सांकेतिक तस्वीर
सोच कर जवाब दीजिए...19 की शाम वो कौन सा स्टेट था जिस पर सारे एग्जिट पोल गड्ड-मड्ड हो रहे थे. हां, ये यूपी था. किसी ने यूपी में बीएसपी-एसपी गठबंधन को 20 तो किसी ने 17 तो किसी ने उसे 40 से ज्यादा सीटें दे दीं. ऐसा क्यों हो रहा है...इतना भ्रम क्यों है...दरअसल इस भ्रम में ही आम चुनाव के जटिल परिणाम की एक महत्वपूर्ण कुंजी छिपी हुई है. दूसरी ओर तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल संकेत दे रहे हैं कि कुछ नया होने को है.
अबूझ पहेली बना यूपी
सचमुच सपा-बसपा गठजोड़ ने पूरे चुनाव को रोचक बना दिया है. बीजेपी ने कैराना, फूलपुर और गोरखपुर के बाद यूपी में आने वाले चुनावी अंधड़ का अंदाजा पहले ही लगा लिया था और गठबंधन की धार कुंद करने के लिए न सिर्फ ज़ोरदार तैयारी की बल्कि सोशल मीडिया से लेकर ज़मीन तक अपने जनबल का ज़ोरदार इस्तेमाल किया. बीजेपी जानती है कि यूपी में लड़ाई अब पचास फीसद मतों से ऊपर की है, इससे नीचे रहने का मतलब है गठबंधन को आगे बढ़ने का मौका मिलना. यही वजह है कि यूपी की हर सीट पर बेहद रोचक और संघर्षपूर्ण स्थिति बनी हुई है. यहां की 90 फीसदी से ज्यादा सीटों पर हार-जीत निश्चित तौर पर बहुत कम अंतर से ही होने वाली है. यही वो गुणा गणित है जिसके कारण एग्जिट पोल इतने भ्रमित हैं.
डीएमके का उभार
अब चलते हैं तमिलनाडु, यहां एग्जिट पोल के बीच कोई भ्रम नहीं है. तकरीबन सभी का मानना है कि डीएमके, एआईएडीएमके पर भारी पड़ने वाली है. ये कांग्रेस के लिए सुकून देने वाला है क्योंकि डीएमके के स्टेलिन मजबूती से कांग्रेस के साथ अब तक खड़े नज़र आ रहे हैं. गौर कीजिए ये वही स्टेट हैं जहां से एआईएडीएमके की 36 सीटें एनडीए के लिए बीते कार्यकाल में संजीवनी की तरह बनी रही हैं. यहां होने वाला बदलाव केंद्र में बनने वाली सरकार का गणित बना या बिगाड़ सकता है.
बीजेपी का बंगाल पर फोकस क्यों था
आम चुनाव में चर्चा सब जगह की हुई लेकिन पश्चिम बंगाल लगातार ममता बनर्जी के बयानों और मोदी की ताबड़तोड़ रैलियों के कारण चर्चा में रहा. क्या छिपा है बंगाल में. क्यों ऐसा हुआ कि बीजेपी पश्चिम बंगाल को लेकर इतना आक्रामक है. वजह साफ है इसका संबंध पश्चिम बंगाल और नोर्थ ईस्ट में बीजेपी की मज़बूत जड़ें जमाने की कोशिश है. साथ ही वह हिंदी पट्टी में 2014 में ही अपना बेस्ट कर चुकी है. ऐसे में और सीटें बढ़ाने के लिए विस्तार करना ज़रूरी है. पश्चिम बंगाल का किला फतह करने का मतलब है नई ज़मीन तैयार करना और हिंदी पट्टी से किसी भी तरह के नुकसान की स्थिति में यहां से सीटों की भरपाई कर लेना. इसीलिए बीजेपी ने यहां पूरी ताकत झोंक दी. एग्जिट पोल संकेत दे रहे हैं कि बीजेपी की मेहनत बेकार नहीं गई और कहीं-कहीं तो लेफ्ट का वोट भी बीजेपी के खाते में चला गया जिससे बीजेपी मज़बूत हो गई.
संघ ने तैयार की ज़मीन
बंगाल पर कोई राय बनाने से पहले समझना होगा कि बीजेपी ने यकायक बंगाल पर फोकस करना शुरू नहीं किया है. संघ कई सालों से पश्चिमी बंगाल के सीमावर्ती इलाकों, ट्राइबल बेल्ट (झारखंड से लगने वाली) में सक्रिय बना हुआ है. सीमांत इलाकों में कभी एक वक्त संघ की करीब 200 स्कूल अखिल भारतीय संस्थान नाम से होते थे जो पिछले दो सालों में बढ़कर 450 से ज्यादा हो चुके हैं. नतीजा ये है कि अलीपुर द्वार, कूच बिहार में बीजेपी को काफी लोकल सपोर्ट मिल रहा है. इसका इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी के 5 कैंडिडेट सिर्फ अलीपुर द्वार से ही लिए गए हैं. इसके अलावा पुरुलिया, झारग्राम, मिदनापुर में बीजेपी की स्थिति मज़बूत बताई जाती है. ये ओडिशा और बिहार बॉर्डर पर मौजूद इलाके हैं. संघ लंबे समय से यहां काम कर रहा था. इसका अलावा कृष्णानगर जो बांग्लादेशी बॉर्डर के काफी करीब है वहां गाय बहुत बड़ा मुद्दा है.
बता दें कि पश्चिम बंगाल में वोटिंग कम्यूनिटी के आधार पर नहीं होती है. ममता सरकार ने छोटी-छोटी योजनाएं लागू कर अपर मिडिल क्लास, लोवर मिडिल क्साल और माइनोरिटी में अपनी जगह बनाई है. यही उनके भरोसे का आधार भी है.
क्या सचमुच लेफ्ट का वोट बीजेपी को ट्रांसफर हुआ?
एक चर्चा बंगाल से ओर आ रही है कि लेफ्ट का वोट बीजेपी को ट्रांसफर हुआ है. चुनावी जानकार मानते हैं कि ऐसा हुआ है. इसके पीछे लेफ्ट की पोल स्ट्रेटजी का होना है. दरअसल बंगाल की कुल 42 सीटों में से लेफ्ट ने सिर्फ 22 सीटों पर ही फोकस किया बाकी 20 सीटों पर उसने अपने कैडर की ताकत नहीं लगाई. नतीजा ये हुआ कि वहां बीजेपी को फायदा हुआ. लेफ्ट को अभी भी अच्छा खासा वोट मिल सकता है. जानकार मानते हैं कि लेफ्ट के पीछे हटने का कारण फंड की कमी भी होना था. लेफ्ट ने हाल ही में किसान रैलियां भी की हैं. साउथ बंगाल में उसका असर बढ़ा है. संगठन बेहद सख्त होने के कारण जल्दी वहां युवा बड़े नेता नहीं बन पाते. जो बात रोचक है वो ये कि यूथ ने उससे जुड़ना शुरू कर दिया है.
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(साथ में कौशिक सेन, एक्जिक्यूटिव प्रोड्यूसर-डिजिटल)
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