Kerala Assembly Election 2021: 33 सीटों पर असरदार ईसाई, इस बार किस पर भरोसा करेगा समुदाय?

(AP Photo/Manish Swarup)
Kerala Assembly Election 2021: राज्य में सबसे बड़ी ईसाई पार्टी केरल कांग्रेस (एम) के औपचारिक विभाजन के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव है.
- News18Hindi
- Last Updated: March 12, 2021, 9:38 AM IST
तिरुवनंतपुरम. केरल में आगामी विधानसभा चुनाव (Kerala Assembly Election 2021) के मद्देनजर इसाई वोटों को महत्वपूर्ण माना जा रहा है. 18.38 फीसदी आबादी के साथ इसाई मतदाता राज्य की 33 सीटों को प्रभावित करते हैं. ये सीटें एर्नाकुलम, कोट्टायम, इडुक्की और पथनमिट्टा जिले में हैं. परंपरागत रूप से कांग्रेस का समर्थक माने जाने वाले इस समुदाय को भाजपा और लेफ्ट दोनों अपने पाले में करने की कोशिश कर रहे हैं.
राज्य में सबसे बड़ी ईसाई पार्टी केरल कांग्रेस (एम) के औपचारिक विभाजन के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव है. KC (M) पिछले 40 वर्षों से कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ का सहयोगी था, अब पार्टी के आधिकारिक अध्यक्ष केएम मणि के बेटे जोस के मणि के नेतृत्व में पार्टी का आधिकारिक गुट सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ में चला गया है. एलडीएफ ने केसी (एम) को 13 सीटें दी गई हैं जो ईसाई वोट के महत्व को दर्शाती हैं. वास्तव में, पार्टी कैडरों के विरोध के बावजूद, सीपीएम ने पिछले 25 वर्षों से पार्टी द्वारा जीते गए पठानमथिट्टा में केसी (एम) को अपना पारंपरिक गढ़ रान्नी सीट दी है.
दूसरी ओर अनुभवी पी जे जोसेफ के नेतृत्व में प्रतिद्वंद्वी केसी (एम) गुट, यूडीएफ में शामिल हो गया है. उन्हें कोट्टायम, इडुक्की और पठान- अमित्ता जिलों में 9-10 सीटें मिलने की संभावना है. साल 2017 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केरल में पहला विधानसभा चुनाव हैं, जिसमें राज्य के कई जेकोबाइट चर्चों को प्रतिद्वंद्वी रूढ़िवादी गुट को सौंप दिया गया था. अपने चर्चों के नुकसान से चिंतित जैकबाइट 8-10 निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं.
CPM सरकार से नाराज हैं ईसाई?हाल के स्थानीय निकाय चुनावों में, राज्य सरकार द्वारा एक अध्यादेश लाए जाने के बाद जैकबाइट गुट ने एलडीएफ का समर्थन किया और दोनों गुटों के अनुयायियों को अंतिम संस्कार के लिए एक ही जमीन का उपयोग करने की अनुमति दी. लेकिन समुदाय सीपीएम की अगुवाई वाली सरकार से 'अपने हितों की रक्षा' ना कर पाने के लिए नाराज है.
लंबे समय से चले आ रहे विवाद का हल खोजने के लिए, जैकबाइट गुट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित आरएसएस-भाजपा नेताओं के साथ कई दौर की बातचीत की है. अगर पार्टी उनके अधिकारों के संरक्षण का आश्वासन देती है तो चर्च के धर्मसभा ने आगामी चुनावों में भी भाजपा के लिए समर्थन की घोषणा की है. बुधवार को पार्टी से इस्तीफा देने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी सी चाको जैकबाइट गुट के हैं.
दूसरी ओर रूढ़िवादी गुट ने चर्च विवाद को सुलझाने के लिए किसी भी नए कानून का विरोध किया है. इसके अलावा कांग्रेस के ओमन चांडी, को केरल चुनाव का प्रभार दिया गया जिसके बाद चर्च नेतृत्व UDF के समर्थन में दिख रहा है. चांडी खुद रूढ़िवादी गुट के हैं.
भाजपा के समर्थन में रूढ़िवादी गुट !
दिलचस्प बात यह है कि चेंदन्नूर निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा के समर्थन में रूढ़िवादी गुट भी सामने आया है, जो वर्तमान में सीपीएम के कब्जे में है, क्योंकि भाजपा-आरएसएस के हस्तक्षेप ने 1,000 साल पुराने रूढ़िवादी चर्च को विध्वंस से बचाने में मदद की थी. साल 2016 के विधानसभा चुनाव में चेंगन्नूर में भाजपा को 16% मत मिले थे.
ईसाई मतदाताओं को लुभाने के लिए, सीपीएम और बीजेपी दोनों यह दावा करते रहे हैं कि यूडीएफ का नियंत्र आईयूएमएल के हाथ में है. जबकि सीपीएम ने आरोप लगाया है कि आईयूएमएल, यूडीएफ और दक्षिणपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी के बीच एक पुल है. भाजपा का अभियान मुस्लिम अतिवाद के मुद्दे को लेकर केरल में ईसाई और उच्च जाति के हिंदू मतदाताओं को एक साथ लाने की कोशिश कर रहा है.

भाजपा 'लव जिहाद' का मुद्दा भी उठा रही है. हाल के स्थानीय निकाय चुनावों में मध्य केरल की कुछ पंचायतों में इसकी जीत को ईसाई समर्थन के परिणाम के रूप में देखा जाता है. आगामी चुनावों में मुख्य एलडीएफ और यूडीएफ के बीच ईसाई वोटों के बंटने की उम्मीद है, भाजपा निश्चित रूप से दोनों को चोट पहुंचा सकती है.
राज्य में सबसे बड़ी ईसाई पार्टी केरल कांग्रेस (एम) के औपचारिक विभाजन के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव है. KC (M) पिछले 40 वर्षों से कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ का सहयोगी था, अब पार्टी के आधिकारिक अध्यक्ष केएम मणि के बेटे जोस के मणि के नेतृत्व में पार्टी का आधिकारिक गुट सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ में चला गया है. एलडीएफ ने केसी (एम) को 13 सीटें दी गई हैं जो ईसाई वोट के महत्व को दर्शाती हैं. वास्तव में, पार्टी कैडरों के विरोध के बावजूद, सीपीएम ने पिछले 25 वर्षों से पार्टी द्वारा जीते गए पठानमथिट्टा में केसी (एम) को अपना पारंपरिक गढ़ रान्नी सीट दी है.
दूसरी ओर अनुभवी पी जे जोसेफ के नेतृत्व में प्रतिद्वंद्वी केसी (एम) गुट, यूडीएफ में शामिल हो गया है. उन्हें कोट्टायम, इडुक्की और पठान- अमित्ता जिलों में 9-10 सीटें मिलने की संभावना है. साल 2017 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केरल में पहला विधानसभा चुनाव हैं, जिसमें राज्य के कई जेकोबाइट चर्चों को प्रतिद्वंद्वी रूढ़िवादी गुट को सौंप दिया गया था. अपने चर्चों के नुकसान से चिंतित जैकबाइट 8-10 निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं.
लंबे समय से चले आ रहे विवाद का हल खोजने के लिए, जैकबाइट गुट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित आरएसएस-भाजपा नेताओं के साथ कई दौर की बातचीत की है. अगर पार्टी उनके अधिकारों के संरक्षण का आश्वासन देती है तो चर्च के धर्मसभा ने आगामी चुनावों में भी भाजपा के लिए समर्थन की घोषणा की है. बुधवार को पार्टी से इस्तीफा देने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी सी चाको जैकबाइट गुट के हैं.
दूसरी ओर रूढ़िवादी गुट ने चर्च विवाद को सुलझाने के लिए किसी भी नए कानून का विरोध किया है. इसके अलावा कांग्रेस के ओमन चांडी, को केरल चुनाव का प्रभार दिया गया जिसके बाद चर्च नेतृत्व UDF के समर्थन में दिख रहा है. चांडी खुद रूढ़िवादी गुट के हैं.
भाजपा के समर्थन में रूढ़िवादी गुट !
दिलचस्प बात यह है कि चेंदन्नूर निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा के समर्थन में रूढ़िवादी गुट भी सामने आया है, जो वर्तमान में सीपीएम के कब्जे में है, क्योंकि भाजपा-आरएसएस के हस्तक्षेप ने 1,000 साल पुराने रूढ़िवादी चर्च को विध्वंस से बचाने में मदद की थी. साल 2016 के विधानसभा चुनाव में चेंगन्नूर में भाजपा को 16% मत मिले थे.
ईसाई मतदाताओं को लुभाने के लिए, सीपीएम और बीजेपी दोनों यह दावा करते रहे हैं कि यूडीएफ का नियंत्र आईयूएमएल के हाथ में है. जबकि सीपीएम ने आरोप लगाया है कि आईयूएमएल, यूडीएफ और दक्षिणपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी के बीच एक पुल है. भाजपा का अभियान मुस्लिम अतिवाद के मुद्दे को लेकर केरल में ईसाई और उच्च जाति के हिंदू मतदाताओं को एक साथ लाने की कोशिश कर रहा है.
भाजपा 'लव जिहाद' का मुद्दा भी उठा रही है. हाल के स्थानीय निकाय चुनावों में मध्य केरल की कुछ पंचायतों में इसकी जीत को ईसाई समर्थन के परिणाम के रूप में देखा जाता है. आगामी चुनावों में मुख्य एलडीएफ और यूडीएफ के बीच ईसाई वोटों के बंटने की उम्मीद है, भाजपा निश्चित रूप से दोनों को चोट पहुंचा सकती है.