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Indo-Pak War 1971: डेरा बाबा नानक की लड़ाई में भारतीय सेना ने ताश के पत्‍तों की तरह ढहाया पाक का 'अभेद्य' किला

Know Your Army Pride: बैटल ऑफ डेरा बाबा नानक (Battle of Dera Baba Nanak), भारत-पाकिस्‍तान के बीच 1971 में लड़े गए युद्ध ...अधिक पढ़ें

50th Anniversary of India-Pakistan War 1971: भारत और पाकिस्‍तान के बीच 1971 में लड़ी गई जंग की तमाम महत्‍वपूर्ण लड़ाइयों में ‘बैटल ऑफ डेरा बाबा नानक’ बेहद अहम थी. दरअसल, भारत और पाकिस्‍तान की सीमा पर रावी नदी के किनारे बसा डेरा बाबा नानक शहर सामरिक दृष्टि से बेहद महत्‍वपूर्ण है. चूंकि अमृतसर, बटला, ब्‍यास और गुरदासपुर जैसे महत्‍वपूर्ण शहर डेरा बाबा नानक से महज 50 किमी की दूरी पर हैं, लिहाजा, पाकिस्‍तान की नापाक नजरें हमेशा से इस रास्‍ते पर लगी रही हैं.

वहीं, भारत-पाक विभाजन से पहले अमृतसर से पाकिस्‍तान के नरोवाल के बीच एक रेलवे लाइन बिछाई गई थी. इस रेलवे लाइन से गुजरने वाली ट्रेनें अमृतसर से चलकर फतेहगढ़ चुरियन, रामदास, डेरा बाबा नानक, करतारपुर साहिब (पाकिस्‍तान) होते हुए पाकिस्‍तान के नरोवाल शहर तक जाती थीं. रावी नदी पर ट्रेनों के गुजरने के लिए एक ब्रिज भी तैयार किया गया था. विभाजन के बाद, रावी नदी पर बने रेलवे पुल का इस्‍तेमाल पाकिस्‍तान ने हमले के लिए किया.

पाकिस्‍तान को भी यह डर था कि भारतीय सेना भी इस रास्‍ते से दाखिल हो सकती है, लिहाजा उसने नदी के उस पार स्थित रेलवे स्‍टेशन की पुरानी इमारतों को अपने वॉररूम में तब्‍दील कर दिया था. पाकिस्‍तानी सेना ने इस वॉर रूम को अत्‍याधुनिक मशीनगनों, टैंकरोधी हथियारों, पिलबॉक्‍सो की एक विस्‍तृत प्रणाली और बंकरों को जोड़ने वाली सुरंगों के जरिए अभेद्य किले में तब्‍दील कर रखा था. साथ ही, सिग्‍नल टॉवरों का इस्‍तेमाल वॉच टावर और भारतीय सेना पर हमले के लिए किया गया.

पाक की पहल के बाद भारतीय सेना की जवाबी कार्रवाई
भारतीय सेना को दुश्‍मन की बदनीयती का अंदेशा पहले से था, लिहाजा ब्रिगेडियर गौरी शंकर के नेतृत्‍व में 86 इन्फैंट्री ब्रिगेड को डेरा बाबा नानक में तैनात किया गया था. पाक सेना की पहल के बाद डोगरा रेजीमेंट की 10वींं बटालियन को दुश्‍मन के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करते हुए उसके गढ़ पर कब्‍जा करने की जिम्‍मेदारी दी गई. भारतीय सेना की डोगरा रेजीमेंट की 10वींं बटालियन ने 5 दिसंबर 1971 की शाम करीब 5.30 बजे अपनी कार्रवाई शुरू की.

भारतीय सेना के 420 जांबाज 21 टैंकों में सवार होकर अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ चले. रावी नदी के किनारे पहुंचने पर वहां की दलदली जमीन और रास्‍ते में उल्‍टी पड़ी गाड़ियों ने भारतीय सेना के इन टैंकों का रास्‍ता रोक लिया. बावजूद इसके, भारतीय सेना के जांबाजों का मनोबल नही टूटा. भारतीय जांबाज टैंकों से उतर कर पैदल ही दुश्‍मन के गढ़ की तरफ बढ़ चले. करीब 5 किमी पैदल चलने के बाद भारतीय सेना दुश्‍मन के गढ़ के करीब तक पहुंचने में कामयाब हो गई.

एक-एक कर सभी बंकरों पर भारतीय जांबाजों ने किया कब्‍जा
दुश्‍मन की भारी गोलाबारी के बीच डोगरा रेजीमेंट के जांबाज अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ते गए और एक-एक कर पाकिस्‍तानी सेना के बंकरों को नेस्‍तनाबूद करना शुरू कर दिया. इस जंग में डोगरा रेजीमेंट का नेतृत्‍व कर रहे लेफ्टिनेंट कर्नल नरिंदर सिंह संधू के पैर में गोली लग गई. उन्‍होंने अपनी जान की परवाह किए बगैर दुश्‍मन से मोर्चा लेना जारी रखा. देखते ही देखते, दुश्‍मन अपने जिस किले को अभेद्य मान रहा था, उस किले को भारतीय जांबाजों ने ताश के पत्‍तों की तरह ढहा दिया.

अंतत: भारतीय सेना के जांबाजों ने रावी नदी के किनारे दुश्‍मन के इस गढ़ को पूरी तरह से अपने कब्‍जे में ले लिया. बैटल ऑफ डेरा बाबा नानक में भारतीय जांबाजों ने पाकिस्‍तान के 34 सैनिकों को मार गिराया था और 26 को युद्ध बंदी बना लिया था. इसके अलावा, भारतीय सेना ने पाकिस्‍तानी सेना के कब्‍जे से भारी तादाद में आसीएल गन, 57 एमएम आरसीएल गन, स्‍टेन गन, एमएमजी, मोर्टार, राइफल्‍स और एलएमजी जब्‍त की थीं.

Tags: Bangladesh Liberation War, Indian army, Indian Army Pride, Indian Army Pride Stories, Indo-Pak War 1971

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