63 साल के नरहरि जिरवाल को बेहद सरल और विनम्र स्वभाव का शख्स माना जाता है. वह तीन बार विधायक रहे हैं. हर बार वे एनसीपी के टिकट पर नासिक के डिंडोरी से जीतकर आए हैं. 80 के दशक में उन्होंने जनता दल के कार्यकर्ता के रूप में अपनी सियासी पारी शुरू की थी.
जिरवाल को समाज के उपेक्षित और वंचित लोगों के लिए काम करने वाले नेता के तौर पर देखा जाता है. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, आदिवासी इलाकों में काम करने से उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई थी. जिरवाल की पहचान जनजातीय समुदाय के लिए लगातार काम करने वाले नेता की रही है.
ज़िरवाल ने शुरू में स्थानीय पंचायत समिति के चुनावों में जनता दल के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी के टिकट पर दो बार जीत हासिल की. बाद में वह राकांपा में शामिल हो गए. 2004 में पहली बार डिंडोरी से विधानसभा चुनाव जीते. 2009 का चुनाव वह शिवसेना के उम्मीदवार से सिर्फ 149 वोटों से हार गए थे.
नरहरि जिरवाल को एनसीपी नेता शरद पवार और उपमुख्यमंत्री अजित पवार का करीबी माना जाता है. उन्होंने एनसीपी के टिकट पर दो बार लोकसभा का चुनाव भी लड़ा, लेकिन असफल रहे.
ज़िरवाल नवंबर 2019 में उस वक्त सुर्खियों में आए थे, जब अजीत पवार ने बीजेपी के नेता देवेंद्र फडणवीस के साथ मिलकर तख्तापलट की असफल कोशिश की थी. ज़िरवाल उन राकांपा विधायकों में से थे, जो अजीत पवार के साथ राजभवन में गुपचुप तरीके से सुबह शपथ ग्रहण समारोह के लिए गए थे, जिसमें राज्यपाल ने फडणवीस को सीएम और अजीत को उनके डिप्टी के रूप में शपथ दिला दी थी.
नरहरि जिरवाल हालांकि उसके बाद गुड़गांव के होटल से लौट आए थे, जहां उन्हें अन्य विधायकों के साथ रखा गया था. वह शरद पवार के नेतृत्व वाले राकांपा खेमे में फिर से शामिल हो गए थे. तब उन्होंने कहा था कि जब उन्हें लगा कि अजित पवार की हरकत से राज्य में राजनीतिक उथल-पुथल मच गई है तो उन्होंने फिर से एनसीपी नेतृत्व से संपर्क साधा था.
उन्होंने तब इंडियन एक्सप्रेस से कहा था कि मेरे माता-पिता के बाद, शरद पवार ही हैं जिन्होंने मेरे जीवन में सबसे अहम भूमिका निभाई है. मैं उन्हें धोखा नहीं दे सकता. जब हमें महाराष्ट्र में गड़बड़ी का एहसास हुआ, तो मैंने और अन्य पार्टी विधायकों ने वापस जाने का फैसला किया. हमने खुद ही राकांपा नेताओं को फोन किया और होटल से निकाला.
शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस के सहयोग से महाराष्ट्र में एमवीए सरकार बनने के लगभग चार महीने बाद ज़िरवाल को राज्य विधानसभा के उपाध्यक्ष के रूप में निर्विरोध चुना गया. फरवरी 2021 में नाना पटोले विधानसभा अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देकर राज्य कांग्रेस अध्यक्ष बन गए थे. तब से विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव नहीं हो पाया है और डिप्टी स्पीकर ज़िरवाल ही सदन का कामकाज संभाल रहे हैं.
सत्ताधारी शिवसेना में बगावत के दौरान डिप्टी स्पीकर जिरवाल के कई फैसलों पर बागी एकनाथ शिंदे गुट सवाल उठा रहा है. विधानसभा में शिवसेना विधायक दल के नेता पद से शिंदे को हटाकर अजय चौधरी को नियुक्त करने का फैसला जिरवाल ने ही दिया था. उसके अलावा, शिंदे समेत बागी 16 विधायकों को अयोग्य घोषित करने का नोटिस भी जारी किया, जिसमें महज 48 घंटे का ही नोटिस दिया.
अयोग्यता नोटिस की ये समयसीमा पूरी होने से पहले ही शिंदे कैंप ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया था. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में हुई हाई वोल्टेज सुनवाई में डिप्टी स्पीकर पर शिंदे गुट की तरफ से कई गंभीर आरोप लगाए गए. सुप्रीम कोर्ट ने भी जिरवाल से कहा था कि वह अपने खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कैसे कर दिया, वह खुद ही अपने मामले में जज कैसे बन गए. अब सुप्रीम कोर्ट ने बाकी लोगों के साथ डिप्टी स्पीकर जिरवाल को भी नोटिस जारी किया है और जवाब दाखिल करने को कहा है.
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FIRST PUBLISHED : June 28, 2022, 07:26 IST