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क्यों एक कम्युनिस्ट नेता से गले मिले थे वाजपेयी!

फाइल फोटो- अटल बिहारी वाजपेयी.

फाइल फोटो- अटल बिहारी वाजपेयी.

राजनीति में विरोधी विचारधारा के लोग भी अटल बिहारी वाजपेयी की कार्यशैली के कायल रहे हैं

    अटल बिहारी वाजपेयी विचारधारा की दृष्टि से राजनीति के विपरीत धुव्रों को भी साधकर रखते थे. इसीलिए उनका सम्मान सभी दलों के नेता करते हैं. वो एक राजनेता से पहले खुद को कवि और पत्रकार के रूप में ज्यादा सहज पाते थे. अटलजी मानते थे कि राजनीति उनके मन का पहला विषय नहीं था. लेकिन, वे चाहकर भी इससे पलायित नहीं हो सकते थे,  क्योंकि विपक्षी पार्टियां उन पर पलायन की मोहर लगा देतीं.

    कविताओं को लेकर उन्होंने कहा था कि 'मेरी कविता जंग का एलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं. वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नहीं, जूझते योद्धा का जय संकल्प है. वह निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष है.'

    भारत रत्न अटलजी ने राजनीति को दलगत, निजी हित और वैचारिकता से अलग हट कर अपनाया और उसको जिया. जीवन में आने वाली हर विषम परिस्थितियों और चुनौतियों को स्वीकार किया. आलोचनाओं के बाद भी अपनी भाषा को हमेशा संयमित रखा. इसलिए धुर विरोधी भी उनके कायल रहे.

    दो दर्जन से अधिक राजनीतिक दलों को मिलाकर उन्होंने एनडीए बनाया, जिसकी सरकार में 80 से अधिक मंत्री थे. जिसे जम्बो मंत्रिमंडल भी कहा गया. इस सरकार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.

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    यूपी के डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा कहते हैं " एक दिन मैंने उन्हें एक सरदार जी से बात करते देखा. टैम्पो से एक सरदार जी उतरे और अटल जी उन्हें गले लगा कर बातें कर रहे थे. मुझे वो सरदार जी कहीं देखे लग रहे थे. वो हरकिशन सिंह सुरजीत जी थे. एक कम्युनिस्ट के साथ अटलजी का ऐसा संवाद हमारे लिए प्रेरणाप्रद था."

    वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार हिमांशु मिश्र के मुताबिक विपरीत विचारधारा के बावजूद वाजपेयी और सोमनाथ चटर्जी की दोस्ती लोगों को हैरान करने वाली थी. 2006 में वाजपेयी ने चटर्जी का हाथ थामकर उन्हें स्पीकर पद से इस्तीफा नहीं देने के लिए मनाया तो  2008 में वापजेयी के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए चटर्जी प्रोटोकॉल की परवाह न करते हुए कुर्सी से खड़े हो गए थे.

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    जन्म ग्वालियर में हुआ
    वाजपेयी का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर में 25 दिसम्बर 1924 को हुआ था. उनके पिता कृष्ण बिहारी बाजपेयी शिक्षक थे. उनकी माता कृष्णा थीं. मूलत: उनका संबंध आगरा जिले के बटेश्वर गांव से बताया जाता है. इसलिए उनका लगाव उत्तर प्रदेश की राजनीतिक से सबसे अधिक रहा. लखनऊ से वो सांसद रहे थे. वह बतौर प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूर्ण करने वाले पहले और अभी तक एकमात्र गैर-कांग्रेसी नेता हैं.

    शादी से जुड़े सवाल और प्रेम प्रसंग
    अटलजी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए अविवाहित रहने का निर्णय लिया था.अटल ने कई बार सार्वजनिक जीवन में इस सवाल का खुलकर जवाब भी दिया. पूर्व पत्रकार और अब कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला ने एक इंटरव्यू के दौरान अटल से ये सवाल पूछ लिया था. इसके जवाब में उन्होंने कहा था, 'घटनाचक्र ऐसा ऐसा चलता गया कि मैं उसमें उलझता गया और विवाह का मुहूर्त नहीं निकल पाया.'

    इसके बाद राजीव ने पूछा कि अफेयर भी कभी नहीं हुआ जिंदगी में? इस पर अपनी चिरपरिचित मुस्कान के साथ अटल ने जवाब दिया- 'अफेयर की चर्चा सार्वजनिक रूप से नहीं की जाती है.' हालांकि इसी इंटरव्यू में उन्होंने क़ुबूल किया कि वे अकेला महसूस करते हैं. उन्होंने इससे जुड़े एक सवाल के जवाब में कहा- 'हां, अकेला महसूस तो करता हूं, भीड़ में भी अकेला महसूस करता हूं.'

    क्या अटलजी की कोई प्रेम कहानी थी? वाजपेयी और राजकुमारी कौल के बीच चले इस रिश्ते की राजनीतिक हलकों में खूब चर्चा भी हुई. दक्षिण भारत के पत्रकार गिरीश निकम ने एक इंटरव्यू में अटल और श्रीमती कौल को लेकर अनुभव बताए. वह तब से अटल के संपर्क में थे, जब वो प्रधानमंत्री नहीं बने थे. उनका कहना था कि वह जब अटलजी के निवास पर फोन करते थे तब फोन मिसेज कौल उठाया करती थीं. एक बार जब उनकी उनसे बात हुई तो उन्होंने परिचय कुछ यूं दिया, "मैं मिसेज कौल, राजकुमारी कौल हूं. वाजपेयी जी और मैं लंबे समय से दोस्त रहे हैं. 40 से अधिक सालों से."

    1955 में लड़ा पहला लोकसभा चुनाव

    वाजपेयी ने 1955 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा. बाद में 1957 में गोंडा की बलरामपुर सीट से जनसंघ उम्मीदवार के रूप में जीत कर लोकसभा पहुंचे. उन्हें मथुरा और लखनऊ से भी लड़ाया गया लेकिन हार गए. अटल जी ने बीस साल तक जनसंघ के संसदीय दल के नेता के रूप में काम किया. वाजपेयी कुल 10 बार लोकसभा के सांसद रहे. वहीं वह दो बार 1962 और 1986 में राज्यसभा के सांसद भी रहे.

    मोरारजी की सरकार में विदेश मंत्री
    इंदिरा जी के खिलाफ जब विपक्ष एक हुआ और बाद में जब देश में मोरारजी देसाई की सरकार बनी तो अटल को विदेशमंत्री बनाया गया. उन्होंने राजनीतिक कुशलता की छाप छोड़ी. विदेश नीति को बुलंदियों पर पहुंचाया. बाद में 1980 में जनता पार्टी से नाराज होकर पार्टी का दामन छोड़ दिया. इसके बाद बनी भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों में वह एक थे. उसी साल उन्हें भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष की कमान सौंपी गयी. 1986 तक उन्होंने भाजपा अध्यक्ष पद संभाला. उन्होंने इंदिरा गांधी के कुछ कार्यों की तब सराहना की थी, जब संघ उनकी विचारधारा का विरोध कर रहा था.

    1996: एक वोट से गिरी सरकार
    राजनीति में संख्या बल का आंकड़ा सर्वोपरि होने से 1996 में उनकी सरकार सिर्फ एक मत से गिर गई. उन्हें प्रधानमंत्री का पद त्यागना पड़ा. यह सरकार सिर्फ तेरह दिन तक रही. बाद में उन्होंने प्रतिपक्ष की भूमिका निभाई. इसके बाद हुए चुनाव में वो दोबारा प्रधानमंत्री बने.

    कवि के रूप में बनाना चाहते थे पहचान
    वे एक कवि के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहते थे. लेकिन, शुरुआत पत्रकारिता से हुई. पत्रकारिता ही उनके राजनैतिक जीवन की आधारशिला बनी. उन्होंने संघ के मुखपत्र पांचजन्य, राष्ट्रधर्म और वीर अर्जुन जैसे अखबारों का संपादन किया. 1957 में देश की संसद में जनसंघ के सिर्फ चार सदस्य थे, जिसमें एक अटल बिहारी वाजपेयी थे. संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए हिंदी में भाषण देने वाले वो पहले भारतीय राजनीतिज्ञ थे. हिन्दी को सम्मानित करने का काम विदेश की धरती पर अटलजी ने किया.

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    1998: परमाणु परीक्षण
    अटलजी ने लालबहादुर शास्त्री जी की तरफ से दिए गए नारे जय जवान जय किसान में अलग से जय विज्ञान भी जोड़ा. देश की सामरिक सुरक्षा पर उन्हें समझौता गवारा नहीं था. वैश्विक चुनौतियों के बाद भी राजस्थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण (1998) किया. इस परीक्षण के बाद अमेरिका, कनाडा, जापान और यूरोपियन यूनियन समेत कई देशों ने भारत पर कई तरह  के प्रतिबंध लगा दिए. लेकिन उनकी दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति ने इन परिस्थितियों में भी उन्हें अटल स्तंभ के रूप में स्थापित रखा. पोखरण का परीक्षण वाजपेयी के सबसे बड़े फैसलों में से एक है.

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    क्या इंदिरा गांधी को दी थी दुर्गा की उपाधि?
    बताया जाता है कि संसद में इंदिरा गांधी को दुर्गा की उपाधि वाजेपयी की तरफ से दी गई. उन्होंने इंदिरा सरकार की तरफ से 1975 में लादे गए आपातकाल का विरोध किया. लेकिन बांग्लादेश के निर्माण में इंदिरा गांधी की भूमिका को सराहा था. हालांकि बाद में अटल ने खुद इसका खंडन कर दिया था कि उन्होंने कभी इंदिरा गांधी को दुर्गा कहा है.

    पाकिस्तान यात्रा और करगिल युद्ध
    वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी अपनी किताब 'हार नहीं मानूंगा' में लिखते हैं "कुछ बातें हैं जो वाजपेयी को संघ परिवार और बीजेपी-जनसंघ के कट्टरपंथियों से तो अलग खड़ा करती ही हैं, उन्हें दुनिया भर में लोकप्रिय भी बनाती हैं. इसमें सबसे अहम बात है वाजपेयी का पाकिस्तान को लेकर रवैया." त्रिवेदी लिखते हैं " प्रधानमंत्री बनने के बाद 1999 में जब वाजपेयी पाकिस्तान गए तो बहुत से लोग इस बात की आलोचना कर रहे थे कि वे इतनी जल्दी पाकिस्तान क्यों गए?"

    खैर, वाजपेयी बस में सवार होकर लाहौर पहुंचे. वाजपेयी की इस राजनयिक सफलता को भारत-पाक संबंधों में एक नए युग की शुरुआत माना गया. लेकिन पाकिस्तानी फौज ने गुपचुप अभियान के जरिए अपने सैनिकों की करगिल में घुसपैठ करा दी. हालांकि इस संघर्ष में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी. वाजपेयी ने करगिल युद्ध का डटकर मुकाबला किया और पाकिस्तान को धूल चटायी.

    Tags: Atal Bihari Vajpayee

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