इस साल इसरो (ISRO) का ध्यान पीछे चल रहे अभियानों को पूरा करने पर रहेगा. इन्हीं में एक SSLV भी है. (तस्वीर: ISRO)
नई दिल्ली. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने छोटे उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाने के लिए नया प्रक्षेपण यान (Small Satellite Launch Vehicle-SSLV) बनाया है. इसके अंतिम चरण का परीक्षण भी इसी सोमवार को पूरा कर लिया गया. यह परीक्षण पूरी तरह सफल रहा है. बताया जाता है कि एसएसएलवी (SSLV) की पहली उड़ान इसी साल मई में हो सकती है. इसमें यह अपने साथ कुछ उपग्रहों को अंतरिक्ष में लेकर जाएगा.
इसरो की ओर से जारी बयान में बताया गया, ‘एसएसएलवी (SSLV) की पहली उड़ान (D-1) मई-2022 में निर्धारित है. इस उड़ान से पहले यान के एसएस-1 स्टेज के सफल परीक्षण ने एजेंसी को नया आत्मविश्वास दिया है. एसएस-1 (SS-1) ठोस ईंधन आधारित बूस्टर स्टेज है, इसके जमीनी परीक्षण (Ground Test) के दौरान सभी प्रणालियों ने ठीक तरह से काम किया और अपेक्षित नतीजे दिए. प्रक्षेपण यान (Launch Vehicle) के एसएस-2 (SS-2) और एसएस-3 (SS-3) स्टेज के जमीनी परीक्षण पहले ही पूरे हो चुके हैं. अब इन सभी को असेंबल करने का काम बाकी रह गया है. इसके बाद प्रक्षेपण के लिए यान पूरी तरह तैयार होगा.’
व्यावसायिक रूप से बेहद कारगर हो सकता है एसएसएलवी
इसरो सूत्रों के मुताबिक एसएसएलवी (SSLV) व्यावसायिक रूप से बेहद कारगर हो सकता है. उपग्रह प्रक्षेपण की एक प्रक्रिया के दौरान इसकी लागत महज 30 करोड़ रुपये के आसपास आंकी गई है. वहीं, ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) में यही लागत एक बार में 120 करोड़ रुपये के करीब आती है. इस तरह एसएसएलवी के जरिए लगभग एक चौथाई लागत में छोटे उपग्रहों का प्रक्षेपण संभव हो सकेगा. इतना ही नहीं एसएसएलवी (SSLV) को मांग के अनुरूप 6 लोगों की टीम 7 दिनों के भीतर असेंबल कर सकती है. जबकि पीएसएलवी (PSLV) को असेंबल करने में 600 लोग और महीनों का समय लगता है. बताते चलें कि अभी भारत व्यावसायिक रूप से अन्य देशों के जिन उपग्रहों (छोटे-बड़े सभी) का भी प्रक्षेपण करता है, वे अधिकांश पीएसएलवी से अंतरिक्ष में भेजे जाते हैं.
जानकार बताते हैं कि वैश्विक अंतरिक्ष बाजार में अभी भारत की हिस्सेदारी महज 2% है. इसे अगले कुछ सालों में 9% तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है. इसमें एसएसएलवी (SSLV) काफी मददगार हो सकता है. यह 500 किलोग्राम तक छोटे उपग्रह भी अपने साथ अंतरिक्ष में ले जा सकता है. जबकि पीएसएलवी (PSLV) 1,750 किलोग्राम और उससे ज्यादा वजन वाले उपग्रहों को ही अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करता है. वैसे, ध्यान रखने की बात यह भी है कि एसएसएलवी (SSLV) की पहली उड़ान में करीब 2 साल की देरी हुई है. पहले इसकी पहली उड़ान 2020 के अंत में प्रस्तावित थी. लेकिन कोरोना महामारी की वजह से इसे आगे टालना पड़ा था.
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Tags: Hindi news, ISRO, ISRO satellite launch
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