“32 साल लंदन रहा. छोटा-बड़ा सभी तरह का काम किया. करीब 10 साल इमिग्रेंट्स के तौर पर भी रहा. सड़कों पर सामान बेचते हुए गिरफ्तार भी हुआ. हां, ईमान से समझौता नहीं किया. इस बीच कैंसर डिटेक्ट हुआ. घर में बीवी और एक बेटी है. इलाज हुआ और किस्मत का धनी हूं कि ठीक हो गया. इसके बाद निर्णय लिया कि भारत जाऊंगा और जरूरतमंदों के लिए काम करूंगा. दिल्ली शिफ्ट हो गया. सबसे पहले एक अनाथालय के लिए वॉलंटियर किया. फिर कैंसर मरीजों के लिए बने एक अस्पताल के लिए वॉलंटियर किया. यहां मृतकों का अंतिम संस्कार भी करता था.” ये कहना है अलग नटराजन का.
73 साल के अलग नटराजन मटकामैन कैसे बने, इस पर वह न्यूज 18 हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, “ये नाम मेरी बेटी ने रखा. दरअसल, 2014 में मैंने देखा कि एक गार्ड हमारे यहां कूलर से पानी लेने आया है. मैंने उससे पूछा, आप जहां रहते हो वहां से पानी क्यों नहीं भरते हो. उसका जवाब था, वे नहीं देते हैं. यहीं से मुझे क्लिक किया कि अगर वर्क प्लेस पर पानी न मिले तो गरीब आदमी 20 रु. बॉटल का पानी कैसे पिएगा. दिनभर में 5 लीटर पानी पीना है तो 100 रुपये पानी में ही खर्च हो जाएंगे. फिर रिक्शा चलाने वाले, ठेले-खोमचे वाले और दूसरे गरीब पानी बिना पिए ही बीमार पड़ जाएंगे. इसके बाद मैंने इलाके में मटका रखने की योजना बनाई.
वह कहते हैं, फिलहाल मैंने 80 जगहों पर मटका रखा हुआ है. पिछले साल विधायक सौरभ भारद्वाज के सहयोग से जलबोर्ड की मदद मिलने लगी और वहीं से मटके में पानी भर जाता है. उसके पहले वह बोरिंग के पानी का इस्तेमाल करते थे. उनकी सोच है कि इस भीषण गर्मी में वह जितने ज्यादा से ज्यादा लोगों को पानी से मदद कर सकें.
मूल रूप से बेंगलुरु के रहने वाले अलग नटराजन 40 साल पहले लंदन चले गए थे. वहां उन्होंने कई तरह के काम किए. पेट्रोल पंप पर रहे, ड्राइविंग की, सड़कों पर सामान बेचा और दूसरे काम किए. मेहनत से कमाया और पत्नी-बच्चों की देखभाल की. तमाम तरह की परेशानियां भी देखीं और मेहनत से सेटल भी हो गए. बच्ची बड़ी हो गई जो लंदन में ही पढ़ाई कर रही है. इस बीच उन्हें कैंसर हुआ और लंदन में ही इलाज कराने के बाद वह भारत लौट आए.
जिंदगी में किसका सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा, इस सवाल पर वह कहते हैं, “नेल्सन मंडेला का. उन्होंने समाज में परिवर्तन लाने के लिए काफी काम किया है. इसके अतिरिक्त जब मैं कैंसर के इलाज के लिए अस्पताल में था तो वहां काम करने वाली एक लेडी ने बहुत प्रभावित किया. वह जिस तरह से लोगों की सेवा कर रही थीं, काबिल-ए-तारीफ है. मैंने इन दोनों से काफी सीखा.”
खाना वितरण भी करेंगे शुरू
वह कहते हैं मेरे अंदर एक इंजीनियर भी छिपा रहता है. मेरी वैन इसका उदाहरण है. मैं इसे मॉडिफाइड करता रहता हूं. वह करीब 2000 लीटर पानी मटकों में भरते हैं. अब वह एक बड़ी गाड़ी लेकर उसे मॉडिफाइड कराकर गरीबों में खाना वितरण भी शुरू करने वाले हैं. फिलहाल वह पुरानी दिल्ली इलाके में खाना बांटते हैं.
हर मटके पर है उऩका फोन नंबर
वह कहते हैं, जहां-जहां भी मैंने मटका रखा है, अपना फोन नंबर भी लगा दिया हैं. ताकि, मटका खाली हो जाने पर लोग मुझे कॉल करें और मैं जाकर उसे भर दूंगा. उन्होंने मटके के बगल में बेंच भी लगवा दी है ताकि लोग बैठकर इत्मीनान से पानी पी सकें.
वह कहते हैं, कैंसर जैसी बीमारी आपके सोचने का नजरिया बदल देती है. एक समय लगता है कि आप की जिंदगी खत्म हो रही है. लेकिन, आप मजबूती से उससे लड़कर जब जीत जाते हैं तो फिर दुनिया में आपको सिर्फ पॉजिटिविटी दिखती है. आप इस समाज को बेहतर बनाने के लिए ही सोचते और करते हैं. मैं दिल्ली के पंचशील पार्क एरिया में रहता हूं और उम्मीद करता हूं कि ये इलाका इंसानियत, लोगों की सेवा के लिए पूरी दुनिया में जाना जाए.
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