नई दिल्ली. महाराष्ट्र के वर्तमान राजनीतिक संकट में सबसे महत्वपूर्ण सवाल यही है कि अब आगे क्या होगा? लगभग ऐसी ही स्थिति मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार के विधायकों के ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ अलग होने पर पैदा हुई थी. उस समय सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के मामलों पर उठे सभी सवालों का साफ जवाब दिया था. तब जस्टिस चंद्र्चूड की बेंच ने दो बड़े सवालों का जवाब अपने फैसले में दिया था. पहला- सरकार की विधानसभा भंग करने की सिफारिश के बावजूद राज्यपाल सदन बुला सकते हैं या नहीं और दूसरा कथित ‘बंधक’ बनाए गए विधायकों से उसके राजनीतिक दल का सम्पर्क होने का अधिकार है या नहीं.
सुप्रीम कोर्ट ने तब साफ कहा था कि राज्यपाल सरकार की अनुशंसा पर विधानसभा भंग कर सकते हैं. लेकिन अगर राज्यपाल को ये लगे कि सरकार अल्पमत में आ गई है तो भी राज्यपाल के पास फ्लोर टेस्ट करवाने का अधिकार है. कोर्ट ने कहा था कि अगर राज्यपाल को ये लगे कि सदन में सरकार का विश्वास बचा है या नहीं, इसका फैसला केवल फ्लोर टेस्ट से हो सकता है, तो राज्यपाल को फ्लोर टेस्ट करवाने के अधिकार से दूर नहीं किया जा सकता. सविधान का अनुच्छेद 175(2) इसका अधिकार देता है.
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सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस बात पर भी सफाई दी थी कि अगर किसी राजनीतिक दल के विधायक कथित तौर पर ‘बंधक’ बना लिए गए हों, तो उस राजनीतिक दल के पास उनसे संपर्क के क्या अधिकार हैं? तब कोर्ट ने कहा था कि विधायकों को अपने लिए यह तय करने का अधिकार है कि ऐसी परिस्थिति में जब उन्हें वर्तमान सरकार में विश्वास नहीं हो तो क्या वो सदन का सदस्य रहना चाहते हैं? पर ये भी विधानसभा में फ्लोर टेस्ट में ही तय हो सकता है.
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