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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह को आदर्श आचार संहिता के आरोपों से मुक्त करने के फैसले का विरोध कर चुके चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने खुद को आयोग की बैठकों से अलग कर लिया है.
लवासा ने दावा किया कि अल्पमत के फैसलों का कोई रिकॉर्ड नहीं हो रहा है. उन्होंने कहा है कि वह बैठक में तभी शामिल होंगे, जब आयोग के आदेश में अल्पमत के भी फैसले का जिक्र हो.
उच्च पदस्थ सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा को पत्र भी लिखा है कि चुनाव आचार संहिता के मामले में भी असहमति टिप्पणी/अल्पमत टिप्पणी को रिकॉर्ड नहीं किया जा रहा, इसलिए वह बैठक में हिस्सा न लेने के लिए मजबूर हुए. हालांकि चुनाव आयुक्त अशोक लवासा चुनाव आयोग की बाकी सभी बैठकों में हिस्सा ले रहे हैं.
चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने चुनाव आयोग के अंदर (मुख्य चुनाव आयुक्त और दूसरे चुनाव आयुक्त के समक्ष) ज़ोर देकर मांग की है कि आचार संहिता उल्लंघन मामले में भी अल्पमत के पक्ष की रिकार्डिग हो.
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चुनाव आयोग के अधिकारी ने कहा-
चुनाव आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि आचार संहिता के मामले में हालांकि कोई भी पुराना उदाहरण नहीं मिलता, जिसमें चुनाव आयोग में असहमति की स्थिति में अल्पमत टिप्पणी की रिकॉर्डिग हुई हो, सिर्फ चुनाव आयोग में अर्धन्यायिक मामलों में अल्पमत और बहुमत टिप्पणी की लिखित रिकार्डिग होती है.
बता दें चुनाव आयुक्त अशोक लवासा प्रधानमंत्री और बीजेपी अध्यक्ष से जुड़े आचार संहिता के मामलों में चुनाव आयोग के बहुमत के फैसले को लेकर अपनी असहमति जता चुके हैं. फिलहाल आयोग के सामने प्रधानमंत्री का राजीव गांधी को भ्रष्टाचारी नंबर एक बताने के अलावा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से जुड़े चुनाव आचार संहिता के मामले लंबित हैं.
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