केरल उच्च न्यायालय. (File Photo)
तिरुवनंतपुरम: केरल उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक नाबालिग बलात्कार पीड़िता के 30 सप्ताह के गर्भ के चिकित्सकीय गर्भपात की अनुमति दे दी. हाई कोर्ट ने यह आदेश जारी करते हुए बाल गर्भधारण के बढ़ते मामलों पर चिंता व्यक्त की. अदालत ने याचिकाकर्ता, जो पीड़िता के माता-पिता हैं, को सरकारी अस्पताल में नाबालिग के गर्भपात कराने की अनुमति दी.
केरल हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को यह भी निर्देश दिया कि वह एक उपयुक्त अंडरटेकिंग दाखिल करें, जिसमें नाबालिग बलात्कार पीड़िता के परिवार के जोखिम पर उसका गर्भपात करने से संबंधित स्वीकृति का उल्लेख किया गया हो. अपने आदेश में केरल हाई कोर्ट ने कहा कि अविश्वसनीय लेकिन कठोर सच्चाई यह है कि लड़की को उसके भाई ने गर्भवती किया है, जो कि खुद भी नाबालिग भी है.
नाबालिग लड़की को अपनी गर्भावस्था के बारे में पता भी नहीं था
याचिकाकर्ता के वकील के मुताबिक, नाबालिग लड़की को अपनी गर्भावस्था के बारे में पता भी नहीं था. यह तथ्य तब सामने आया जब याचिकाकर्ता पेट में दर्द होने व दो महीने से अधिक समय तक उसके पीरियड्स मिस होने के बाद नाबालिग लड़की को एक डॉक्टर के पास लेकर गई. शारीरिक परीक्षण, उसके बाद एक प्रयोगशाला परीक्षण से पता चला कि नाबालिग लड़की की गर्भवती है.
यह समय स्कूलों में दी जा रही यौन शिक्षा पर फिर से विचार करने का है- कोर्ट
न्यायमूर्ति वीजी अरुण की एकल पीठ ने कहा कि यह समय अधिकारियों के लिए स्कूलों में दी जा रही यौन शिक्षा पर फिर से विचार करने का है. हाई कोर्ट ने आगे कहा कि ष्इंटरनेट पर पोर्नोग्राफी की आसान उपलब्धता युवाओं के किशोर दिमाग को गुमराह कर सकती है और उन्हें गलत विचार दे सकती है.
केरल उच्च न्यायालय ने कहा, ‘इसलिए अपने बच्चों को इंटरनेट और सोशल मीडिया के सुरक्षित उपयोग के बारे में शिक्षित करना नितांत आवश्यक है. राज्य की शैक्षणिक मशीनरी छोटे बच्चों के बीच यौन संबंधों के परिणाम के बारे में आवश्यक जागरूकता प्रदान करने में बहुत पीछे रह गई है.’
सुप्रीम कोर्ट ने 24 हफ्ते की प्रेग्नेंसी में अबॉर्शन की दी थी अनुमति
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली हाईकोर्ट के एक फैसले को पलटते हुए अविवाहित महिला को 24 हफ्ते की प्रेग्नेंसी को खत्म करने का आदेश दिया था. शीर्ष अदालत ने कहा था कि महिला शादीशुदा नहीं है, केवल इस वजह से उसे गर्भपात करवाने से नहीं रोका जा सकता. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 22 जुलाई तक दिल्ली एम्स के डायरेक्शन में एक पैनल बनाने और अबॉर्शन से जुड़ी रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश भी दिया.
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