2017 का उत्तर प्रदेश साबित होगा बंगाल! यहां BJP की रणनीति को ऐसे समझिए

294 सीटों वाले राज्य के लिए बीजेपी ने 200 से ज्यादा पर जीत का लक्ष्य रखा है. (सांकेतिक तस्वीर: AP)
West Bengal Election: बीजेपी (BJP) को लगता है कि एनडीए-1 में जो हाल उत्तर प्रदेश के थे, वैसे ही हालात एनडीए-2 में बंगाल के बनेंगे. उस समय पार्टी यूपी में 47 से 325 सीटों पर पहुंच गई थी. बंगाल की लिए बीजेपी की रणनीतिक काफी हद तक यूपी और त्रिपुरा से मेल खाती है.
- News18Hindi
- Last Updated: March 19, 2021, 2:22 PM IST
(अमन शर्मा)
नई दिल्ली. आपको डेविड और गोलियथ की कहानी याद होगी. इस कहानी में डेविड ने विशालकाय गोलियथ को एक ही लड़ाई में मात दे दी थी. अब पश्चिम बंगाल (West Bengal) चुनाव में भी ऐसा ही दृश्य तैयार होता नजर आ रहा है. हालांकि, अभी यह साफ नहीं है कि इस लड़ाई में डेविड और गोलियथ कौन है. इसके अलावा एक सवाल और यह है कि क्या भारतीय जनता पार्टी (BJP) इस चुनाव में उप क्षेत्रीय समीकरणों को भुना पाएगी?
दिल्ली में बीजेपी के वरिष्ठ नेता, ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को हाल में लगी चोट के हवाले से कहते हैं कि गोलियथ खुद को डेविड की तरह दिखा रहा है. वो कहते हैं 'यहां मजबूत कैडर, ताकत, पैसा और संसाधन के साथ दो बार की सीएम हैं, लेकिन गोलियथ अचानक ऐसी पार्टी के खिलाफ सहानुभूति का दांव खेल रहा है, जिसकी पांच साल पहले तक राज्य में 3 सीटें थीं.' इसके बावजूद बीजेपी कहती है कि उन्हें राज्य में और खासकर कोलकाता में प्रचार के लिए होर्डिंग लगाने को जगह मिलना भी मुश्किल हो गया है.
उन्होंने बताया कि इन सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने बीजेपी को 'बाहरी' के तौर पर पेश किया. बहरहाल बीजेपी खेमे को लगता है कि उनके पास बड़ी जीत का भरोसा रखने के कई कारण हैं. 294 सीटों वाले राज्य के लिए बीजेपी ने 200 से ज्यादा पर जीत का लक्ष्य रखा है.बीजेपी यहां दोहराएगी त्रिपुरा की रणनीति
बीजेपी को लगता है कि एनडीए-1 में जो हाल उत्तर प्रदेश के थे, वैसे ही हालात एनडीए-2 में बंगाल के बनेंगे. उस समय पार्टी यूपी में 47 से 325 सीटों पर पहुंच गई थी. बंगाल की लिए बीजेपी की रणनीतिक काफी हद तक यूपी और त्रिपुरा से मेल खाती है. त्रिपुरा में बीजेपी ने 2018 में वाम दल के 20 साल पुराने शासन को खत्म कर 60 में से 36 सीटें जीतीं थीं.
यह भी पढ़ें: बांग्लादेश से बंगाल साधेंगे PM मोदी! मतुआ समुदाय के चुनावी कनेक्शन को समझिए
टीएमसी का मुकाबला
बीजेपी उप-क्षेत्रीय इलाकों में तृणमूल का ताकत से परिचित है. पार्टी 2019 के लोकसभा चुनाव में दक्षिण बंगाल के प्रदर्शन को भी जानती है. बीजेपी ने 42 में से 18 सीटें जीती थीं. लेकिन 2021 अब 2019 नहीं है. मूड 'सर्वव्यापी' है और पार्टी अपनी 2019 की सफलता पर खड़ी हुई है. इसमें आदिवासी लोगों और अनुसूचित जातियों को शामिल करना, दलित मटुआ समुदाय तक पहुंचना और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के 'छूटी हुईं' हिंदू जातियों को ओबीसी लिस्ट में शामिल करना है. पार्टी को उम्मीद है कि इससे टीएमसी के लिए एक साथ आने वाले 30 फीसदी मुस्लिम वोट पर असर होगा. हालांकि, चुनाव में दूसरी पार्टियां भी मौजूद हैं.

बुद्धी का खेल
टीएमसी के रणनीतिकार प्रशांत किशोर कहते हैं कि बीजेपी राज्य में 100 सीटें भी पार नहीं कर पाएगी. इस दावे को भाजपा अपने उभरने की शांत स्वीकृति के तौर पर देखती है. चुनावी सरगर्मी बढ़ती जा रही है. ऐसे में कुछ लोगों का कहना है कि बीजेपी, तृणमूल को कड़ी टक्कर देगी, लेकिन जीतेगी नहीं. उन्होंने लगता है कि बीजेपी को को 'नैतिक जीत' के साथ संतोष करना होगा, जैसा कांग्रेस ने 2017 के गुजरात चुनाव में किया था. लेकिन गृहमंत्री अमित शाह का 200 से ज्यादा सीटें जीतने का ऐलान यह दिखाता है कि हर सीट मायने रखती है. मोदी और शाह या बीजेपी के लिए बंगाल का चुनावी रण में डेविड का गोलियथ को हराना 2024 में केंद्र के तीसरे कार्यकाल के लिए राह तैयार करेगा.
(पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
नई दिल्ली. आपको डेविड और गोलियथ की कहानी याद होगी. इस कहानी में डेविड ने विशालकाय गोलियथ को एक ही लड़ाई में मात दे दी थी. अब पश्चिम बंगाल (West Bengal) चुनाव में भी ऐसा ही दृश्य तैयार होता नजर आ रहा है. हालांकि, अभी यह साफ नहीं है कि इस लड़ाई में डेविड और गोलियथ कौन है. इसके अलावा एक सवाल और यह है कि क्या भारतीय जनता पार्टी (BJP) इस चुनाव में उप क्षेत्रीय समीकरणों को भुना पाएगी?
दिल्ली में बीजेपी के वरिष्ठ नेता, ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को हाल में लगी चोट के हवाले से कहते हैं कि गोलियथ खुद को डेविड की तरह दिखा रहा है. वो कहते हैं 'यहां मजबूत कैडर, ताकत, पैसा और संसाधन के साथ दो बार की सीएम हैं, लेकिन गोलियथ अचानक ऐसी पार्टी के खिलाफ सहानुभूति का दांव खेल रहा है, जिसकी पांच साल पहले तक राज्य में 3 सीटें थीं.' इसके बावजूद बीजेपी कहती है कि उन्हें राज्य में और खासकर कोलकाता में प्रचार के लिए होर्डिंग लगाने को जगह मिलना भी मुश्किल हो गया है.
उन्होंने बताया कि इन सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने बीजेपी को 'बाहरी' के तौर पर पेश किया. बहरहाल बीजेपी खेमे को लगता है कि उनके पास बड़ी जीत का भरोसा रखने के कई कारण हैं. 294 सीटों वाले राज्य के लिए बीजेपी ने 200 से ज्यादा पर जीत का लक्ष्य रखा है.बीजेपी यहां दोहराएगी त्रिपुरा की रणनीति
यह भी पढ़ें: बांग्लादेश से बंगाल साधेंगे PM मोदी! मतुआ समुदाय के चुनावी कनेक्शन को समझिए
टीएमसी का मुकाबला
बीजेपी उप-क्षेत्रीय इलाकों में तृणमूल का ताकत से परिचित है. पार्टी 2019 के लोकसभा चुनाव में दक्षिण बंगाल के प्रदर्शन को भी जानती है. बीजेपी ने 42 में से 18 सीटें जीती थीं. लेकिन 2021 अब 2019 नहीं है. मूड 'सर्वव्यापी' है और पार्टी अपनी 2019 की सफलता पर खड़ी हुई है. इसमें आदिवासी लोगों और अनुसूचित जातियों को शामिल करना, दलित मटुआ समुदाय तक पहुंचना और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के 'छूटी हुईं' हिंदू जातियों को ओबीसी लिस्ट में शामिल करना है. पार्टी को उम्मीद है कि इससे टीएमसी के लिए एक साथ आने वाले 30 फीसदी मुस्लिम वोट पर असर होगा. हालांकि, चुनाव में दूसरी पार्टियां भी मौजूद हैं.
बुद्धी का खेल
टीएमसी के रणनीतिकार प्रशांत किशोर कहते हैं कि बीजेपी राज्य में 100 सीटें भी पार नहीं कर पाएगी. इस दावे को भाजपा अपने उभरने की शांत स्वीकृति के तौर पर देखती है. चुनावी सरगर्मी बढ़ती जा रही है. ऐसे में कुछ लोगों का कहना है कि बीजेपी, तृणमूल को कड़ी टक्कर देगी, लेकिन जीतेगी नहीं. उन्होंने लगता है कि बीजेपी को को 'नैतिक जीत' के साथ संतोष करना होगा, जैसा कांग्रेस ने 2017 के गुजरात चुनाव में किया था. लेकिन गृहमंत्री अमित शाह का 200 से ज्यादा सीटें जीतने का ऐलान यह दिखाता है कि हर सीट मायने रखती है. मोदी और शाह या बीजेपी के लिए बंगाल का चुनावी रण में डेविड का गोलियथ को हराना 2024 में केंद्र के तीसरे कार्यकाल के लिए राह तैयार करेगा.
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