्‍याधुनिक हथियारों और बंकरों की मदद से मजबूत गढ़ में तब्‍दील कर रखा था. 10 पैरा की कमांडो टीम ने 7 दिसंबर 1971 की सुबह करीब चार बजे दुश्‍मन पर हमला कर दिया. भारतीय सेना के इस हमले से दुश्‍मन भौचक्‍का रह गया. कुछ ही घंटों में भारतीय कमांडोज ने चाचरो में मौजूद ज्‍यादातर दुश्‍मनों को मार गिराया. बचे कुछ दुश्‍मन सैनिक भारतीय कमांडोज का रौद्र रूप देख भाग खड़े हुए. सुबह सूरज की पहली किरण के साथ भारतीय कमांडोज ने चाचरो को अपने कब्‍जे में ले लिया.

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चाचरो के बाद वाराह में भी लहराया भारतीय तिरंगा
10 पैरा कमांडोज का ऑपरेशन चाचरो पर कब्‍जे के बाद भी जारी रहा. अब भारतीय कमांडोज के निशाने पर वाराह इलाका (सिंध प्रांत का एक शहर) था. 8 दिसंबर 1971 की देर रात भारतीय कमांडोज ने पाकिस्‍तान के वाराह में कार्रवाई शुरू की. इस कार्रवाई के दौरान, भारतीय कमांडोज ने बड़ी सूझबूझ से दुश्‍मन सेना को यह विश्‍वास दिला दिया कि टैंकों की एक बड़ी फौज उनके खिलाफ कार्रवाई के इरादे से इलाके में घुस रही है. भारतीय सेना की इस सूझबूझ का दुश्‍मन सेना पर मनोवैज्ञानिक आघात हुआ और भारतीय सेना दुश्‍मन को उसके अंजाम तक पहुंचाने में कामयाब रही.

17 पाक सैनिकों को बंदी बना वापस लौटे 10 पैरा कमांडो
भारतीय सेना ने पाकिस्‍तान के वाराह में भी सफलतापूर्वक कब्‍जा कर दिया. इस युद्ध में भारतीय कमांडो 17 पाकिस्‍तानी सैनिकों को युद्ध बंदी बनाने में कामयाब रहे. सफलता पूर्वक इस ऑपरेशन को पूरा करने के बाद 10 पैरा कमांडो 10 दिसंबर 1971 को 17 युद्ध बंदियों और बड़ी मात्रा में हथियारों व गोला-बारूद के साथ लौट आए. दुश्‍मन के गढ़ में घुसकर भारतीय सेना के सैनिकों द्वारा की गई साहसिक कार्रवाई ने दुश्मन के मनोबल को तोड़ने और लड़ने की इच्छा को गंभीर रूप से प्रभावित किया. इस ऑपरेशन के लिए 10 PARA (कमांडो) को बैटल ऑनर ‘चाचरो’ और थिएटर ऑनर ‘सिंध’ से सम्मानित किया गया.

Tags: Bangladesh Liberation War, Indian army, Indian Army Pride, Indian Army Pride Stories, Indo-Pak War 1971

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