नई दिल्ली. देश में दुर्लभ जानवरों की तस्करी कोई नई बात नहीं है. लेकिन अब कंगारुओं की भी तस्करी होने लगी है. पश्चिम बंगाल में सिलीगुड़ी के नजदीक पिछले महीने दो कंगारुओं को रेस्क्यू किया गया था. तीसरे कंगारू का कंकाल जंगल में मिला था. इससे पहले मार्च में बंगाल-असम सीमा से एक रेड कंगारू को रेस्क्यू करके दो लोगों की गिरफ्तारी हुई थी. चौंकाने वाली बात ये है कि ऑस्ट्रेलिया के इस राष्ट्रीय पशु की तस्करी का संबंध मध्य प्रदेश में इंदौर नगर निगम के एक चिड़ियाघर से सामने आया है.
मनी कंट्रोल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मार्च में कंगारू तस्करी के आरोप में हैदराबाद के दो लोग पकड़े गए थे. उनके पास इंदौर के कमला नेहरू प्राणी उद्यान की ओर से जारी ‘परचेज ऑर्डर’ मौजूद था. इस ऑर्डर में लिखा था कि ये कंगारू मिजोरम के ब्रूनेल एनिमल फार्म से लाए जा रहे हैं. इंदौर ज़ू के क्यूरेटर निहार पारुलेकर ने मोंगाबे से बातचीत में इन कंगारुओं को खरीदकर लाने की बात से इनकार किया. उन्होंने कहा कि ये कंगारू बतौर गिफ्ट चिड़ियाघर भेजे जा रहे थे. हमने एनिमल फार्म को साफ कह दिया था कि हम इनका कोई पैसा नहीं देंगे. हालांकि कंगारू लाने पर जो खर्चा होगा, उसकी भरपाई की जाएगी. ऐसा पहले भी किया जा चुका है. मिजोरम के इसी फार्म से पहले भी कुछ दुर्लभ पक्षी इंदौर ज़ू में भेजी गई थीं.
हैरानी की बात ये है कि इंदौर के चिड़ियाघर ने मिजोरम के जिस ब्रूनेल फार्म से इन्हें मंगवाने का परचेज ऑर्डर जारी किया था. असल में वहां ऐसा कोई एनिमल फार्म है ही नहीं, जहां कंगारू पालन हो सके. मिजोरम के चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन बताते हैं कि मिजोरम में कंगारू पालन का कोई फार्म रजिस्टर्ड नहीं है, ऐसे में कानूनी तरीके से वहां कंगारू पालन नहीं हो सकता. वाइल्डलाइफ क्राइम इनवेस्टिगेटर राहुल दत्ता भी कहते हैं कि मिजोरम में कंगारू पालन का कोई फार्म है, ऐसा मुझे नहीं लगता. संभवतः ये कंगारू म्यांमार या थाईलैंड जैसे किसी दक्षिण-पूर्व एशियाई देश से लाए गए होंगे क्योंकि ऑस्ट्रेलिया के कंगारू लाना बेहद मुश्किल है. मिजोरम के फार्म ने बस बिचौलिये का काम किया होगा.
वाइल्डलाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो के ईस्ट जोन के क्षेत्रीय निदेशक अग्नि मित्रा ने बताया कि इंदौर ज़ू ने फार्म से कंगारू मंगवाने के लिए सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी से परमीशन नहीं ली थी. लगता है, बंगाल में कंगारुओं की बरामदगी की ये दोनों घटनाएं आपस में जुड़ी हैं. मार्च में कंगारुओं की खेप पकड़े जाने के बाद तस्करों ने बाकी जानवरों को छोड़ दिया होगा, जो अब मिले हैं. सेंट्रल ज़ू अथॉरिटी के एक रिटायर्ड अफसर ने बताया कि गैरकानूनी तरीकों से दुर्लभ जानवरों को लाना कोई नई बात नहीं है. कई चिड़ियाघरों में ऐसा होता है. चिड़ियाघर ऐसे जानवरों को खरीदते नहीं हैं, लेकिन लाने का खर्च देते हैं और इसी में उन जानवरों की बिक्री की रकम अघोषित तौर पर जुड़ी रहती है.
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