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कृष्णा सोबती की 'मित्रो मरजानी' जिसने स्त्री अधिकारों के अनूठे पहलू पर बात की

कृष्णा सोबती फाइल फोटो

कृष्णा सोबती फाइल फोटो

कृष्णा सोबती के प्रमुख रचनाकर्म में ज़िन्दगीनामा, ऐ लड़की और जैनी मेहरबान सिंह भी शामिल है

    ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कृष्णा सोबती अब हमारे बीच नहीं है. शुक्रवार को 94 वर्ष की उम्र में उनका देहांत हो गया. कृष्णा सोबती की पहली रचना साल 1950 में प्रकाशित हुई और साल 2017 में उन्हें ज्ञानपीठ दिया गया था. उम्र के आखिरी पड़ाव पर भी वह काफी सक्रिय रहीं. देश में जब असहिष्णुता पर बहस छिड़ी तो वह दिल्ली पहुंची और अपनी बात रखी.

    यूं तो कृष्णा सोबती की कई रचनायें प्रसिद्ध हैं लेकिन साल 1966 में उनकी लिखी 'मित्रो मरजानी' उपन्यास ने लोगों पर गहरी छाप छोड़ी. कृष्णा ने 'मित्रो मरजानी' उपन्यास के माध्यम से समाज को एक चरित्र दिया जो अपने आप से प्यार करती है. वह अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करने में तनिक संकोच नहीं करती.

    'मित्रो मरजानी' की महिला, अपनी बात रखती है. अपने अधिकारों के लिए लड़ती है. साल 1966 में कृष्णा ने जो लिखा था वह आज 53 साल बाद भी सच है. तमाम ऐसी महिलाएं हमारे बीच मौजूद हैं जो अपनी जिन्दगी खुद के लिए जीना चाहती हैं.

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    महिलाओं की तमाम आकांक्षाओं में एक और चीज शामिल है और वह है 'सेक्स की इच्छा.' आज भी हमारे समाज में महिलाओं को यह अधिकार नहीं के बराबर है कि वह अपनी सेक्स की इच्छा को प्रकट करें. कृष्णा ने 'मित्रो मरजानी' में इस मुद्दे को भी उठाया है.

    'मित्रो मरजानी' उपन्यास में , मित्रो एक तेज औरत है. उसका असली नाम समित्रावंती है और वह सरदारी लाल की पत्नी है. जब उसे ऐसा लगता है कि उसकी देवरान, सास और जेठान से गलत तरीके से पेश आ रही है तो वह उसे भी निशाने पर लेती है.

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    'मित्रो मरजानी 'के कुछ अंश -

    फूलाँ ने मँझली को परखा-तोला, फिर मिन्नत मोहताजी से कहा - बहना, जब लौटाने वाली लौटाती है तो बीच में कूदने वाली तुम कौन?
    मँझली ने हाथ फैलाया - मैं तेरी जमदूती बस! तूने सास से टक्कर ली मैंने माना, पर जिसकी तू जूती बराबर भी नहीं अब उसकी इज्जत उतारने चली है? अरी, चुपचाप यह गहने अन्दर डाल ले, नहीं तो उनसे भी जायगी.

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    जब समित्रा यानी मित्रो को पता चलता है कि उसके पति सरदारी लाल को पैसे चाहिए तो वह तनिक संकोच नहीं करती और उसे पैसे देती है.

    सुनकर एक बार तो जी हुआ, घरवाले को एक करारी सुना कर चित कर दे, पर ज़बान पर काबू पा मित्रो बोली - महाराज जी, न थाली बाँटते हो. न नींद बाँटते हो, दिल के दुखड़े ही बाँट लो.

    मित्रो ने एडियाँ उठा पड़छत्ती पर से टीन की संदूकची उतारी. ताली लगा लाल पट्ट की थैली निकाली और घरवाले के आगे रख बोली-यह दमड़ी दात परवान करो लाल, जी ! कौन इस नाँवें के बिना मित्रो की बेटी कँवारी रह जायेगी ?

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    इस कहानी में समित्रा यानी मित्रो की शादी जिस सरदारी लाल से हुयी है वह उसकी शारीरिक इच्छा पूरी करने में सक्षम नहीं है.

    बनवारी ने एक और छोड़ी - जो सच भी है और झूठ भी , सरदारी की बहु, कचहरी के मुकदमेवाली यह तेरी कैसी मिसल?
    सरदारी की बहु को मुँह मांगी मुराद मिल गई . कटोरी सी दो आँखें नचाकर कहा - सोने सी अपनी देह झुर-झुरकर जला दूं या गुलजारी देवर की न्याई सुई-सिलाई के पीछे जान खपा लूँ? सच तो यूँ , जेठ जी, कि दीन-दुनिया बिसरा मैं मनुक्ख की जात से हँस खेल लेती हूँ. झूठ यूं की खसम का दिया राजपाट छोड़ी मैं कोठे पर तो नहीं जा बैठी .

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    'मित्रो मरजानी' में संयुक्त परिवार के झगड़ों , उसकी समस्याओं पर भी गौर किया गया है.

    मित्रो पहले तो सास को घूरती रही. फिर पलत्थी मार नीचे बैठ गयी और मुंडी हिला-हिला बोली - भिगो-भिगोकर और मारो , अम्मा! पाँच-सात क्या, मेरा बस चले तो गिनकर सौ कौरव जन डालूँ, पर अम्मा, अपने लाडले बेटे का भी तो आड़तोड़ जुटाओ ! निगोड़े मेरे पत्थर के बुत में भी कोई हरकत तो हो !
    धनवंती के बदन पर काँटें उग आये.
    -छिः-छिः बहू ! ऐसे बोल-कुबोल नहीं उचारे जाते !- फिर बनवारीलाल की बात का ध्यान कर समझाया- बेटी, ऐसे दिल छोड़ने की क्या बात है ? सौ जंतर-मंतर, टोने-टोटके , फिर जब मेरी बहू की साकखयात शक्ति...
    मित्रो हि-हि हँसने लगी- अम्मा, मैं तो ऐसी देवी कि छूने से पहले ही आसन विराज जाऊँ, पर भक्त बेचारा तो ....

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    खबरदारी की अँगुली दिखा कर सुहाग ने बड़ी कड़वी आँख से तरेरा- सरदारी देवर देवता पुरुख है, देवरानी! ऐसे मालिक से तू झूठ मूठ का ब्यौहार कब तक करेगी ? यह राह-कुराह छोड़ दे, बहना. एक दिन सबको उस न्यायी के दरबार में हाज़िर होना है !
    मित्रो ने सदा की तरह आँख नचाई-काहे का डर? जिस बड़े दरबारवाले का दरबार लगा होगा, वह इंसाफी क्या मर्द-जाना न होगा ? तुम्हारी देवरानी को भी हाँक पड़ गई तो जग-जहान का अलबेला गुमानी एक नज़र तो मित्रो पर भी डाल लेगा !

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    कृष्णा का यह उपन्यास जिस वक्त आया था उस वक्त वह बहुत बोल्ड रही होगी. आज भी इन विषयों पर लिखा जा रहा है. भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में अस्तित्व और पार्च्ड सरीखी फिल्में बनी हैं.  मित्रो मरजानी के प्रकाशित होने के 50 साल बाद कृष्णा ने मीडिया से कहा था- 'मित्रो अब एक किताब का चरित्र नहीं बल्कि एक व्यक्तित्व बन गयी है. अब वह अपनी अधिकारों के लिए लड़ना जाती है. हालांकि आज भी महिलाओं की हक की लड़ाई लड़ी जा रही है.' कृष्णा सोबती के प्रमुख रचनाकर्म में ज़िन्दगीनामा, ऐ लड़की और जैनी मेहरबान सिंह भी शामिल है.

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