तेलंगाना के मुख्यमंत्री आवास प्रगति भवन के बाहर की इन तस्वीरों को देखने पर आपको लगेगा कि सीएम के. चंद्रशेखर राव ने किसी चुनाव में शानदार जीत दर्ज की है. केसीआर से मिलने कई नेता सीएम आवास आ रहे हैं, तो कई उन्हें फोन कर उनसे आगे बढ़ने को कह रहे हैं.
हैदराबाद में सीएम आवास के बाहर मची इस गहमा-गहमी की वजह यह है कि केसीआर ने अब राष्ट्रीय राजनीति पर दस्तक देने का मन बना लिया है. देश के कई क्षत्रप जहां आम तौर पर अपने पत्ते जल्द नहीं खोलते, वहीं केसीआर ने केंद्र की राजनीति को लेकर काफी पहले अपना रुख साफ कर दिया है.
केसीआर का यह कदम तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता की याद दिलाता है, जिन्होंने 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान अपने पोस्टर-बैनरों के जरिये यह साफ कर दिया था कि वह भी प्रधानमंत्री पद की इच्छुक हैं. जयललिता का वह कदम केसीआर के लिए भी प्रेरणा बन सकता है, क्योंकि उस चुनाव में मोदी लहर के बावजूद जयललिता ने तलिमनाडु की 39 में से 37 सीटों पर अपना कब्जा जमाया था.
केसीआर के इस ऐलान का वक्त भले कई जानकारों को हैरान करता है. दरअसल बीजेपी ने शनिवार को ही उत्तर पूर्व के चुनावों में कांग्रेस और सीपीएम को धूल चटाई थी और उसी शाम केसीआर ने दोनों राष्ट्रीय पार्टियों को खरी-खोटी सुनाते हुए तीसरे मोर्चे का बिगुल फूंक दिया.
केंद्र की राजनीति से जुड़े केसीआर के इन अरमानों को इस बात से भी बल मिलता है कि अगर लोकसभा चुनावों में बीजेपी का रथ 200 सीटों के आसपास रुक गया और कांग्रेस सौ का आंकड़ा भी नहीं छू पाई, तो अन्य सभी दल तीसरे मोर्चे के ही साथ आएंगे.
केसीआर के इस ख्वाब को बीजेपी और कांग्रेस भले ही खयाली पुलाव बता कर खारिज कर रहे हैं, लेकिन अहम सवाल यह है कि केसीआर आखिर हैदराबाद से दिल्ली क्यों कूच करना चाहते हैं? आखिर केसीआर और पीएम मोदी के बीच ऐसा क्या हुआ जो वह अब उनके कटु आलोचक बन गए हैं.
अगर नवंबर 2016 को याद करें, तो पीएम मोदी के नोटबंदी के फैसले का गैर एनडीए मुख्यमंत्रियों में केसीआर ने ही सबसे पहले समर्थन किया था. उन्होंने जीएसटी के मुद्दे पर भी पीएम मोदी का साथ दिया. राष्ट्रपति चुनावों के दौरान केसीआर ने एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का खुलकर समर्थन दिया और यूपीए उम्मीदवार मीरा कुमार के साथ मुलाकात से भी इनकार कर दिया था.
दरअसल केसीआर के इन सपनों के पीछे तेलंगाना की राजनीति और वहां का चुनावी गणित अहम फैक्टर है. इससे पहले 2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में संयुक्त आंध्र की 29 और 33 सीटों ने केंद्र में कांग्रेस की सरकार में अहम रोल निभाया था. वहीं चंद्रबाबू नायडू भी आंध्र की उचित फंड ना दिए जाने को लेकर मोदी सरकार से नाराज़ हैं. ऐसे में वह भी गैर-बीजेपी और गैर कांग्रेसी धड़े के साथ जुड़ सकते हैं. अगर वे दोनों पार्टियां कुल मिलाकर 30-35 सीटें ले आती हैं, तो फिर केंद्र में सत्ता की चाबी उनके पास ही होगी.
केंद्र में नरेंद्र मोदी का विजय रथ रोकने के लिए तीसरे मोर्चे के गठन की सफलता यूं तो अभी दूर की कौड़ी दिखती है, लेकिन केसीआर के बयान ने गैर बीजेपी और गैर कांग्रेस के बीच एक नई उम्मीद जरूर जगा दी है.
केसीआर की कोशिश फिलहाल तो तेलंगाना में अपनी जड़े मजबूत करने की है. वहीं अगर अगले साल होने वाले चुनाव में तीसरा मोर्चा असफल भी होता है, पर नरेंद्र मोदी बहुमत के आंकड़ें से थोड़ा पीछे रह जाते हैं, तो उन्हें भी केसीआर जैसे क्षत्रपों को ही साधना पड़ेगा और उस स्थिति में उनके लिए दोनों हाथों में लड्डू जैसा हाल है
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FIRST PUBLISHED : March 05, 2018, 12:47 IST