नई दिल्ली. 50th Anniversary of India-Pakistan War 1971: बांग्लादेशन लिब्रेशन वॉर (Bangladesh Liberation War) में भारतीय सेना की सशक्त मौजूदगी ने पाकिस्तान सेना की मुसीबतें बढ़ा दी थी.पाकिस्तान किसी भी कीमत पर पूर्वी क्षेत्र से भारतीय सेना के दबाव को खत्म करना चाहता था. इन्हीं मंसूबों के तहत पाकिस्तान ने दो नई साजिशें रचीं. पहली साजिश राजस्थान के लोंगेवाला पोस्ट (Longewala post of Rajasthan) से भारत पर हमला कर जैसलमेर में कब्जा की थी.
वहीं, दूसरी साजिश सियालकोट बेस की मदद से शकरगढ़ के रास्ते पंजाब के पठानकोट पर कब्जा करना था. पाकिस्तान पठानकोट पर कब्जा कर जम्मू और कश्मीर से शेष भारत का संपर्क काटना चाहता था. पाकिस्तान अपने दूसरे मंसूबे पर काम करता, इससे पहले भारतीय सेना ने शकरगढ़ इलाके में हमला कर उसे अपने कब्जे में लिया. पाकिस्तान के शकरगढ़ इलाके में हुई टैंक से टैंक के बीच हुई इस भीषण लड़ाई को बैटल ऑफ बसंतर (Battle of Basantar) के नाम से जाना गया.
बसंतर नदी पर पुल बना शकरगढ़ में भारतीय सेना का आक्रमण
पठानकोट पर कब्जा करने के मंसूबे के साथ पाकिस्तान ने तीन इंफेंट्री डिवीजन, एक आर्मडर् डिवीजन और एक आर्मर्ड ब्रिगेड शकरगढ़ इलाके में बसंतर नदी के किनारे तैनात कर रखी थी. इधर, पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फेरने के लिए भारतीय सेना की 3 इंफेंट्री डिवीजन और 2 आर्मर्ड ब्रिगेड बसंतर नदी के इस पार पहुंच चुकी थीं. दुश्मन को भारतीय सेना की काबलियत पर कोई शक नहीं था. उन्हें पता था कि भारतीय सेना जल्द ही नदी पर पुल बनाकर हमला करेगी.
भारतीय सेना और उसके टैंकों को रोकने के लिए दुश्मन ने बसंतर नदी के किनारे को लैंड माइन से पाट दिया था. इधर, 47 इंफैंट्री बटालियन और 17 पूना हार्स ने 15 दिसंबर की रात्रि नौ बजे बसंतर नदी पर पुल बनाने का काम पूरा कर लिया. पुल बनते ही भारतीय सेना की इंजीनियरिंग विंग ने माइन फील्ड को साफ करना शुरू कर दिया. माइन फील्ड साफ करने का काम अभी आधा ही पूरा हुआ था, तभी पाक सैनिकों की गतिविधियों के बाबत एक अहम गुप्त सूचना मिली. इस सूचना में यह भी बताया गया था कि दुश्मन सेना अपने टैंक ब्रिगेड के साथ उनकी तरफ बढ़ रहा है.
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दुश्मन के 10 टैंकों से मुकाबले लेने जंग के मैदान में उतरे तीन भारतीय टैंंक
दुश्मन के आने की खबर मिलने के बाद कैप्टन वी.मल्होत्रा, लेफ्टिनेंट अहलावत और सेंकेड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की तिकड़ी माइन्स की परवाह किए बगैर अपने टैंक के साथ दुश्मन की तरफ बढ़ गए. कुछ ही समय में, दुश्मन के दस टैंक से मोर्चा लेने के लिए भारतीय सेना के तीन टैंक उनके सामने थे. युद्ध के आगाज के साथ कैप्टन मल्होत्रा, लेफ्टिनेंट अहलावत और सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की तिकड़ी ने दुश्मन के सात टैंक को खाक में मिला दिया.
दुश्मन सेना के तीन टैंक अभी भी जंग के मैदान में आग बरसा रहे थे. कैप्टन मल्होत्रा का टैंक दुश्मन के टैंक से निकले गोले की चपेट में आ चुका था और लेफ्टिनेंट अहलावत का टैंक में तकनीकी खराबी आ गई थी. दुश्मन तीन टैंकों को अंजाम तक पहुंचाने की जिम्मेदारी अकेले सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल पर आ गई थी. दुश्मन के तीन टैंक अब सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल के टैंक को हर हाल में निशाना बनाना चाहते थे. लेकिन, जल्द ही, सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल ने दुश्मन सेना के दो टैंक को अपने जाल में फंसा कर नेस्तेनाबूद कर दिया.
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दुश्मन टैंक के गोले की चपेट में आया खेत्रपाल का टैंक और फिर…
बसंतर की जंग में दुश्मन सेना का एक ही टैंक बचा था. सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल दुश्मन के इस टैंक की तरफ रुख करते, इससे पहले दुश्मन सेना के टैंक से निकला एक गोला उनके टैंक पर आ गिरा. सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल का टैंक में अब आग की लपटें उठने लगी थी. इस स्थिति को देखकर उनके यूनिट कमांडर ने टैंक छोड़कर वापस आने के लिए कहा. हालांकि, सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल अपने यूनिट कमांडर की इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं थे.
उन्होंने अपने यूनिट कमांडर को जवाब देते हुए कहा – ‘सर, मैं अपने टैंक को लावारिस नहीं छोड़ सकता हूं, अभी मेरी गन काम कर रही है, मैं इन दुश्मन को अंजाम तक पहुंचाकर वापस आऊंगा.’ अब तक, दुश्मन सेना का तीसरा टैंक सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल से महज 100 मीटर की दूरी पर पहुंच चुका था. बिना समय गंवाए उन्होंने दुश्मन के टैंक पर निशाना साधना शुरू कर दिया. तभी सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की मशीन गन से निकली एक गोली ने दुश्मन सेना के विशालकाय टैंक को ध्वस्त कर दिया.
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मरणोपरांत सेना के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित
दुश्मन के 4 टैंक को नेस्तेनाबूद करने वाले सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल का टैंक अब पूरी तरह से आग की चपेट में आ चुका था. सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल के लिए अब इस टैंक से बाहर निकलना नामुमकिन था. ‘बैटल ऑफ बसंतर’ के दौरान, सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल दुश्मन से मोर्चा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए. सेकेंड लेफ्टीनेंट अरुण खेत्रपाल के अदभुत शौर्य और पराक्रम के लिए उन्हें मरणोपरांत सेना के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.
उल्लेखनीय है कि अरुण खेत्रपाल का जन्म 14 अक्टूबर 1950 को पूना शहर (महाराष्ट्र) के एक सैन्य परिवार में हुआ था. उनके पिता एमएल खेत्रपाल भी उस समय भारतीय सेना में बिग्रेडियर के पद पर तैनात थे. उन्होंने सैन्य जीवन की शुरुआत 1967 में नेशनल डिफेंस अकादमी से की थी. 13 जून 1971 में उनको 17 पूना हार्स में बतौर सेकेंड लेफ्टिनेंट कमीशंड किया गया. 1971 के भारत-पाक युद्ध में महज 21 वर्ष की आयु में उन्होंने देश के लिए अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान दे दिया था.
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