रामलीला मैदान हमेशा से भारत में राजनीति की दिशा बदलने वाली रैलियों का केंद्र रहा है. 14 दिसंबर के ठिठुरते दिन कांग्रेस पार्टी ने यहां लाखों की भीड़ जोड़कर पहली बात तो यह साबित की कि मई 2019 में लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के सदमे से पार्टी सात महीने बाद बाहर आ गई है. 2014 में कांग्रेस जब इसी तरह हारी थी तो उसे धूल झाड़ने में करीब नौ महीने लगे थे. उस समय भी कांग्रेस ने इसी तरह रामलीला मैदान में बड़ी किसान रैली की थी. इस बार की रैली सिर्फ किसानों के नाम पर न होकर 'भारत बचाओ' के नाम पर हुई.
1- 'भारत बचाओ' रैली की खास बात ये रही कि प्रियंका गांधी ने पहली बार रामलीला मैदान में पार्टी की रैली को संबोधित किया.
2-कांग्रेस के इतिहास में लंबे समय बाद एक भव्य मंच से गांधी परिवार के तीनों सदस्यों सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने एक साथ संबोधित किया. इस तरह से अब बिल्कुल साफ है कि राजीव गांधी की दोनों संतानें एक साथ लड़ाई लड़ेंगी.
3- इस रैली के माध्यम से कांग्रेस ने राहुल गांधी को रीलॉन्च कर दिया. रामलीला मैदान में जिस तरह से राहुल गांधी के भव्य कटआउट लगाए गए थे और रैली को सफल बनाने के लिए जितनी बड़ी भीड़ जुटाई थी उससे साफ दिखाता है कि राहुल गांधी कांग्रेस का असली चेहरा होंगे. हां, अध्यक्षता उनकी मां सोनिया गांधी ही करती रहेंगी. पार्टी ने जान-बूझकर प्रियंका गांधी का भाषण बाकी महासचिवों के साथ ही कराया, जबकि राहुल गांधी का भाषण पार्टी अध्यक्ष से ठीक पहले हुआ. इस तरह पार्टी ने संदेश दिया कि प्रियंका गाधी यूपी तक ही सीमित रहेंगी और अभी उनकी असली राष्ट्रीय भूमिका में समय है. यह जगह राहुल गांधी के लिए सुरक्षित है. वैसे भी झारखंड चुनाव में राहुल गांधी ने जिस तरह से चुनाव प्रचार किया उससे लगता है कि राहुल दोबारा राजनैतिक परिदृश्य में वापस आ गए हैं.

रामलीला मैदान में कांग्रेस की भारत बचाओ रैली को संबोधित करते राहुल गांधी.
4- रैली में अपने सभी मुख्यमंत्री और तकरीबन सारे बड़े नेताओं को दिल्ली के मंच पर बैठाया गया. सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे युवा नेता, जिनके बारे में अक्सर असंतुष्ट होने की खबरें चलती रहती हैं, अपने मुख्यमंत्रियों अशोक गहलोत और कमलनाथ के सामने मंच से ओजस्वी भाषण दिए. जेल से जमानत पर रिहा हुए पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने अर्थव्यवस्था पर खुलकर बातचीत की और कर्नाटक में पार्टी का चेहरा बनते जा रहे डीके शिवकुमार भी तिहाड़ से छूटने के बाद मंचासीन थे. इस पूरी प्रक्रिया और बड़े मजमे के जरिए कांग्रेस पार्टी ने अपने कार्यकर्ता में उत्साह भरने की कोशिश की. बड़ी भीड़ और नारेबाजी का असर अक्सर यह होता है कि अनमने कार्यकर्ता को भी भरोसा हो जाता है कि उसकी पार्टी वाकई राष्ट्रीय पार्टी है और उसके साथ जनता का समर्थन है.
5- कांग्रेस ने बीजेपी के हिंदू राष्ट्रवाद के मुद्दे का विरोध तो किया, लेकिन अपनी तरफ से आर्थिक मुद्दों को देश का मुख्य मुद्दा बनाने की कोशिश की. आज की रैली में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मनमोहन सिंह के भाषणों में नरेंद्र मोदी सरकार को उसके वो वादे याद दिलाए, जिनमें जनता की तकदीर बदलने की बात कही गई थी. किसानों की आमदनी दोगुनी करना, हर साल दो करोड़ लोगों को रोजगार देना, कालाधन वापस लाना, ये सारे मुद्दे 2014 में बीजेपी को सत्ता में लाए थे. कांग्रेस ने आज कोशिश की कि आम आदमी मोदी सरकार के प्रदर्शन को इन्हीं मुद्दों की कसौटी पर कसे.

कांग्रेस की भारत बचाओ रैली में कांग्रेस कार्यकर्ता बैनर लेकर पहुंचे.
6- राहुल गांधी के भाषण के दौरान कहा कि उनका नाम 'राहुल सावरकर' नहीं है, राहुल गांधी है. इसके अलावा राहुल ने बहुत आक्रामक लहजे में कहा कि गांधी माफी नहीं मांगते. उनका इशारा सावरकर के अंग्रेजों से बार बार माफी मांगने की तरफ था. इसके साथ ही राहुल ने कहा कि माफी नरेंद्र मोदी और अमित शाह को देश से मांगनी है क्योंकि इन्होंने देश का विकास रोक दिया है.
7- राहुल गांधी ने भाजपा के नए राष्ट्रवाद के सामने कांग्रेस के पुराने राष्ट्रवाद को रखा. राहुल ने आर्थिक मोर्चे और दूसरे नाकाम फैसलों की याद दिलाते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी देश के दुश्मन हैं. यानी कांग्रेस अब भाजपा के देशद्रोही वाले जुमले को अपनी परिभाषा में ढालना चाहती है.
8- सोनिया ने बढ़ती उम्र और कमजोर स्वास्थ्य के बावजूद तकरीबन इंदिरा गांधी के अंदाज में अपने कार्यकर्ताओं से कठोर संघर्ष के लिए तैयार रहने का आह्वान किया. उन्होंने बहुत ही आक्रामक तरीके से नागरिता संशोधन कानून पर हमला किया. सोनिया गांधी ने मुसलमानों का अलग से जिक्र किए बिना यह दावा किया कि यह कानून भारत के संविधान की आत्मा पर हमला है.

कांग्रेस की 'भारत बचाओ' रैली में बीजेपी पर हमला करतीं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी.
9- रैली की खास बात ये रही कि कांग्रेस फिर से लड़ाई के मैदान में आने को तैयार है. पार्टी एक तरफ खराब आर्थिक हालात, बेरोजगारी और किसानों की समस्या के जरिए देश के बहुसंख्यक वर्ग को अपनी तरफ खींचना चाहती है, वहीं नागरिकता कानून के जरिए मुसलमानों को अपनी तरफ लाना चाहती है. देश के बहुत से राज्यों में मुसलमान अब भी कांग्रेस के साथ हैं लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में मुसलमान वोट पार्टी से छिटक चुका है. यूपी में 2009 के लोकसभा चुनाव में मुसलमानों का वोट मिलने से कांग्रेस ने वहां जबरदस्त प्रदर्शन किया था. लेकिन सामान्य तौर पर यह वोटर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के साथ चला जाता है.
10- कांग्रेस ने रैली के माध्यम से साफ कर दिया है कि संघर्ष अब सिर्फ संसद और सोशल मीडिया पर नहीं होगा. नागरिकता कानून की नाव पर सवार होकर कांग्रेसी सड़कों पर उतरेंगे, यह एक ऐसा काम है जो कांग्रेस के लोग ढंग से नहीं कर पा रहे थे. शांति के प्रतीक सफेद कबूतरों की जगह पार्टी ने इस पर विरोध के प्रतीक काले गुब्बारों की लड़ी हवा में उड़ाई जो दूर से देखने पर हवा में तैरते विशाल काले नाग की तरह दिखाई दे रही थी.
कांग्रेस लड़ने को तैयार है लेकिन जिससे उसे लड़ना है, वहां सवा सेर है, यह बात अलग से बताने की जरूरत नहीं है.
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FIRST PUBLISHED : December 14, 2019, 15:51 IST