होम /न्यूज /राष्ट्र /Indo-Pak War 1971: 2 हजार पाक सैनिकों को धूल चटा 120 भारतीय जांबाजों ने लोंगेवाला को बनाया दुश्‍मन की 'कब्रगाह'

Indo-Pak War 1971: 2 हजार पाक सैनिकों को धूल चटा 120 भारतीय जांबाजों ने लोंगेवाला को बनाया दुश्‍मन की 'कब्रगाह'

बांग्‍लादेश मुक्ति संग्राम में भारतीय सेना की भूमिका से बौखलाई पाकिस्‍तान सेना ने राजस्‍थान के लोंगेवाला पर हमला बोल 19 ...अधिक पढ़ें

Indo-Pakistan War 1971: बांग्‍लादेश मुक्ति संग्राम (Bangladesh Liberation War) के जरिए अपने अस्तित्‍व की लड़ाई लड़ रहे मुक्ति वाहिनी (Mukti Bahini) के जांबाजों को भारतीय सेना (Indian Army) का पूरा समर्थन था. इसी बात से पाकिस्‍तान (Pakistan) बुरी तरह बौखला हुआ था. इसी बौखलाहट में पाकिस्‍तान ने भारत के खिलाफ एक नई साजिश रची और इस साजिश को ऑपरेशन चंगेजी (Operation Changezi) का नाम दिया गया.

ऑपरेशन चंगेजी के तहत, पाकिस्‍तानी सेना ने राजस्‍थान की लोंगेवाला चौकी (Longewala Post) पर हमला कर भारत में दाखिल होने और रामगढ़, जैसेलमेर होते हुए दिल्‍ली पहुंचने की साजिश रची थी. इस साजिश को अंजाम देने के लिए पाकिस्‍तान ने 2000 जवानों के साथ 65 टैंक और 1 मोबाइल इंफ्रेंट्री ब्रिगेड को लोंगेवाला पोस्‍ट की तरफ रवाना किया था. पाकिस्‍तान की इसी साजिश का नतीजा 1971 भारत-पाकिस्‍तान युद्ध ( Indo-Pakistan war 1971) था.

सेना मुख्‍यालय ने मेजर चांदपुरी पर छोड़ा युद्ध का आखिरी फैसला और…
भारत-पाक सीमा के आखिरी पोस्‍ट लोंगेवाला पर उन दिनों पंजाब रेजीमेंट की 23वीं बटालियन की ए कंपनी को तैनात किया गया था. मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के नेतृत्‍व में तैनात इस कंपनी में 120 जवानों के पास बड़े हथियारों के नाम पर महज एक एमएमजी, एल-16 81 एमएम मोर्टार, तोप लगी एक जीप थी. इसके अतिरिक्‍त, इस पोस्‍ट पर चार सिपाहियों वाला बीएसएफ का एक ऊंट दस्‍ता भी तैनात था.

3 दिसंबर की शाम को लगभग 5:40 बजे, पाकिस्तान एयरफोर्स ने आगरा सहित उत्तर-पश्चिमी भारत की 11 एयर फील्‍ड्स पर हमला कर दिया. इस हमले के सूचना मिलने के साथ मेजर कुलदीप सिंह ने लेफ्टिनेंट धर्मवीर के नेतृत्‍व में 20 जवानों की पेट्रोल टीम को बार्डर पिलर पर भेज दिया. कुछ ही घंटों बाद, लेफ्टिनेंट धर्मवीर ने मेजर कुलदीप को बताया कि 65 टैंक और एक मोबाइल इंफ्रेंट्री के साथ पाकिस्‍तान की बड़ी फौज लोंगेवाला पोस्‍ट की तरफ बढ़ रही है.

मेजर कुलदीप सिंह ने तत्‍काल इस जानकारी को मुख्‍यालय कमांड से साझा कर एयरफोर्स सपोर्ट की मांग की. चूंकि, रात होने वाली थी, लिहाजा अगली सुबह तक लोंगेवाला पोस्‍ट को एयर सपोर्ट मिलना संभव नहीं था. आर्मी मुख्‍यालय ने दो विकल्‍पों के साथ आखिरी फैसला मेजर कुलदीप सिंह पर छोड़ दिया. पहला विकल्‍प पोस्‍ट पर कब्‍जा जमाए रखने का था, जबकि दूसरा विकल्‍प पोस्‍ट को खाली छोड़कर पीछे हटने का था.

यह भी पढ़ें: Indo-Pak War 1971: पूर्वी पाकिस्‍तान का वह घटनाक्रम जो 1971 के भारत-पाक युद्ध का बना कारण

मेजर चांदपुरी के एंटी टैंक माइन जाल में फंसी पाकिस्‍तानी सेना और…
लोंगेवाला पोस्‍ट पर मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के साथ मौजूद 120 जांबाजों ने पोस्‍ट पर रुककर दुश्‍मन को मुंहतोड़ जवाब देने का फैसला किया. दुश्‍मन के टैंक की ताकत को खत्‍म करने के लिए एंटी टैंक माइंस का जाल बिछा दिया गया और एंटी टैंक गन को तैनात कर दिया गया. देखते ही देखते, करीब 20 किलोमीटर लंबा दुश्‍मन की गाडि़यों का काफिला लोंगेवाला पोस्‍ट से कुछ ही दूरी पर एकत्रित हो गया. अब भारतीय सेना और दुश्‍मन बिल्‍कुल आमने-सामने आ चुके थे.

4 दिसंबर 1971 की रात करीब 12.30 बजे पाकिस्‍तान की तरफ से आर्टरी फायरिंग शुरू कर दी गई और पाकिस्‍तानी सेना के टैंकों ने लोंगेवाला पोस्‍ट की तरफ बढ़ना शुरू कर दिया. जैसे ही ये टैंक लोंगेवाला पोस्‍ट से करीब 30 मीटर की दूरी पर रह गए, भारतीय जांबाजों ने एंटी टैंक गन से पाकिस्‍तानी टैंकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. देखते ही देखते, दुश्‍मन के दो शक्तिशाली टैंक धरासाई हो गए. भारतीय सेना को मिली इस पहली सफलता ने इस युद्ध का रुख बदल दिया.

दरअसल, दो टैंक के ध्‍वस्‍त होने से दो बाते हुईं. पहली बात यह कि पाक सेना के अधिकारियों को लगा कि पूरे इलाके में लैंड माइंस बिछी हुई है, लिहाजा उन्‍होंने सेना को लोहे की बाड़ से आगे जाने से रोक दिया. वहीं दूसरी बात यह हुई कि ध्‍वस्‍त हुए दोनों टैंकों की अाग से पूरे इलाके में रोशनी हो गई. अब ऊंचाई पर मौजूद भारतीय सेना पाक सेना को न केवल साफ साफ देख सकती थी, बल्कि उन्‍हें अपनी गोलियों के निशाने पर ले सकती थी.

यह भी पढ़ें: Army Heroes: पाक सेना के मजबूत किले को अकेले ध्‍वस्‍त करने वाले परमवीर एक्‍का की आखिरी कहानी…

भारतीय लड़ाकू विमानों ने पलटा इस युद्ध का पासा और फिर…
पाक सेना के जलते टैंकों की रोशनी की मदद से भारतीय सेना अब दुश्‍मन पर सटीक निशाना लगा सकती थी. मेजर चांदपुरी के नेतृत्‍व में भारतीय सेना मोर्टार, एमएमजी सहित दूसरे हथियारों से इतनी सटीक गोलीबारी कर रही थी कि संख्‍या बल और सैन्‍य संसाधन में कई गुना अधिक शक्तिशाली  दुश्‍मन के पांव अपनी जगह पर जम से गए थे. पाकिस्‍तानी सेना के धमे हुए इन पैरों ने भारतीय सेना के जांबाजों के हौसले को कई गुना बढ़ा दिया.

वहीं, पाक सेना के अधिकारियों को यह समझने में करीब दो घंटे का समय लग गया कि कंटीले तारों के इस तरफ लैंड माइंस नहीं बिछे हुए है. पाक सेना की इस नई समझ ने युद्ध को बेहद गंभीर बना दिया. अब गोलियों की बौछार के साथ-साथ जवानों के बीच हाथापाई भी शुरू हो गई थी. बेहद सीमित संसाधनों के बीच युद्ध लड रहे भारतीय सेना के जांबाजों ने अपने राइफल की संगीन ने लोंगेवाला पोस्‍ट को दुश्‍मन की लाशों से पटाना शुरू कर दिया था.

उधर, सूरज की पहली किरण के साथ भारतीय एयर फोर्स के हंटर और मारुत लड़ाकू विमान मदद के लिए लोंगेवाला पोस्‍ट पहुंच चुके थे. इन लड़ाकू विमानों ने देखते ही देखते पाकिस्‍तानी टैंकों को एक-एक करके ध्‍वस्‍त करना शुरू कर दिया. इस हवाई हमले में दोपहर तक पाकिस्‍तान सेना की 100 से ज्‍यादा बख्‍तरबंद गाडि़यां, 22 टैंक और 12 टैंक इंफेट्री बर्बाद हो चुकी थी. इस बीच, रणभूमि में पहुंचे कैवलेरी टैंक और 17 राजपूताना राइफल्‍स की जवाबी कार्रवाई ने पाक सेना की बची खुची ताकत भी समाप्‍त कर दी.

इस तरह, भारतीय सेना के महज 120 जांबाजों ने दुश्‍मन सेना के 2000 जवानों, 65 टैंक और  1 मोबाइल इंफ्रेंट्री ब्रिगेड को अपने हौसले से रौंद डाला. इस युद्ध में भारतीय सेना ने अभूतपूर्व विजय प्राप्‍त की. वहीं उद्भुत युद्ध कौशल के लिए 23वीं बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर कुलदीप सिंह चांदपुरी को महावीर चक्र से सम्‍मानित किया गया था.

Tags: Indian army, Indian Army Pride, Indian Army Pride Stories, Indo-Pak War 1971

टॉप स्टोरीज
अधिक पढ़ें