नई दिल्ली: केंद्रीय कैबिनेट ने महिलाओं की शादी की न्यूनतम उम्र सीमा को 18 से 21 साल (Women Marriage age 18 to 21) करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. सरकार जल्द ही संसद के शीतकालीन सत्र (Parliament Winter Session) में इस पर विधेयक ला सकती है. जहां कुछ लोग सरकार के इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं तो कहीं कहीं इसका कड़ा विरोध भी देखा जा रहा है. केरल (Kerala) में कई मुस्लिम संगठनों (Muslim Bodies) ने महिलाओं की शादी की कानूनी उम्र 18 से बढ़ाकर 21 साल करने के केंद्र सरकार के कदम की कड़ी आलोचना की है.
शुक्रवार को मुस्लिम लीग के नेता ई टी मोहम्मद बशीर ने लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि केंद्र सरकार का यह फैसला मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (All India Muslim Personal Law Board) के खिलाफ है और सरकार इसे लागू करके देश में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) लागू करने की दिशा में एक और कदम बढ़ा रही है. बशीर ने कहा कि हम इस फैसले के खिलाफ हैं और इसका विरोध करेंगे.
मोहम्मद बशीर ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि समान नागरिक संहिता संघ परिवार का एक प्रमुख एजेंडा है और सरकार शादी की उम्र बढ़ाकर इस एजेंडे को लागू करने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मुस्लिम समुदाय में शादी, तलाक और संपत्ति के अधिकार को परिभाषित करता है और ये सभी मुद्दे हमारे विश्वास से जुड़े हुए हैं.
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को अपनी बैठक में प्रस्ताव को मंजूरी दे दी और सरकार की योजना संसद के चल रहे शीतकालीन सत्र में विधेयक लाने की है – जो महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम आयु पुरुषों के बराबर लाएगा. सुन्नी समुदाय के संगठन जमात-उल-उलेमा और कई अन्य धार्मिक संगठनों ने केंद्र के इस फैसले पर विरोध जताया है.
वहीं दूसरी तरफ शादी की उम्र बढ़ाने के फैसले पर मुस्लिम लीग की महिला संगठनों ने भी नाराजगी जताई है. महिलाओं ने कहा कि शादी में देरी करने से लिव इन रिलेशनशिप और नाजायज संबंध जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं.
सलाफी ग्रुप विजडम इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन के नेता टी के अशरफ ने कहा कि ऐसी कोई बड़ी आवश्यकता नजर नहीं आती जिससे महिलाओं की शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 की जाए. अगर कोई लड़की 18 साल की हो जाती है तो कोई भी मेडिकल स्टडी किसी भी तरह की मनोवैज्ञानिक या शारीरक समस्या का संकेत नहीं देती. उन्होंने कहा कि लड़कियों के सामने शादी के लिए 21 साल की उम्र की शर्त रखना यह पूरी तरह से व्यक्तिगत स्वतंत्रता और धार्मिक विश्वास का हनन है.
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