कुबलंगी गांव केरल के कोच्चि शहर के बाहरी इलाके में स्थित है. यह गांव शहर से करीब 12 किलोमीटर दूर बैकवाटर के बीच में स्थित है. यहां के लोग मुख्यतौर पर मछली मारने का काम करते हैं. लेकिन आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि जिस जाल में मछली मारते हैं, वह चीनी (Chinese Net) है. केरल के पर्यटन विभाग के अनुसरा, कुंबलंगी गांव भारत का पहला इको-टूरिज्म गांव है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस गांव में 40 हजार से अधिक लोग रहते हैं और यहां की अधिकतर आबादी का मुख्य व्यवसाय मछली पकड़ना है. बैकवाटर में तकरीबन 100 से अधिक चीनी जाल फैला हुआ है. गांव की मूख्य भूमि को मैंग्रोव के पेड़ अलग करते हैं. यह जगह झींगे, केकड़े, कस्तूरी और छोटी मछलियों के लिए प्रजनन स्थल का काम करते हैं. यहां मुख्य रूप से मछुआरे, किसान, मजदूर, और ताड़ी निकालने वाले रहते हैं.
2003 में गांव की बदली किस्मत
साल 2003 में केरल सरकार ने राज्य के कई गांव को मॉडल गांव के तौर पर विकसित करने का फैसला किया, उन्हीं में कुबलंगी गांव भी शामिल था. राज्य सरकार ने ग्राम पंचायत को वित्तिय सहायता प्रदान की और इंटिग्रेडेट टूरिज्म विलेज परियोजना को विकसित किया. इस परियोजना की वजह से गांव में रोजगार के अवसर पैदा हुए और आहिस्ता-आहिस्ता लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ.
कलाग्रामम की स्थापना
ग्राम पंचायत के माध्यम से यहां के लोगों में हस्तशिल्प की कला को नया आकार दिया गया. इसके लिए कलाग्रामम की स्थापना की गई. गांव के अंदर चार एकड़ की जमीन पर इसे विकसित किया गया है. यहां पारंपरिक तौर पर मछली पकड़ने के उपकरण और हस्तशिल्प की ट्रेनिंग दी जाती है.
आधारभूत संरचना में बदलाव
किसी भी जगह को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करने के लिए आवश्यक है कि वहां की सड़कें और दूसरी आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध हों. लिहाजा, यहां की सड़कों और नहरों की स्थिति में सुधार लाया गया. किसी शहर की ही तरह गांव की सड़क रात में रोशनी से नहाई हुई होती है. यहां की सड़कों पर सीएफसी लैंप लगाए गए हैं. इसके लिए गांव में 6 सौ से ज्यादा बायोगैस संयंत्र की स्थापना की गई है. साथ ही पर्यटकों के ठहरने के लिए एक पार्क भी बनाया गया है.
देश का पहले नैपकिन फ्री गांव
13 जनवरी 2022 को केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कुंभलंगी को देश का पहला पैड फ्री गांव घोषित किया. यानी इस गांव में अब सैनिटरी पैड्स न मिलेंगे और न ही इस्तेमाल किए जाएंगे. महावारी के दौरान गांव की लड़कियां और महिलाएं पैड की जगह अब मेंस्ट्रुअल कप का इस्तेमाल करने लगी हैं.
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