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हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी समेत कई धर्मों के विवाह कानून हो जाएंगे एक? समिति 3 महीने में सौंपेगी रिपोर्ट

राज्यसभा के सभापति ने समिति को तीन महीने की अवधि के लिए कार्य विस्तार प्रदान किया. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)

राज्यसभा के सभापति ने समिति को तीन महीने की अवधि के लिए कार्य विस्तार प्रदान किया. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)

सात पर्सनल लॉ (Personal Law) में संशोधन करने की बात कही गई है. इसमें भारतीय क्रिश्चियन विवाह अधिनियम 1872, विशेष विवाह ...अधिक पढ़ें

नई दिल्ली : राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने ‘बाल विवाह निषेध संशोधन विधेयक 2021’ (Child Marriage Prohibition Amendment Bill 2021) पर विचार करने वाली संसद की स्थायी समिति का कार्यकाल 24 अक्टूबर से तीन महीने के लिए बढ़ाने को मंजूरी प्रदान कर दी. लोकसभा सचिवालय के बुलेटिन के अनुसार, ‘बाल विवाह निषेध संशोधन विधेयक 2021’ पर विचार करने वाली शिक्षा, महिला, बाल, युवा एवं खेल संबंधी संसद की स्थायी समिति को रिपोर्ट पेश करने के लिए तीन महीने का विस्तार दिया गया है और यह 24 अक्टूबर 2022 से प्रभावी होगा. इसमें कहा गया है कि राज्यसभा के सभापति ने समिति को तीन महीने की अवधि के लिए कार्य विस्तार प्रदान किया .

गौरतलब है कि बाल विवाह निषेध संशोधन विधेयक 2021 को पिछले वर्ष संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान पेश किया गया था. कई विपक्षी दलों ने इसका विरोध करते हुए विधेयक को स्थायी समिति को भेजने की मांग की थी जिसके बाद इसे विचारार्थ संसद की स्थायी समिति को भेजा गया था. विधेयक में महिलाओं के विवाह की आयु को 21 वर्ष करने की बात कही गई है ताकि इसे पुरुषों के बराबर किया जा सके. अभी लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष है.

इसी के अनुरूप इसमें सात पर्सनल लॉ में संशोधन करने की बात कही गई है. इसमें भारतीय क्रिश्चियन विवाह अधिनियम 1872, विशेष विवाह अधिनियम 1954, पारसी विवाह और विवाह विच्छेद अधिनियम 1936, मुस्लिम (स्वीय) विधि लागू होना अधिनियम 1937, विवाह विच्छेद अधिनियम 1954, हिंदू विवाह अधिनियम 1955 और विदेशी विवाह अधिनियम 1969 शामिल हैं .

विधेयक में कहा गया है कि संविधान मूल अधिकारों के एक भाग के रूप में लैंगिक समानता की गारंटी देता है और लिंग के आधार पर भेदभाव को निषिद्ध करने की गारंटी देता है. इसलिए वर्तमान विधियां पर्याप्त रूप से पुरुषों और महिलाओं के बीच विवाह योग्य आयु की लैंगिक समानता के संवैधानिक जनादेश को पर्याप्त रूप से सुनिश्चित नहीं करती .

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इसमें कहा गया कि महिलाएं प्राय: उच्चतर शिक्षा, व्यवसायिक शिक्षा, मनोवैज्ञानिक परिपक्वता प्राप्त करने के संबंध में अलाभप्रद स्थिति में रह जाती हैं और ऐसी स्थिति महिलाओं की पुरुषों पर निर्भरता को जन्म देती है. विधेयक के अनुसार ऐसे में स्वास्थ्य कल्याण एवं महिलाओं के सशक्तिकरण एवं कल्याण की दृष्टि से उन्हें पुरुषों के समान अवसर सुनिश्चित करना आवश्यक है. (इनपुट भाषा)

Tags: Child marriage, Marriage Law, Muslim Marriage, Rajya sabha

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